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ग़ज़्ज़ा की घेराबंदी तोड़ने के लिए निकले अंतर्राष्ट्रीय "प्रतिरोध बेड़े" के मुख्य जहाज "अल्मा" से संपर्क अस्थायी रूप से कट जाने के बाद बहाल हो गया है।

अल जज़ीरा के एक रिपोर्टर ने बताया कि ग़ज़्ज़ा की घेराबंदी तोड़ने के लिए निकले अंतर्राष्ट्रीय "प्रतिरोध बेड़े" के मुख्य जहाज "अल्मा" से संपर्क अस्थायी रूप से कट जाने के बाद बहाल हो गया है।

रिपोर्ट के अनुसार, एक इज़राइली युद्धपोत "अल्मा" के लगभग पाँच मीटर की दूरी तक बहुत करीब आ गया था, जिससे बेड़े की कई नावों की संचार प्रणाली बुरी तरह बाधित हो गई। इस दौरान, एक जहाज का इंजन भी प्रभावित हुआ, हालाँकि, इज़राइली जहाज के दूर जाने के बाद, काफिला अपनी दिशा में गाजा की ओर बढ़ने लगा।

सूत्रों के अनुसार, "अल्मा" पर सवार अधिकांश कार्यकर्ताओं ने अपने मोबाइल फोन समुद्र में फेंक दिए। यह कार्रवाई उस प्रोटोकॉल के तहत की गई जो किसी जहाज़ के रोके जाने या हमले की धमकी मिलने की स्थिति में अपनाया जाता है।

इस बीच, अल जज़ीरा के हसन मसूद ने भूमध्य सागर में जहाज़ "शिरीन" से खबर दी कि उन्होंने बेड़े के पास एक बड़ा इज़राइली युद्धपोत देखा है, जिसके बाद पूरा काफ़िला हाई अलर्ट पर चला गया।

प्रतिरोधी बेड़े ने घोषणा की कि कुछ अज्ञात और बिना रोशनी वाले जहाजों के पास आने के बाद उसने फिर से हाई अलर्ट बढ़ा दिया है।

इससे पहले, जब काफ़िला गाज़ा तट से लगभग 120 समुद्री मील दूर था, तो हाई अलर्ट का स्तर अस्थायी रूप से कम कर दिया गया था और तत्काल इज़राइली हमले की संभावना को खारिज कर दिया गया था।

 

 

गाज़ा में इजरायली सेना के पूर्व कमांडर नमरोद आलोनी ने कड़ी आलोचना करते हुए सेना को गैर पारदर्शी और गैर जिम्मेदार बताया और कहा,इजरायली सेना अपनी हार को छुपा रही हैं।

गाज़ा में इजरायली सेना के पूर्व कमांडर नमरोद आलोनी ने कड़ी आलोचना करते हुए सेना को गैर पारदर्शी और गैर जिम्मेदार बताया।उन्होंने संकेत दिया कि इजरायली सेना अब अपनी गलतियों की जिम्मेदारी स्वीकार करने में असमर्थ हो गई है।

उन्होंने जोर दिया कि आज मैं अपनी सैन्य सेवा समाप्त कर रहा हूँ ऐसे समय जब जिम्मेदारी को नजरअंदाज किया जा चुका है और सेना अपनी हार को स्वीकार करने की क्षमता खो चुकी है।

जनरल आगे कहता हैं कि इजरायल 7 अक्टूबर से पहले हमास की सोच, इरादे और नीयत को समझने में विफल रहा है।

इसके अलावा, उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि 7 अक्टूबर को हुई घटनाओं ने स्पष्ट कर दिया कि इजरायल की खुफिया और सैन्य तैयारी में गंभीर कमियां थीं। उन्होंने कहा कि अगर हमास की मंशा और रणनीति को बेहतर तरीके से समझा जाता, तो शायद उस दिन की तबाही को रोका जा सकता था।

उनका मानना है कि सैनिक और कमांडर दोनों को अपनी गलतियों से सीखना चाहिए और खुले दिल से अपनी कमजोरियों को स्वीकार करना चाहिए, ताकि भविष्य में बेहतर तैयारियां की जा सकें।

जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम पाकिस्तान के अध्यक्ष ने कहा, सभी धार्मिक और आंदोलनकारी दलों ने गाज़ा का साथ दिया और इज़राइल को खारिज कर दिया। कोई भी दज्जाल राज्य को पाकिस्तान में मान्यता प्राप्त नहीं होगा।

जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम पाकिस्तान के अध्यक्ष मौलाना फ़ज़लुर रहमान ने फिलिस्तीन मुद्दे पर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के हालिया 20-सूत्री एजेंडे को खारिज करते हुए कहा,इज़राइल एक अतिकारी राज्य है। हम इज़राइल को कभी स्वीकार नहीं करेंगे।

उन्होंने कहा, दुर्भाग्य से हमारी सरकार ने गाजा और फिलिस्तीन के मामले में कोई अच्छी भूमिका नहीं निभाई। सभी धार्मिक और आंदोलनकारी दलों ने गाजा का साथ दिया और इज़राइल को भी खारिज कर दिया। कोई भी दज्जाल राज्य पाकिस्तान में मान्यता प्राप्त नहीं होगा।

जेयूआई(एफ) के अध्यक्ष ने कहा,ट्रम्प का दूसरे देशों पर जबरदस्ती अपनी बात थोपना न तो कोई राजनीतिक है और न ही किसी नैतिक कानून के अंतर्गत आता है और हम इसकी जोरदार निंदा करते हैं।

 

इतिहासकारों ने लिखा है कि इमाम हसन असकरी अ.स. की शहादत के बाद लोग 14 या 15 फ़िर्क़ों में बंट गए, कुछ इतिहासकारों के अनुसार 20 फ़िर्क़ों में बंट जाने तक का ज़िक्र मौजूद है।

अब्बासी बादशाह अपनी ज़ुल्म और अत्याचार वाले स्वभाव के चलते दिन प्रतिदिन अपनी लोकप्रियता को खो रहे थे, लेकिन हमारे मासूम इमाम अ.स. अपने पाक किरदार और नेक सीरत के चलते लोगों के दिलों में उतरते जा रहे थे और उनकी लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही थी,

अब्बासी बादशाह सामाजिक तौर पर कमज़ोर होते जा रहे थे और हमारे इमाम अ.स. सामाजिक तौर पर मज़बूत हो रहे थे, और ऐसा होते हुए अपनी आंखों से देखना अब्बासी बादशाहों को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था, वह हमेशा से इमामों पर ज़ुल्म करते आए थे यहां तक कि इमाम असकरी अ.स. का घर अब्बासी हुकूमत की कड़ी निगरानी में था,

इमाम अ.स. के चाहने वाले और आपके शिया इमाम अ.स. से खुलेआम ना ही मुलाक़ात कर सकते थे और ना ही बातचीत, बनी अब्बास ने अपनी पूरी कोशिश और ताक़त केवल इसी में झोंक रखी थी कि जैसे ही इमाम हसन असकरी अ.स. के यहां बेटे की विलादत हुई वह उसे तुरंत जान से मार डालेंगे,

ज़ाहिर सी बात है ऐसे घुटन के माहौल और ऐसे परिस्तिथि और बनी अब्बास की ऐसा साज़िश के चलते इमाम हसन असकरी अ.स. के लिए सावधानी बरतना और तक़य्या के रास्ते को चुनना ज़रूरी हो गया था ताकि अपनी, अपने बेटे, अल्लाह के दीन और साथ ही अपने शियों की जान बचा सकें, यही वजह है कि इमाम हसन असकरी अ.स. के दौर में दूसरे सारे इमामों से ज़्यादा सावधानी बरती जा रही थी और तक़य्या पर अमल हो रहा था और इमाम अ.स. भी बहुत संभल कर क़दम उठा रहे थे और लगभग सारे कामों को छिप कर अंजाम दे रहे थे सारी बातों और ख़बरों को छिपा कर रख रहे थे जिनमें से एक ख़बर इमाम महदी अ.स. की विलादत की ख़बर थी।

नए फ़िर्क़ों के सामने आने की वजह

इमाम ज़माना अ.स. की जान की हिफ़ाज़त के लिए उनकी विलादत की ख़बर को छिपाने के कराण कुछ शिया इमाम हसन असकरी अ.स. और इमाम ज़माना अ.स. की इमामत में शक करने लगे (क्योंकि शिया अक़ीदे के मुताबिक़ इमाम हसन असकरी अ.स. का बेटा होना ज़रूरी है ताकि वह उनके बाद इमाम बन सके और अगर इमाम हसन असकरी अ.स. को बेटा नहीं हुआ तो ख़ुद उनकी इमामत में भी शक होने लगा) लोगों को इस हद तक शक हुआ कि इतिहासकारों ने लिखा है कि इमाम हसन असकरी अ.स. की शहादत के बाद लोग 14 या 15 फ़िर्क़ों में बंट गए, कुछ इतिहासकारों के अनुसार 20 फ़िर्क़ों में बंट जाने तक का ज़िक्र मौजूद है।

एक तरफ़ इमाम ज़माना अ.स. की विलादत की ख़बर को उनकी जान की हिफ़ाज़त की वजह से छिपाना और दूसरी तरफ़ जाफ़र का इमामत का दावा यह दोनों बातें उस दौर के शियों के लिए काफ़ी परेशानी की वजह बनी, इन सारी परेशानियों के साथ साथ दूसरे फ़िक्री और अक़ीदती फ़िर्क़े वालों ने शिया फ़िर्क़े पर जम के आरोप लगाए

और जो कुछ उनसे हो सका उन लोगों ने कहा, मोतज़ेलह, अहले हदीस, ज़ैदिया और ख़ास कर बनी अब्बास ने शिया फ़िर्क़े पर आरोप लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, हक़ीक़त तो यह है कि इमाम हसन असकरी अ.स. की शहादत के बाद शियों में जो शक का दौर रहा है वह उससे पहले कभी नहीं देखा गया,

लेकिन जैसे ही शियों को भरोसेमंद स्रोत से इमाम ज़माना अ.स. की विलादत की ख़बर मिली वह संतुष्ट हो गए और इमाम ज़माना अ.स. की इमामत को स्वीकार भी किया और उनकी पैरवी को अपने ऊपर बाक़ी इमामों की तरह वाजिब समझा, और बाक़ी के सारे फ़िर्क़े जो इस दौर में सामने आए थे वह सब कुछ ही समय में नाबूद हो गए,

आज उन फ़िर्क़ों का कोई भी पैरवी करने वाला मौजूद नहीं है बस केवल किताबों में एक ऐतिहासिक दास्तान बन कर रह गए हैं, यहां तक कि शैख़ मुफ़ीद र.ह. के ज़माने तक भी यह लोग बाक़ी न रह सके, जैसाकि शैख़ मुफ़ीद र.ह. ने इन फ़िर्क़ों के बारे में लिखा है कि, इस साल (373 हिजरी) और हमारे दौर में इन फ़िर्क़ों में से कोई भी बाक़ी नहीं बचा, सब नाबूद हो चुके हैं।

इमाम हसन असकरी अ.स. की शहादत के बाद जो फ़िर्क़े सामने आए वह इस प्रकार हैं.....

इमाम अली नक़ी अ.स. के बेटे जाफ़र की इमामत पर अक़ीदा

जिन लोगों ने जाफ़र का इमाम माना वह चार गिरोह में बंटे हुए थे....

पहला- कुछ लोगों का कहना था कि जाफ़र, इमाम हसन असकरी अ.स. के भाई इमाम हैं लेकिन इस वजह से नहीं कि इमाम हसन असकरी अ.स. ने अपने भाई के लिए वसीयत की हो बल्कि चूंकि इमाम हसन असकरी अ.स. को बेटा नहीं है इसलिए हम मजबूर हैं कि उनके भाई जाफ़र को अपनी बारहवां इमाम मानें।

दूसरा- कुछ लोगों का अक़ीदा था कि जाफ़र ही इमाम हैं क्योंकि इमाम हसन असकरी अ.स. ने वसीयत की है और जाफ़र को अपनी जानशीन क़रार दिया है, यह फ़िर्क़ा भी पहले फ़िर्क़े की तरह जाफ़र को अपनी बारहवां इमाम मानता है।

तीसरा- कुछ का मानना यह था कि जाफ़र इमाम हैं, और उनको यह इमामत अपने वालिद से मीरास में मिली है न कि उनके भाई से, और इमाम हसन असकरी अ.स. की इमामत बातिल थी क्योंकि उन्हें कोई बेटा ही नहीं था जबकि उनको बेटा होना ज़रूरी था ताकि इमामत का सिलसिला आगे बढ़ सके, उनका कहना था कि चूंकि इमाम हसन असकरी अ.स. को बेटा नहीं है इसीलिए इमाम अली नक़ी अ.स. के बाद इमाम हसन असकरी अ.स. इमाम नहीं हो सकते साथ ही इमाम अली नक़ी अ.स. के दूसरे बेटे मोहम्मद भी इमाम नहीं हो सकते क्योंकि वह इमाम अली नक़ी अ.स. की ज़िंदगी में ही इंतेक़ाल कर गए थे, इसलिए हम मजबूर हैं कि इमाम अली नक़ी अ.स. के बाद जाफ़र को इमाम मानें।

चौथा- कुछ लोग इस बात पर अड़े थे कि जाफ़र को उनके भाई मोहम्मद से इमामत मिली है, इन लोगों का कहना था कि इमाम अली नक़ी अ.स. के बेटे अबू जाफ़र मोहम्मद इब्ने अली जो कि अपने वालिद की ज़िंदगी में ही इंतेक़ाल कर गए थे, वह अपने वालिद की वसीयत के मुताबिक़ इमाम थे, और चूंकि मोहम्मद अपनी वफ़ात के समय किसी की तलाश में थे ताकि अपनी जानशीनी और इमामत की ज़िम्मेदारी उसके हवाले कर सकें इसलिए आख़िर में नफ़ीस नाम के ग़ुलाम के हवाले अपनी किताबें और दूसरी चीज़ें कर दीं और उससे वसीयत की कि जब भी उनके वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की शहादत का समय क़रीब आए तो इन सब चीज़ों को जाफ़र के हवाले कर देना, यह गिरोह इमाम हसन असकरी अ.स. की इमामत को नहीं मानता था, इन लोगों का कहना था इमाम असकरी अ.स. के वालिद ने उन्हें अपना जानशीन नहीं बनाया था इसलिए मोहम्मद इब्ने अली ग्यारहवें इमाम हैं और उसके बाद जाफ़र इमाम होंगे।

इमाम हसन असकरी अ.स. के एक और बेटे की इमामत पर अक़ीदा

यह फ़िर्क़ा भी 4 गिरोह में बंटा हुआ था.

पहला- कुछ लोगों का अक़ीदा था कि इमाम हसन असकरी अ.स. का एक बेटा था जिसका अली नाम रखा और इमामत के बारे में उसी से वसीयत की, इसलिए अली इब्ने हसन बारहवें इमाम हैं।

दूसरा- कुछ लोगों का कहना है कि इमाम हसन असकरी अ.स. की शहादत के 8 महीने बाद एक बेटा पैदा हुआ और वही बारहवां इमाम है।

तीसरा- एक गिरोह का कहना है कि इमाम हसन असकरी अ.स. का एक बेटा है जो अल्लाह के हुक्म से अभी पैदा नहीं हुआ है, वह अभी मां के पेट में है और अल्लाह के हुक्म से पैदा होगा।

चौथा- कुछ लोगों का मानना है कि इमाम असकरी अ.स. के बाद उनका बेटा मोहम्मद इमाम था लेकिन वह इमाम असकरी अ.स. की ज़िंदगी में ही मर गया, अब बाद में ज़िंदा हो कर वापस आएगा और इंक़ेलाब लाएगा।

इमाम हसन असकरी अ.स. की इमामत के बाक़ी रहने पर अक़ीदा

इस अक़ीदे वाले लोग भी 2 गिरोह में बंटे हुए हैं।

पहला- कुछ लोगों का अक़ीदा है कि इमाम हसन असकरी अ.स. ज़िंदा हैं और महदी, मुंतज़र और क़ायम हैं, क्योंकि उनका कोई बेटा नहीं है इसलिए इमाम वही हैं, और ज़मीन भी अल्लाह की हुज्जत से ख़ाली नहीं रह सकती, इस गिरोह का कहना है कि अगर इमाम की शहादत या उनके इंतेक़ाल के समय उनका कोई बेटा नहीं है तो वह ख़ुद ही महदी-ए-क़ायम है और हमें उसके ज़िंदा रहने पर अक़ीदा रखना होगा और शियों को उसके इंतेज़ार में अपनी आंखें बिछाए रहना चाहिए ताकि वह वापस हमारे सामने आ जाएं, क्योंकि जिस इमाम का बेटा न हो और उसका कोई जानशीन न हो तो उसे मुर्दा नहीं समझा जा सकता, हमें कहना ही पड़ेगा कि वह ग़ैबत में हैं।

दूसरा- इन लोगों का मानना है कि इमाम हसन असकरी अ.स. इस दुनिया से चले गए थे फिर वापस ज़िंदा हुए और फिर से अपनी ज़िंदगी जीना शुरू कर दी, वह महदी और क़ायम हैं, क्योंकि हदीस में है कि क़ायम वही है जो मौत के बाद फिर से ज़िंदा हो जाए और उसका कोई बेटा भी न हो।

इमाम हसन असकरी अ.स. के भाई मोहम्मद इब्ने अली की इमामत पर अक़ीदा

इस गिरोह का कहना है कि इमाम अली नक़ी अ.स. के बाद उनके बेटे मोहम्मद इमाम हैं, क्योंकि दो भाईयों जाफ़र और हसन की इमामत सही नहीं है (इमाम हसन अ.स. और इमाम हुसैन अ.स. को छोड़ कर) जाफ़र की इमामत इसलिए सही नहीं है क्योंकि उसका किरदार इमामत की शान के मुताबिक़ नहीं है और वह आदिल नहीं था, और हसन इब्ने अली को कोई बेटा नहीं था इसलिए वह भी इमाम नहीं हो सकते।

शक की हालत में हैं

कुछ शिया का कहना था कि इमाम हसन असकरी अ.स. के बाद इमामत का मामला हमारे लिए साफ़ नहीं है, हमें नहीं मालूम कि जाफ़र इमाम हैं या दूसरे बेटे, हमें नहीं मालूम इमामत, इमाम हसन असकरी अ.स. की नस्ल से हैं या उनके भाईयों की, अब हमारे लिए मामला साफ़ नहीं है इसलिए हम बिना किसी को इमाम माने इम मामले में विचार कर रहे हैं।

ज़मीन अल्लाह की हुज्जत से ख़ाली है

इस गिरोह का अक़ीदा था कि इमाम हसन असकरी अ.स. के बाद अब कोई इमाम नहीं है, और ज़मीन अल्लाह की हुज्जत से ख़ाली है, उनका अक़ीदा यह था कि ज़मीन का अल्लाह की हुज्जत से ख़ाली होने में कोई परेशानी नहीं है क्योंकि हज़रत ईसा अ.स. और पैग़म्बर स.अ. के बीच काफ़ी फ़ासला था।

मंगलवार, 30 सितम्बर 2025 17:37

क्या खुदा को देखा जा सकता है?

इल्म-ए- कलाम के मुताबिक चूंकि अल्लाह शरीर नहीं रखता इसलिए आंखों से नहीं देखा जा सकता, और कुरआन भी इसी की ताईद करता है। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की तरफ से अल्लाह को देखने की दरख्वास्त कलामी ऐतबार से दीदार-ए-ज़ाहिरी की नफी है, जबकि इरफानी नुक्ता-ए-नज़र के मुताबिक यह बातिनी इदराक और कल्बी शुहूद की तरफ इशारा है, जिसका कामिल तजुर्बा सिर्फ आखिरत में मुमकिन है।

इस्लामी अक़ाइद में एक मशहूर सवाल यह है कि क्या अल्लाह को आंखों से देखा जा सकता है?

उलेमा और मुफस्सिरीन ने इस बारे में मुख्तलिफ पहलुओं से गुफ्तगू की है।

कलामी नुक्ता-ए-नज़र से,इल्म-ए-कलाम के मुताबिक अल्लाह को आंखों से देखना मुमकिन नहीं, क्योंकि देखने के लिए ज़रूरी है कि चीज़ जिस्मानी हो, किसी खास जगह और सिम्त (दिशा) में मौजूद हो, और उस पर रोशनी पड़े ताकि आंख उसे देख सके।

लेकिन अल्लाह न शरीर है, न मादी (भौतिक) है, न किसी मकान या जहत (दिशा) का मुहताज। इसी लिए कुरआन फरमाता है:
«لَا تُدْرِكُهُ الْأَبْصَارُ وَهُوَ يُدْرِكُ الْأَبْصَارَ»
(सूरह अल-अनआम, 103) "आंखें उसे नहीं पा सकतीं, लेकिन वह आंखों को पा लेता है।

(वाक़िया ए हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम)

जब हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) ने अर्ज़ किया परवरदिगार! अपना दीदार करा तो हकीकत यह है कि मूसा अलैहिस्सलाम जानते थे अल्लाह को आंखों से देखना मुमकिन नहीं। लेकिन बनी इस्राईल बार-बार ज़िद करते थे कि हम तभी ईमान लाएंगे जब अल्लाह को देख लें।

इसी ज़िद के नतीजे में उन पर साइक़ा (बिजली) नाज़िल हुआ। बाद में जब उन्होंने मूसा अलैहिस्सलाम से बराह-ए-रास्त (सीधे) दरख्वास्त करने को कहा, तो मूसा अलैहिस्सलाम ने उनकी बात अल्लाह के सामने रखी ताकि खुदा खुद जवाब दे और वह कानिअ (संतुष्ट) हो जाएं।

दीदार का बातिनी मफहूम (दर्शन का आंतरिक अर्थ)

दार्शनिक और सूफी के नज़दीक हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने दीदार-ए-खुदा से मुराद ज़ाहिरी आंख से देखना नहीं लिया था, बल्कि मुराद एक बातिनी और कल्बी इदराक हृदय की समझ थी, जिसे कुरआन में "लिक़ा-ए-इलाही" (ईश्वर से मिलन) कहा गया है: «وُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ نَّاضِرَةٌ إِلَىٰ رَبِّهَا نَاظِرَةٌ» (सूरह अल-क़ियामह, 22-23)
उस दिन कुछ चेहरे तरो-ताज़ा होंगे और अपने रब की तरफ मुतावज्जह (ध्यानमग्न) होंगे।

यह देखना दरअसल दिल के शऊर और बातिन की रोशनी है, जैसे कोई शख्स कहे "मैं देख रहा हूं कि मुझे यह चीज़ पसंद है हालांकि आंख से कुछ नहीं देख रहा बल्कि दिल से इदराक कर रहा है।

बेहोशी का राज़

जब अल्लाह ने फरमाया,पहाड़ को देखो, अगर वह अपनी जगह क़ायम रहा तो मुझे देख सकोगे और फिर तजल्ली (दिव्य प्रकाश) हुई तो पहाड़ रेज़ा-रेज़ा (चूर-चूर) हो गया और मूसा (अलैहिस्सलाम) बेहोश हो गए।

यह बेहोशी खौफ की वजह से न थी, बल्कि जलाल-ए-इलाही के जलवे (प्रकाश) से पैदा हुई थी। मुफस्सिरीन कहते हैं कि यह तजुर्बा दुनिया में मुमकिन नहीं, अलबत्ता आखिरत में रूहानी तौर पर मुमकिन होगा, जब इंसान जिस्मानी रुकावटों से आज़ाद होगा।

रिवायात अहल-ए-बैत अलैहिमुस्सलाम:

इमाम अली अलैहिस्सलाम से पूछा गया,क्या आपने अल्लाह को देखा है? फरमाया:मैं उस खुदा की इबादत नहीं करता जिसे न देखा हो। लेकिन खुदा को आंख से नहीं, दिल से ईमान के ज़रिए देखा जा सकता है।

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फरमाया: जब मूसा अलैहिस्सलाम ने तजल्ली की दरख्वास्त की तो खुदा ने एक फरिश्ते (करूबीन) को तजल्ली का हुक्म दिया। इसी जलवे से पहाड़ टुकड़े-टुकड़े हो गया।

इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम ने फरमाया,खुदा और मखलूक के दरमियान कोई परदा नहीं, सिवाय खुद मखलूक के। यानी सृष्टि की अपनी सीमाएं ही ईश्वर के सीधे दर्शन में बाधक हैं।

खुलासा:

इस्लामी अक़ाइद में अल्लाह को आंखों से देखना मुहाल है, क्योंकि वह शरीर और जहत (दिशा) से पाक है। लेकिन दिल के इदराक, ईमान और रूहानी शऊर के ज़रिए अल्लाह को पहचाना और देखा जा सकता है।

आखिरत में अहल-ए-ईमान को यह इदराक और शुहूद ज़्यादा वाजेह (स्पष्ट) और कामिल (पूर्ण) सूरत में नसीब होगा।

इराकी संसद के सदस्य यूसुफ अलकलाबी ने कहा कि इराक से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बारे में प्रकाशित रिपोर्टें झूठ और धोखे पर आधारित हैं।

इराकी संसद के सदस्य यूसुफ अलकलाबी ने कहा कि इराक से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बारे में प्रकाशित रिपोर्टें झूठ और धोखे पर आधारित हैं।

उन्होंने आगे कहा कि अमेरिका अपने मौजूदा अड्डों में सैन्य मौजूदगी को मजबूत कर रहा है। वाशिंगटन झूठी रिपोर्टों के जरिए इराक से काल्पनिक वापसी का छद्म प्रभाव पैदा करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन वास्तव में वह अपनी सेना की संख्या बढ़ा रहा है।

अल-कलाबी ने कहा कि अमेरिकी सैनिक आसानी से सीरिया और इराक के बीच आ-जा सकते हैं, और सरकार को इस देश की संप्रभुता के उल्लंघन पर कार्रवाई करनी चाहिए।

उल्लेखनीय है कि उत्तरी इराक में स्थित हरिर अड्डे पर हाल ही में कतर से इराक के लिए सैन्य साज-सामान के हस्तांतरण का अवलोकन किया गया है।

 

स्वास्थ्य स्रोतों के अनुसार, इस्लामी गणतंत्र ईरान अब अपनी 90% से अधिक चिकित्सा आवश्यकताओं का उत्पादन स्वयं करता है; इस सफलता से अरबों डॉलर की विदेशी मुद्रा की बचत के अलावा, अंतरराष्ट्रीय मानकों की सस्ती दवाएं जनता को उपलब्ध कराई जा रही हैं।

इस्लामी गणतंत्र ईरान ने अमेरिका और यूरोप के अनुचित प्रतिबंधों के बावजूद, रक्षा उद्योग की तरह चिकित्सा क्षेत्र में भी शानदार विकास किया है। देश की 90% चिकित्सा आवश्यकताएं स्थानीय स्तर पर पूरी की जाती हैं।

तेहरान फार्मासिस्ट एसोसिएशन के वरिष्ठ सदस्य और शहीद बहिश्ती विश्वविद्यालय के संकाय सदस्य डॉ. आरश महबूबी ने कहा है कि ईरान अब अपनी 90% से अधिक दवाएं घरेलू स्तर पर तैयार करता है, जो फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में एक बड़ी सफलता है।

उन्होंने कहा कि इस्लामी क्रांति के शुरुआती दिनों में, ईरान के पास कोई राष्ट्रीय फार्मास्यूटिकल उद्योग नहीं था और अधिकांश दवाएं या तो आयात की जाती थीं या विदेशी लाइसेंस के तहत तैयार की जाती थीं।

श्री महबूबी ने कहा कि ईरानी युवा वैज्ञानिकों और फार्मेसी स्नातकों की लगातार मेहनत ने इस क्षेत्र को पूरी तरह से बदल दिया है।रिपोर्टों के अनुसार, ईरान 98% से 99% तक आत्मनिर्भर हो चुका है।

उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष लगभग 3.5 अरब डॉलर दवाओं और चिकित्सा उपकरणों के लिए आवंटित किए गए थे; यदि स्थानीय उत्पादन नहीं होता तो यह राशि 10 से 15 अरब डॉलर तक पहुँच सकती थी।

उन्होंने स्थानीय दवाओं की गुणवत्ता पर भी जोर दिया और आशा व्यक्त की कि खाद्य एवं औषधि प्रशासन की निगरानी में अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करते हुए अधिक सुरक्षित और प्रभावी दवाएं जनता को उपलब्ध कराई जाएंगी।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज्मा सैय्यद अली सिस्तानी की पत्नी के निधन पर आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने गहरा दुःख व्यक्त करते हुए शोक संदेश जारी किया है।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज्मा सैय्यद अली सिस्तानी की पत्नी के निधन पर आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने गहरा दुःख व्यक्त करते हुए शोक संदेश जारी किया है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता का सांत्वना संदेश इस प्रकार हैः

बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम

हज़रत आयतुल्लाह आक़ाए अलहाज सैयद अली सीस्तानी (अल्लाह आपके वजूद की बर्कत क़ायम रखे)

जनाब की माननीय पत्नी के निधन पर संवेदना पेश करता हूं और अल्लाह से उनके लिए रहमत और मग़्फ़ेरत की दुआ करता हूं।

सैयद अली ख़ामेनेई

29 सितम्बर 2025

काहिरा में शहीद सैय्यद हसन नसरुल्लाह की पहली बरसी के अवसर पर एक सांस्कृतिक सम्मेलन और किताब "अल-फिक्र अल-इस्ट्रातीजी फी मदरस अलसैयद हसन नसरुल्लाह (सैय्यद नसरुल्लाह के रणनीतिक विचार) का विमोचन किया गया यह किताब मिस्र के शोधकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक इहाब शौकी द्वारा लिखी गई है, जिसे "मरकज ए हेज़ारा अल-अरबिया" के प्रमुख अली अब्दुल हमीद ने प्रकाशित किया है।

काहिरा में शहीद सैय्यद हसन नसरुल्लाह की पहली बरसी के अवसर पर एक सांस्कृतिक सम्मेलन और किताब "अल-फिक्र अल-इस्ट्रातीजी फी मदरस अलसैयद हसन नसरुल्लाह (सैय्यद नसरुल्लाह के रणनीतिक विचार) का विमोचन किया गया यह किताब मिस्र के शोधकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक इहाब शौकी द्वारा लिखी गई है, जिसे "मरकज ए हेज़ारा अल-अरबिया" के प्रमुख अली अब्दुल हमीद ने प्रकाशित किया है।

इस कार्यक्रम में शामिल लोगों ने शहीद सैय्यद हसन नसरुल्लाह के प्रति अपनी श्रद्धा और गहरी कद्र जाहिर की और उनकी ऐतिहासिक भूमिका को श्रद्धांजलि अर्पित की। वक्ताओं ने कहा कि हालांकि उनकी शहादत और लेबनान, गाजा और यमन में कुर्बानियों ने दुख और अफसोस पैदा किया है, लेकिन साथ ही प्रतिरोध की मजबूती और सफलता पर भरोसा भी बढ़ा है।

कार्यक्रम में एक मिनट का मौन रखा गया जो लेबनानी प्रतिरोध के आह्वान पर एकता और एकजुटता के प्रतीक के रूप में मनाया गया। अधिकांश वक्ताओं ने शहीद सैय्यद हसन नसरुल्लाह की भूमिका की तुलना अरब दुनिया के महान नेता जमाल अब्दुल नासिर से की और उन्हें उम्मात के मार्गदर्शक, क्रांतिकारी व्यक्तित्व और अरब जनता के लिए प्रेरणा स्रोत बताया।

अली अब्दुल हमीद ने अपने संबोधन में प्रतिरोध की संस्कृति को बढ़ावा देने, अतीत की गलतियों से सबक लेने और सांप्रदायिकता के बजाय एकता की ज़रूरत पर जोर दिया। उन्होंने ईरान और हिज़्बुल्लाह का शुक्रिया अदा किया कि उन्होंने उम्मात के खालीपन को भरा और अब्दुल नासिर के क्रांतिकारी विचारों को जिंदा रखा।

किताब के लेखक इहाब शौकी ने अपने बयान में कहा कि मौजूदा हालात उम्मात इस्लामिया के खिलाफ "ग्रेटर इजराइल" के नारे के तहत एक रणनीतिक हमला हैं, जिनका मुकाबला सिर्फ एक व्यापक रणनीतिक रवैये से ही संभव है।

उन्होंने साफ किया कि यही सोच इस किताब की बुनियाद है जो सैय्यद नसरुल्लाह के रणनीतिक विचारों को उजागर करती है; वे विचार जिन्होंने हिज़्बुल्लाह को एक स्थानीय सशस्त्र गिरोह से एक प्रभावशाली और ताकतवर क्षेत्रीय शक्ति बना दिया।

शामिल लोगों ने अपने भाषणों में उम्माह के बीच मतभेदों की आलोचना की और इस बात पर जोर दिया कि प्रतिरोध की धुरी के इर्द-गिर्द एकजुट होना वक्त की जरूरत है। उन्होंने यमन के संघर्ष को गाजा की मदद और इस्लामी दुनिया की सुरक्षा के लिए निर्णायक बताया।

किताब के प्रकाशक ने घोषणा की कि इसे बरसी के अवसर पर एक मामूली कीमत पर प्रकाशित किया गया है ताकि व्यापक पैमाने पर इसका वितरण संभव हो सके।

लेखक ने यह किताब हिज़्बुल्लाह और "जामिआत ए मुकाविमत के नाम समर्पित की और कहा कि सैय्यद हसन नसरुल्लाह के बौद्धिक, संगठनात्मक और रणनीतिक पहलुओं को उजागर करना इसका मुख्य उद्देश्य है।

मंगलवार, 30 सितम्बर 2025 17:32

गज़्ज़ा में भूख से 150 बच्चे शहीद

फिलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने सूचित किया है कि गाज़ा में जारी घेराबंदी और गंभीर खाद्य संकट के कारण अब तक 453 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, जिनमें 150 बच्चे भी शामिल हैं।

फिलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने सूचित किया है कि गाजा में जारी घेराबंदी और गंभीर खाद्य संकट के कारण अब तक 453 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, जिनमें 150 बच्चे भी शामिल हैं।

स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र द्वारा गाजा में अकाल की स्थिति की घोषणा किए जाने के बाद से अब तक सिर्फ भूख और खाद्य कमी के कारण 175 लोग शहीद हुए हैं, जिनमें 35 बच्चे शामिल हैं।

स्वास्थ्य मंत्रालय ने चेतावनी दी है कि भोजन की कमी और अकाल का यह संकट लगातार गहरा रहा है और मौतों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है।

संयुक्त राष्ट्र के संगठन (आईपीसी) ने 31 अगस्त को गाजा में अकाल की आधिकारिक पुष्टि करते हुए भविष्यवाणी की थी कि सितंबर के अंत तक 6 लाख 40 हज़ार से अधिक लोग सबसे खराब खाद्य स्थितियों (चरण 5 आईपीसी) का शिकार होंगे।

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, गाजा में 5 साल से कम उम्र के 43 हज़ार से अधिक बच्चे गंभीर कुपोषण का शिकार हैं, जबकि अधिकांश मौतें अस्पतालों में दर्ज की जा रही हैं। हालांकि, गाजा की स्वास्थ्य प्रणाली, जो 70 प्रतिशत से अधिक नष्ट हो चुकी है इन मौतों का सही दर्ज करने में विफल है।