رضوی
घर परिवार और रिश्तेदारों के साथ हमेशा मिलना जुलना
इस्लाम ने जिन समाजी और सोशली अधिकारों की ताकीद की है और मुसलमानों को उनकी पाबंदी का हुक्म दिया है उनमें से एक यह है कि वह अपने घर परिवार और रिश्तेदारों के साथ हमेशा अच्छे सम्पर्क बनाये रखें इसी को सिल-ए-रहेम अर्थात रिश्तेदारों से मिलना जुलना कहा जाता है।
इस्लाम ने जिन समाजी और सोशली अधिकारों की ताकीद की है और मुसलमानों को उनकी पाबंदी का हुक्म दिया है उनमें से एक यह है कि वह अपने घर परिवार और रिश्तेदारों के साथ हमेशा अच्छे सम्पर्क बनाये रखें इसी को सिल-ए-रहेम अर्थात रिश्तेदारों से मिलना जुलना कहा जाता है।
इसलिये एक मुस्लमान के लिए ज़रूरी है कि अपने घर परिवार और रिश्तेदारों से मुलाक़ात करता रहे और उनके हाल चाल पूछा करे उनके साथ अच्छा व्यवहार रखे अगर ग़रीब हों तो उनकी सहायता करे, परेशान हाल हों तो उनकी मदद के लिए पहुँचे और उनके साथ घुल मिल कर रहे और नेक कामों तथा सदाचार और तक़वे में उन्हें सहयोग दे अगर कोई किसी मुसीबत में ग्रस्त हो जाए तो ख़ुद उनका शरीक हो जाए और अगर किसी को किसी मुश्किल का सामना हो हो तो उसे हल करने की कोशिश करे और अगर उनकी तरफ़ से ग़लत व्यवहार या कोई अनुचित काम देखे तो ख़ुबसूरत तरीक़े से उन्हें नसीहत करे। क्योंकि हर इंसान के घर परिवार और रिश्तेदारों ही उसके समर्थक होते हैं यानी अगर हालात के उलट फेर से उसके ऊपर कोई भी मुश्किल आ पड़ती है तो उसकी निगाहें उन्हीं की तरफ़ उठती हैं।
इसी लिए उनका इतना महान अधिकार है। हज़रत अली अ. फ़रमाते हैः
ایھا الناس انہ لا یستغنی الرجل و ان کان ذاعن عشیرتہ و دفاعھم عنہ بایدیھم والسنتھم وھم اعظم الناس حیطۃً من ورائہ والھم لشعثہ واعطفھم علیہ عند نازلۃ اذا نزلت بہ
ऐ लोगो ! कोई आदमी चाहे जितना मालदार हो वह आपने घर परिवार और रिश्तेदारों और क़बीले की ज़बानी या अमली और दूसरे प्रकार की सहायता से विमुक्त नहीं हो सकता है और जब उस पर कोई मुश्किल और मुसीबत पड़ती है तो उसमें सबसे ज़्यादा यही लोग उसका समर्थन करते हैं। (नहजुल बलाग़ा ख़ुत्बा न0 23) आप ने यह भी फ़रमायाः जान लो कि तुम में कोई आदमी भी अपने रिश्तेदारों को मोहताज देख कर उस माल से उसकी ज़रूरत पूरी करने से हाथ न ख़ींचे जो बाक़ी रह जाए तो बढ़ नहीं जाएगा और ख़र्च कर दिया जाए तो कम नहीं होगा इस लिए कि जो आदमी भी अपने क़ौम और क़बीले से अपना हाथ रोक लेता है तो उस क़बीले से एक हाथ रुक जाता है और ख़ुद उससे अनगिनत हाथ रुक जाते हैं और जिसके व्यवहार में नरमी होती है वह क़ौम की मुहब्बत को हमेशा के लिए हासिल कर लेता है। (नहजुल बलाग़ा ख़ुत्बा न0 23)
मौला ने इस स्थान पर परिवार वालों या रिश्तेदारों से सम्बंध तोड़ लेने से नुक़सान की बेहतरीन मिसाल दी है कि उसके अलग हो जाने की वजह से घर परिवार और रिश्तेदारों को केवल एक आदमी का नुक़सान होता है मगर वह ख़ुद अपने अनगिनत हमदर्दों को खो बैठता है इस तरह आपने इस बात की तरफ़ भी इशारा फ़रमाया किः अच्छे व्यवहार द्वारा घर परिवार और रिश्तेदारों की मोहब्बतें हासिल होती हैं जिस में अनगिनत भलाईयाँ पाई जाती हैं। निश्चित रूप से हर बड़े ख़ानदान या क़बीले और समाज में बहुत सारे लोग पाए जाते हैं जिन की क्षमताएं, सम्भावनाएं और योग्यताएं भी भिन्न होती हैं, आप को उनके अंदर आलिम, जाहिल, मालदार, ग़रीब, स्वस्थ, शक्तिशाली, कमज़ोर, या बिल्कुल पिछड़े हुए, हर प्रकार के लोग मिल जाएंगे। तो आख़िर वह ऐसी कौन सी चीज़ है जो उस समाज को एक ताक़तवर, विकसित और बिल्कुल मॉडरेट समाज बना सकती है?
निश्चित रूप से आपसी सम्बंध और सम्पर्क का स्थिरता या ज़िम्मेदारी के एहसास जो एक दूसरे की सहायता तरक़्की और सहयोग से पैदा होते हैं यही वह चीज़ें हैं जिन के द्वारा हम उस नेक मक़सद तक पहुँच सकते हैं और उसका तरीक़ा यह है कि हर मालदार अपनी क़ौम के ग़रीबों का दामन थाम ले, ताक़तवर अपनी क़ौम के कमज़ोर तबक़े के अधिकारों का समर्थन करे और दुश्मनों के मुक़ाबले में उनके अधिकारों के लिए उनके साथ उठ ख़ड़ा हो।
बेशक किसी भी क़ौम और समाज में रिश्तेदारों से मिलने जुलने की की बदौलत एक मज़बूत ताक़तवर और समामानित समाज वजूद में आता है। यही वजह है कि इस्लाम ने मुसलमानों को आपसी भाई चारा और बरादरी को मज़बूत से मज़बूत बनाने की ताकीद की है और किसी भी हाल में उन से सम्पर्क को तोड़ने या उन्हें कमज़ोर करने के ख़तरों से उन्हे बख़ूबी आगाह कर दिया है। और हदीसे शरीफ़ा में तो रिश्तेदारों से मिलने जुलने को इस क़दर अहमियत और बुलंद दर्जा दिया गया है कि उसे दीन और ईमान बताया गया है जैसा कि इमाम-ए-मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अपने पाक पूर्वजों के माध्यम से हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिही वसल्लम की यह रेवायत नक़्ल फ़रमाई है कि आपने फ़रमायाः अपनी उम्मत के मौजूदा और ग़ैर मौजूदा यहां तक कि मर्दों के सुल्बों और औरतों के रहमों में मौजूद और क़्यामत तक आने वाले हर आदमी से मेरी वसीयत यह है कि अपने घर परिवार और रिश्तेदारों के साथ मिलना जुलना रखें, चाहे वह उससे एक साल की दूरी के फ़ासले पर क्यों न रहते हों क्योंकि यह दीन का हिस्सा है।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने भी हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की यह रेवायत नक़ल फ़रमाई है कि आप ने फ़रमायाः जिसे यह ख़वाहिश है कि अल्लाह तआला उसकी उम्र में इज़ाफ़ा फ़रमा दे और उसके खुराक को वसी कर दे तो वह रिश्तेदारों से मिलना जुलना करे क्योंकि क़्यामत के दिन रहम को ज़बाले मानो दि जाएगी और वह अल्लाह की बारगाह में अरज़ करे गी, बारे इलाहा जिस ने मुझे जोड़ा तू उससे सम्पर्क क़ायम रखना और जिस ने मुझे क़ता किया तू भी उससे सम्पर्क तोड़ लेना। इमाम-ए-रज़ा अलैहिस्सलाम ने अपने पाक पूर्वजों के वास्ते से हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की यह हदीसे शरीफ़ नक़ल फ़रमायी है कि अपने फ़रमाया जो आदमी मुझसे एक बात का वादा कर ले मैं उसके लिए चार चीज़ों की ज़मानत लूँगाः अपने घर परिवार और रिश्तेदारों से मिलना जुलना रखे तो अल्लाह तआला उसे अपना चहेता रखेगा, उसके खुराक को उस पर ज़्यादा कर देगा, उस की उम्र को बढ़ा देगा और उसको उस जन्नत में दाख़िल करेगा जिसका उससे वादा किया है। इमाम-ए-मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं रिश्तेदारों से मिलना जुलना, काम को पाक़ीज़ा और संपत्ति को ज़्यादा कर देता है बलाओं को दूर करता है और मौत को टाल देता है।
आपने एक ख़ुत्बे में इरशाद फ़रमायाः इस में दीन व ईमान, लम्बी उम्र, खुराक में वृद्धि, अल्लाह की मोहब्बत व रेज़ा और जन्नत किया कुछ मौजूद नहीं हैं यह रिश्तेदारों से मिलना जुलना ही है जो दुनिया में इंसान की अमीरी और आख़ेरत में उसकी जन्नत की गारंटी देता है और अल्लाह की मरज़ी तो सबसे बड़ी है। जिसके मानी यह हैं कि वह दुनिया में पाक ज़िंदगी और आख़ेरत में रौशन और ताबनाक ज़िंदगी का मालिक है। रिश्तेदारों से मिलने जुलने की इतनी अहमियत और महानता को पहचानने के बाद क्या अब भी यह बहाना बनाना सही है कि घर परिवार और रिश्तेदारों से हम बहुत फ़ासले पर हैं या काम की ज़्यादती की आधार पर हम बहुत ज़्यादा बिज़ी हैं इसलिये उनसे सम्पर्क नहीं रख पाते हैं? और ख़ास तौर से अगर किसी का कोई सम्बंधी किसी के ज़ुल्म का शिकार हो तो क्या उसके लिए यह कार्य विधि वस्तुतः जाएज़ है? पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम और अइम्मा-ए-ताहेरीन ने हर मोमिन के लिए एक ऐसा रौशन और स्पष्ट रास्ता बना दिया है जिस पर चलने वाले हर आदमी से अल्लाह राज़ी रहेगा। रिवायात में है कि पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम से किसी ने यह शिकायत की कि मुझे मेरी क़ौम वाले यातना पहुंचाते हैं इसलिये मैं ने यही बेहतर समझा है कि उनसे सम्बंध तोड़ लूँ तो पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने इरशाद फ़रमायाः अल्लाह तआला तुम से नाराज़ हो जाएगा। उसने पूछा या रसूल अल्लाह फिर मैं किया करूँ ? आपने फ़रमायाः जो तुम्हें महरूम करे उसे अता कर दो, जो तुम से सम्पर्क तोड़े उससे सम्पर्क क़ायम रखो जो तुम्होरे ऊपर ज़ुल्म करे उसे माफ़ कर दो, अगर तुम ऐसा करोगे तो उनके मुक़ाबले के लिए अल्लाह तआला तुम्हारा यारो मदद गार है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः अपने घर परिवार और रिश्तेदारों से मिलना जुलना रखो चाहे वह तुम से सम्बंध तोड़ लें। हज़रत इमाम-ए-जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः रिश्तेदारों से मिलना जुलना और नेक व्यवहार हेसाब को आसान कर देता है, और गुनाहों से महफ़ूज़ रखता है, इसलिये अपने घर परिवार और रिश्तेदारों के साथ मिलना जुलना रखो और अपने भाईयों के साथ नेक व्यवहार करो चाहे अच्छे अंदाज़ में सलाम करके या उसका जवाब देकर ही क्यों ना हो। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने इरशाद फ़रमायाः अपने रिश्तेदारों से मिलना जुलना करो चाहे सलाम के द्वारा ही क्यों हो। आप ही से यह भी रिवायत हैः अपने घर वालों से, रिश्तेदारों से मिलना जुलना करो चाहे एक घूँट पानी के द्वारा हो और रिश्तेदारों से मिलने जुलने का सबसे बेहतरीन तरीक़ा यह है कि अपने घर परिवार वालों को यातना न दी जाए। उल्लिखित हदीस से बख़ूबी समझा जा सकता है कि अच्छे सम्बंध और सम्पर्क के स्थिरता पर और उनके बनाये रखने में रिश्तेदारों से मिलने जुलने की किया भूमिका है बहुत सम्भव है कि आप किसी से दूर होने कि वजह पर उससे मुलाक़ात ना कर सकें लेकिन उसके नाम आप का एक ख़त ही आप की तरफ से मुहब्बत के इज़हार और रिश्तेदारों से मेल मिलाप के लिए काफ़ी हो यानी जिस तरह आप अपने आस पास मौजूद घर परिवार और रिश्तेदारों को चहेक कर सलाम करते हैं यह ख़त भी उसी तरह एक रिश्तेदारों से मिलना जुलना है यहां तक कि कि किसी के लिए किसी बर्तन में पानी पेश करना, यहां तक कि अगर उन्हें कोई यातना ना पहुँचाए तो यह भी एक प्रकार का रिश्तेदारों से मिलना जुलना है बल्कि पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्मत्फ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने उस को रिश्तेदारों से मिलने जुलने का सबसे अच्छा तरीक़ा बताया है।
शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह हमेशा हमारे दिलों, दिमागों और ज़मीरो में जिंदा रहेंगें
लेबनान के शहर बअलाबक के दारुल हिक्मा अस्पताल में शहीद सैय्यद हसन नसरुल्लाह, सैय्यद हाशिम सफ़ीउद्दीन और उस अस्पताल के तीन कर्मचारियों की शहादत की बरसी मनाई गई।
लेबनान के शहर बअलाबक के दारुल हिक्मा अस्पताल में शहीद सैय्यद हसन नसरुल्लाह, सैय्यद हाशिम सफ़ीउद्दीन और उस अस्पताल के तीन कर्मचारियों की शहादत की बरसी मनाई गई।
रिपोर्ट के मुताबिक इस कार्यक्रम में "प्रतिरोध के प्रति निष्ठा" समूह और लेबनान की संसद के सदस्य अली मकदाद, अस्पताल के निदेशक और पूर्व प्रतिनिधि जमाल अलतकश तथा प्रशासनिक, चिकित्सा, नर्सिंग और तकनीकी कर्मचारियों और स्वास्थ्य व सामाजिक हस्तियों ने भाग लिया।
लेबनानी संसद के सदस्य ने अपने संबोधन में क्षेत्र की जनता को अस्पताल द्वारा प्रदान की जाने वाली महान सेवाओं की सराहना की और शहीद सैय्यद हसन नसरुल्लाह और सैय्यद हाशिम सफ़ीउद्दीन को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा, इन महान शहीदों ने अस्पताल का समर्थन करके इसे भौतिक और आध्यात्मिक सहायता प्रदान की ताकि यह संस्थान हमारी महान और वफादार जनता के ज़ख्मों पर मरहम बन सके।
उन्होंने कहा, शहीद सैय्यद नसरुल्लाह हमारे बीच से नहीं गए हैं बल्कि वह हमारे दिलों, दिमागों और अंतरात्मा में जिंदा हैं। वह असाधारण व्यक्तित्व न केवल हमारे लिए बल्कि पूरी दुनिया के स्वतंत्र लोगों के लिए एक प्रेरणादायक नेता थे और हैं।
आदरणीय अली मेकदाद ने आगे कहा, हम अल्लाह से वादा करते हैं, जैसा कि हमने सभी शहीदों से वादा किया है, कि इस प्रतिरोध को हमारी आत्मा, दिमाग और ज़मीन पर सुरक्षित, पाला-पोसा और फैलाया जाएगा। हम शहीदों के खून को भी सुरक्षित रखेंगे जिसे हम अपने ऊपर एक अमानत समझते हैं। यह एक नैतिक मानवीय और ईश्वरीय कर्तव्य भी है।
शहीद नसरूल्लाह की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता कुरान में उनकी शिक्षा थी
शहीद ए मुक़ावेमत सय्यद हसन नसरूल्लाह उन उदाहरणों में से एक हैं जिनके बारे में पवित्र कुरान कहता है: "ईमान वालों में ऐसे लोग भी हैं जो अल्लाह से किए गए अपने वादे पर खरे उतरते हैं।" युवाओं और प्रियजनों को यह जानना चाहिए कि जीवन का सही मार्ग यही है कि हम इसी मार्ग पर चलें।
मरकज़े फ़िक़्ही आइम्मा अत्हार (अ) के प्रमुख आयतुल्लाह मोहम्मद जवाद फ़ाज़िल लंकरानी ने शहीद सय्यद हसन नसरूल्लाह की बरसी के अवसर पर उनके व्यक्तित्व के बारे में बात की और कहा: अगर हम मासूमीन के बाद के धार्मिक नेताओं के जीवन पर नज़र डालें, चाहे वे इमाम खुमैनी (र) हों या क्रांति के सर्वोच्च नेता और अन्य प्रमुख धार्मिक हस्तियाँ, उन सभी ने कुरान की छाया में प्रशिक्षण प्राप्त किया है।
उन्होंने आगे कहा: इमाम खुमैनी की महानता का रहस्य कुरान से उनका लगाव था, और यह विशेषता क्रांति के सर्वोच्च नेता में भी देखी जा सकती है। शहीद सय्यद हसन नसरूल्लाह भी अपनी सभी विशेषताओं के साथ कुरान की शिक्षा प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति थे।
उन्होंने कहा: यह एक वाजिब सवाल है कि शहीद सय्यद हसन नसरूल्लाह जैसे साधारण शिष्य इस मुकाम तक कैसे पहुँचे? इसका उत्तर यह है कि उन्होंने खुद को एक शिष्य घोषित किया और कुरान की शिक्षा ली। तीस वर्षों के निरंतर संघर्ष और संघर्ष के बावजूद, महाशक्तियाँ उन्हें पराजित नहीं कर सकीं और अंततः संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा आपूर्ति किए गए इज़राइली बमों द्वारा उन्हें शहीद कर दिया गया, जो उनकी लंबे समय से पोषित इच्छा थी।
आयतुल्लाह फ़ाज़िल लंकरानी ने आगे कहा: क्रांति के सर्वोच्च नेता के अनुसार, शहीद नसरूल्लाह एक "महान योद्धा" थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन जिहाद में बिताया और वास्तव में इस पवित्र आयत *"और ईमान वालों में ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने अल्लाह के साथ अपना वादा पूरा किया है"* का साकार रूप बन गए। उन्होंने कहा: सय्यद हसन नसरूल्लाह ने तीस वर्षों तक इस्लाम की रक्षा की और इमाम खुमैनी तथा सर्वोच्च नेता की अंतर्दृष्टि से यह समझ लिया कि इज़राइल इस्लाम को नष्ट करने में लगा हुआ है, इसलिए उन्होंने पूरी ताकत से इस्लाम की रक्षा की। आयतुल्लाह फ़ाज़िल लंकरानी ने सफलता का रहस्य समझाते हुए कहा: सय्यद हसन नसरूल्लाह ने हमेशा अपनी धार्मिक ज़िम्मेदारियों को बुद्धिमत्ता और चतुराई से निभाया। सभी को यह देखना चाहिए कि हमारे समय में बुद्धिमत्ता और चतुराई की क्या आवश्यकता है। जब दुश्मन हवाई और मिसाइलों से हमला कर रहा हो, तो लेबनान में मानव सेना भेजना उचित नहीं है। बेशक, युवाओं का जुनून और मैदान में उतरने की उनकी इच्छा सराहनीय है, लेकिन मुद्दा यह है कि सर्वोच्च नेता क्या कहते हैं, यह देखें। हमें बुद्धिमता और चतुराई से हर कदम के लिए खुद को तैयार करना होगा और आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराने होंगे।
शहीद नसरुल्लाह और शहीद सफ़ीउद्दीन कुरआन के अनुसार मुजाहिद फी सबीलिल्लाह के सही उदाहरण
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन नासिर रफीई, जामिया अलमुस्तफा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के शैक्षणिक सदस्य ने कहा कि शहीद सैय्यद हसन नसरुल्लाह और शहीद सैय्यद हाशिम सफ़ीउद्दीन सूरा आल ए इमरान की आयत 146 में वर्णित मुजाहिदीन फी सबीलिल्लाह की पांच प्रमुख विशेषताओं के सही उदाहरण थे।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन नासिर रफीई ने हज़रत मासूमा (स.ल.) के पवित्र मज़ार पर आयोजित एक शोक सभा में यह बात कही। उन्होंने कहा कि अल्लाह तआला ने मुजाहिदीन की पांच विशेषताएं बताई हैं,अल्लाह-केंद्रितता, दृढ़ता, कमजोरी से बचना, दुश्मन के सामने न झुकना और धैर्य। ये सभी विशेषताएं शहीद नसरुल्लाह और उनके साथियों के चरित्र और संघर्ष में स्पष्ट थीं, खासकर लेबनान के 33-दिवसीय युद्ध और गाजा के प्रतिरोध में।
उन्होंने इमाम हसन अस्करी (अ) के कथन का हवाला देते हुए कहा कि सच्चे शिया वे हैं जो ईमान और अच्छे कर्म रखते हैं अल्लाह की राह में शहादत से नहीं डरते और दूसरों को अपने ऊपर प्राथमिकता देते हैं। यही गुण शहीद नसरुल्लाह के व्यक्तित्व में दिखाई देती थी।
हुज्जतुल इस्लाम रफीई ने कहा कि शहीद नसरुल्लाह की लोकप्रियता आज दुनिया भर में स्पष्ट है यूरोप से लेकर अफ्रीका तक और खेल के मैदानों से लेकर सांस्कृतिक कार्यक्रमों तक, फिलिस्तीन का झंडा और नसरुल्लाह का नाम गूंज रहा है यह कुरआन की उस खुशखबरी का प्रतीक है कि अल्लाह रहमान उनके लिए प्यार पैदा कर देगा।
उन्होंने आगे कहा कि महान नेता रहबर-ए-मोअज़्ज़म ने अपने शोक संदेश में शहीद नसरुल्लाह को "मुजाहिद-ए-कबीर "परचमदार-ए-मुकाविमत आलिम-ए-बा-फज़ीलत"मुदीर-ए-सियासी रहबर-ए-कम-नज़ीर और "एक मकतब बताया। यह इस बात का प्रमाण है कि सैय्यद हसन नसरुल्लाह केवल एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक तरीका और एक स्थायी आंदोलन थे।
अंत में, उन्होंने कहा कि शहीद नसरुल्लाह का इमाम हुसैन (अ.स.) की मजलिस-ए-अज़ारदारी से जुड़ाव और इमाम के साथ गहरे आध्यात्मिक संबंध इस बात का प्रमाण हैं कि वे न केवल एक राजनीतिक और सैन्य नेता थे, बल्कि एक सच्चे हुसैनी मुजाहिद भी थे। आज उनका मज़ार दुनिया के मुक्तिकामी लोगों के लिए एक तीर्थस्थल है और प्रतिरोध का झंडा उनके उत्तराधिकारियों के हाथों में ऊंचा रहेगा।
फ़्लोटिला काफ़िले पर हमला एक और अमानवीय कार्य
असग़रिया स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन पाकिस्तान ने गाज़ा के मजलूम लोगों के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए इजरायली आक्रमण और बर्बरता की कड़ी निंदा की है।
असग़रिया स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन पाकिस्तान ने गाज़ा के मजलूम लोगों के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए इजरायली आक्रमण और बर्बरता की कड़ी निंदा की है।
असग़रिया स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन के नेता सकलैन अली जाफरी ने कहा कि हाल के दिनों में "समुद्री फ़्लोटिला" के काफ़िले पर इजरायली बलों द्वारा हमला और उसमें शामिल वैश्विक हस्तियों, विशेष रूप से सीनेटर मुश्ताक अहमद और अन्य साथियों को गिरफ्तार करना न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों का खुला अपमान भी है।
उन्होंने आगे कहा कि हम स्पष्ट करते हैं कि मानवता की सेवा और मजलूम फिलिस्तीनी लोगों के पक्ष में उठने वाली हर आवाज़ को दबाना इजरायल और उसके संरक्षकों की घिनौनी मंशा को उजागर करता है। दुनिया के विवेक को झकझोर देने वाले ये लोग मानवता के सच्चे नायक हैं जिनके बलिदानों को इतिहास हमेशा याद रखेगा।
उन्होंने आगे कहा कि असग़रिया स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन की मांग है कि संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकारों की वैश्विक संस्थाएं तुरंत इजरायली अत्याचारों पर ध्यान दें, सभी गिरफ्तार प्रतिभागियों की तत्काल रिहाई सुनिश्चित करें और फिलिस्तीनी लोगों को उनका अधिकार-आज़ादी दिलाने में अपनी भूमिका निभाएं। फिलिस्तीन की आज़ादी तक हमारा समर्थन और संघर्ष जारी रहेगा।
तंज़ीम अल-मकातिब में आयतुल्लाह सिस्तानी की पत्नी के निधन पर शोक सभा
तंज़ीम अल-मकातिब के सचिव मौलाना सय्यद सफ़ी हैदर ने आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली अल-हुसैनी सिस्तानी की पत्नी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि दिवंगत महिला एक विद्वान, गुणी और प्रतिष्ठित महिला थीं, जिनकी महानता का अंदाज़ा उनके विनम्र और ज्ञानी वंश से लगाया जा सकता है।
आदरणीय मरजा हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली अल-हुसैनी सिस्तानी, तंज़ीम अल-मकातिब की पत्नी के निधन पर तंज़ीम अल-मकातिब कार्यालय, लखनऊ में एक शोक सभा आयोजित की गई।
इस अवसर पर, तंज़ीम अल-मुकातब के सचिव, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सय्यद सफी हैदर ने इस महान परिवार की विद्वान और गुणी महिला और महान शिया जगत की जीवनसंगिनी मरजा के निधन पर अपनी संवेदना और सहानुभूति व्यक्त की और संस्था में एक शोक सभा का आयोजन किया।
मौलाना सय्यद सफी हैदर ने अपने संबोधन में कहा कि दिवंगत महिला की महानता का अंदाजा उनके गरिमामय, विनम्र और ज्ञानवान वंश से लगाया जा सकता है।
सभा की अध्यक्षता मौलाना सय्यद अली महजब खुर्द नकवी ने की। इस अवसर पर मौलाना सय्यद मुमताज जाफ़र, मौलाना सय्यद तहजीब-उल-हसन, मौलाना फ़िरोज़ अली, मौलाना सय्यद सगीर-उल-हसन, मौलाना सय्यद राहत हुसैन, मौलाना असकरी आबिद, मौलाना सय्यद हैदर अली, मौलाना सय्यद असगर अब्बास और अन्य विद्वानों के साथ-साथ तंज़ीम अल-मकातिब कार्यालय के कर्मचारी और जामिया इमामिया तंज़ीम अल-मकातिब के छात्र भी उपस्थित थे।
इस अवसर पर उपस्थित लोगों ने कुरआन और सूरह फ़ातिहा की तिलावत के माध्यम से दिवंगत के लिए दुआए की। अंत में, हज़रत आयतुल्लाह सय्यद अली अल-हुसैनी सीस्तानी (द ज) के स्वास्थ्य और सुरक्षा तथा दिवंगत के उच्च पदों के लिए दुआएँ की गईं।
ट्रम्प का 20-सूत्री एजेंडा; फिलिस्तीनियों की आकांक्षाओं के विपरीत है
एमडब्ल्यूएम पाकिस्तान के नेता ने एक बयान में कहा है कि जनता किसी भी स्थिति में वैश्विक साम्राज्यवाद की इब्राहिमी समझौते की समर्थन को स्वीकार नहीं करती अमेरिकी राष्ट्रपति यदि क्षेत्र में शांति के सच्चे हितैषी हैं तो मुट्ठी भर इज़राईलीयों को किसी भी यूरोपीय देश में बसने दें।
मजलिस ए वहदत ए मुस्लिमीन पाकिस्तान के प्रांतीय अध्यक्ष अल्लामा बाकिर अब्बास जैदी ने पिछले दिन अमेरिकी और इजरायली राष्ट्रपतियों के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि देश की जनता फिलिस्तीनी राष्ट्र के साथ है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प का प्राथमिक लक्ष्य इजरायली हितों की रक्षा करना है। अमेरिकी राष्ट्रपति का गाजा युद्धविरारे का प्रस्ताव नहीं, बल्कि फिलिस्तीनी भूमि का पूर्ण सफाया है।
उन्होंने आगे कहा कि ट्रम्प को युद्धविरारे से अधिक इजरायली कैदियों को छुड़ाने की जल्दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति इब्राहिम एकॉर्ड समझौता इजरायली हित में पाकिस्तान पर थोप रहे हैं।
अल्लामा बाकिर जैदी ने आगे कहा कि इब्राहिमी समझौते पर ट्रम्प द्वारा पाकिस्तान की कथित समर्थन के खुलासे की निंदा करते हैं। देश की जनता किसी भी स्थिति में वैश्विक साम्राज्यवाद के इब्राहिमी समझौते की समर्थन को स्वीकार नहीं करती। अमेरिकी राष्ट्रपति यदि क्षेत्र में शांति के सच्चे हितैषी हैं, तो मुट्ठी भर सियोनियों को किसी भी यूरोपीय देश में बसने दें।
उन्होंने कहा कि आज दुनिया भर में मजलूम फिलिस्तीनियों के आत्मनिर्णय के अधिकार की प्रभावी आवाज उठ रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति का एजेंडा दुनिया भर में फिलिस्तीन के मुद्दे को अलग-थलग करना है। पाकिस्तान की जनता हमास के इस्लामी संघर्ष और आत्मनिर्णय के अधिकार की समर्थक है।
उनका आगे कहना था कि पिछले दो सालों से इजरायली बर्बरता का बहादुरी से सामना और दृढ़ता पर गाजा के मजलूम लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। इजरायल वेस्ट बैंक सहित गाजा पर लगातार हमले कर रहा है। क़िबला-ए-अव्वल (अक्सा मस्जिद) और पवित्र भूमि से आस्थागत जुड़ाव हर स्वाभिमानी मुसलमान की पूंजी है।
एमडब्ल्यूएम के नेता ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के 21-सूत्री एजेंडे का लक्ष्य ग्रेटर इजरायल परियोजना की पूर्ति है। वैश्विक समुदाय फिलिस्तीनियों को अपने फैसले खुद करने का अधिकार लाए।
एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राष्ट्र की स्थापना आवश्यक है। फिलिस्तीन समस्या का समाधान जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप होना चाहिए। फिलिस्तीनी जनता और हितधारकों के बिना कोई भी एजेंडा स्वीकार्य नहीं है।
उन्होंने आगे कहा कि 21-सूत्री ट्रम्प एजेंडा फिलिस्तीनियों के आत्मनिर्णय के अधिकार के विरुद्ध है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की इस समझौते पर पुष्टि फिलिस्तीनी मुद्दे को नुकसान पहुंचाने के बराबर है। सरकार को ट्रम्प के 21-सूत्री समझौते का समर्थन करने से पहले संसदीय और जनमत संग्रह कराना चाहिए।
ज़ुल्म और मासीयत क़यामत की तारीकी हैं। आयतुल्लाह हाशिमी अलिया
आयतुल्लाह हाशिमी अलिया संस्थापक मदरसा इल्मिया क़ायम अ.ज. शहर चीज़र ने अपने दर्स-ए-अख़लाक में कहा कि ज़ुल्म और गुनाह इंसान की ज़िंदगी को तबाह और क़यामत में उसके लिए अंधेरा का सबब बनता हैं।
आयतुल्लाह हाशिमी अलिया संस्थापक मदरसा इल्मिया क़ाएम अ.ज. शहर चीज़र ने अपने दर्स-ए-अख़लाक में कहा कि ज़ुल्म और गुनाह इंसान की ज़िंदगी को तबाह और क़यामत में उसके लिए तारीकी का बाइस बनते हैं।
उन्होंने विलादत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) की मुनासिबत से मुबारकबाद पेश करते हुए फ़रमाया कि ज़ुहूर इमाम ज़माना (अज) के लिए दुआ और विनती इंसान की अहम ज़िम्मेदारी है। उनका कहना था कि मौजूदा वैश्विक हालात ज़ुल्म से भरे हुए हैं और हमें दुआ करनी चाहिए कि ख़ुदावंद मुतआल इंसानियत को इस अंधेरे से निजात दे।
आयतुल्लाह हाशिमी अलिया ने कहा कि जुर्म और गुनाह इंसान की सआदत (कल्याण) और आराम को छीन लेता हैं और सबसे ज़्यादा तबाह कुन चीज़ ज़ुल्म है जो न सिर्फ दुनिया बल्कि आख़िरत को भी अंधेरा कर देता है। रसूल-ए-अकरम (स.ल.) ने फ़रमाया,अगर क़यामत में नूर चाहते हो तो किसी पर ज़ुल्म न करो।
उन्होंने आगे कहा कि गुनाह दरअसल अपने आप पर ज़ुल्म है। क़यामत के दिन इंसान पशेमानी (पछतावे) से कहेगा काश मैंने अंबिया और आइम्मा (इमामों) की बात सुनी होती। ज़ुल्म की तीन क़िस्में हैं; शिर्क (अल्लाह के साथ साझीदार ठहराना) जो नाकाबिल-ए-बख़्शिश (माफ़ी के लायक नहीं) है, इंसान का अपने नफ़्स पर ज़ुल्म जो बख़्शिश के लायक है, और बंदों पर ज़ुल्म जिसकी सख़्त सज़ा मुक़र्रर है।
आयतुल्लाह हाशिमी अलिया ने ज़ोर देकर कहा कि मज़लूम को भी सब्र व तहम्मुल (धैर्य और सहनशीलता) के साथ अपने हक़ का दीनी तरीके से दिफ़ा (बचाव) करना चाहिए और अगर वह ताक़त न रखता हो तो मामला ख़ुदा पर छोड़ देना चाहिए जो बेहतरीन इंतिक़ाम लेने वाला है।
उन्होंने वज़ाहत की कि तर्क-ए-वाजिबात और इरतिकाब-ए-मुहर्रमात (वर्जित कार्य करना) नफ़्स पर ज़ुल्म है और अस्ल कामयाबी इसी में है कि इंसान रोज़ाना तौबा (पश्चाताप) करे अपनी इस्लाह (सुधार) करे और तज़किया-ए-नफ़्स के ज़रिए शैतान के जाल से बचे।
इजरायल के साथ युद्ध की कोई संभावना नहीं, ईरानी सशस्त्र बल हर पल तैयार
ईरान की इस्लामिक क्रांति गार्ड्स कॉर्प्स (IRGC) के कमांडर इन चीफ के सांस्कृतिक और मीडिया सलाहकार ने कहा,इजरायल के साथ युद्ध की कोई संभावना नहीं है अब इजरायल में ईरान पर हमला करने की हिम्मत नहीं होगी।
IRGC के कमांडर इन चीफ के सांस्कृतिक और मीडिया सलाहकार, हमीद रज़ा मक़दम फर ने कहा,सभी ईरानी सैन्य, सुरक्षा और रक्षा बल पूरी तरह से तैयार हैं, इसलिए तर्क यह कहता है कि इजरायल ईरान के साथ युद्ध मोल लेने की स्थिति में नहीं है।
उन्होंने आगे कहा,दुश्मन ईरान को आर्थिक रूप से कमजोर करने के लिए नकारात्मक प्रचार कर रहा है।
IRGC के कमांडर इन चीफ के सांस्कृतिक और मीडिया सलाहकार ने कहा, इजरायल ईरान पर हमला करने की हिम्मत नहीं करेगा क्योंकि हमारे सशस्त्र बल किसी भी आक्रामक कार्रवाई का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए पूरी तरह से हर समय तैयार हैं।
अमेरिका से दोस्ती अतीत में भी पाकिस्तान को महंगी पड़ी है
जमीयत-उलेमा-ए-इस्लाम पाकिस्तान के नेता ने इस्लामाबाद में मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा महत्वपूर्ण है लेकिन हमें याद है कि किसी भी मुसीबत में अमेरिका ने हमारी मदद नहीं की जो चीन ने की। अमेरिका के साथ दोस्ती अतीत में भी हमें महंगी पड़ी है।
जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम पाकिस्तान के केंद्रीय महासचिव और राष्ट्रीय असेंबली के सदस्य मौलाना अब्दुल ग़फूर हैदरी ने यह कहते हुए कि अमेरिका को हवाई अड्डे देने से क्षेत्र में शांति का विनाश होगा, कहा कि हमें याद है कि किसी भी मुसीबत में अमेरिका ने हमारी वह मदद नहीं की जो चीन ने की। अमेरिका के साथ दोस्ती अतीत में भी हमें महंगी पड़ी है।
इस्लामाबाद में मीडिया से बातचीत करते हुए मौलाना अब्दुल ग़फूर हैदरी ने कहा कि प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा महत्वपूर्ण है लेकिन हमें याद है कि किसी भी मुसीबत में अमेरिका ने हमारी वह मदद नहीं की जो चीन ने की। अमेरिका के साथ दोस्ती अतीत में भी हमें महंगी पड़ी है।
उन्होंने कहा कि अगर शासक अमेरिका के साथ चलना चाहते हैं तो धीरे-धीरे चलें, मीठी बातों में फिर से पाकिस्तान का इस्तेमाल न किया जाए। अगर अमेरिका और हमारे अन्य दुश्मनों की पृष्ठभूमि में हाथ न हों तो कई जगह हालात बेहतर होते। पाकिस्तान को चीन के साथ अपने संबंध और मजबूत करने होंगे।
जमीयत-उलेमा-ए-इस्लाम पाकिस्तान के नेता ने आगे कहा कि चीन ने हर मुश्किल समय में पाकिस्तान का साथ दिया है। चीन के शिनजियांग प्रांत में 60% मुसलमान रहते हैं, चीन ने इस क्षेत्र के विकास के लिए 80 अरब डॉलर खर्च करने की घोषणा की है। अगर चीन इस प्रांत को विकास के लिए प्राथमिकता दे रहा है तो पाकिस्तान को भी ऐसा ही करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि बलूचिस्तान की स्थिति में सुधार के लिए केंद्र सरकार की ओर से भी कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। तफ्तान तक की यात्रा एक सिंगल हाईवे से करनी पड़ती है, जिसके कारण कई दुर्घटनाएं भी होती हैं।
मौलाना अब्दुल ग़फूर हैदरी ने कहा कि जेयूआई-पी सऊदी अरब समझौते को सराहना की नज़र से देखती है। हमने अतीत में भी कहा था कि मुस्लिम उम्मा एकजुट होकर रक्षा और आधुनिक प्रौद्योगिकी के समझौते करें।
उन्होंने आगे कहा कि मौलाना फ़ज़ल उर-रहमान ने इस संदर्भ में अतीत में बहुत प्रयास किए थे। हमारा मानना है कि इस रक्षा समझौते का प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ेगा। हमारी इच्छा है कि दुनिया के अन्य मुस्लिम देश भी इसमें शामिल हों, ताकि किसी भी मुस्लिम देश पर हमला हो तो मिलकर मुकाबला किया जा सके।
उन्होंने आगे कहा कि इज़राइल एक छोटा सा देश है लेकिन उसने फिलिस्तीन में बर्बरता और हत्याकांड कर डाले हैं। अगर इज़राइल युद्धविराम के लिए तैयार हुआ है तो इसमें इस पाक-सऊदी समझौते का ही महत्व है। मेरा मानना है कि अगर ईरान सहित अन्य इस्लामिक देश भी इस समझौते में शामिल हों तो यह और मजबूत होगा।













