
رضوی
हजरत अली (अ.स) का इन्साफ और उनके मशहूर फैसले
रसूल(स.) के बाद धर्म के सर्वोच्च अधिकारी का पद अल्लाह ने अहलेबैत को ही दिया। इतिहास का कोई पन्ना अहलेबैत में से किसी को कोई ग़लत क़दम उठाते हुए नहीं दिखाता जो कि धर्म के सर्वोच्च अधिकारी की पहचान है। यहाँ तक कि जो राशिदून खलीफा हुए हैं उन्होंने भी धर्म से सम्बंधित मामलों में अहलेबैत व खासतौर से हज़रत अली(अ.) से ही मदद ली।
अगर ग़ौर करें रसूल(स.) के बाद हज़रत अली की जिंदगी पर तो उसके दो हिस्से हमारे सामने ज़ाहिर होते हैं। पहला हिस्सा, जबकि वे शासक नहीं थे, और दूसरा हिस्सा जबकि वे शासक बन चुके थे। दोनों ही हिस्सों में हमें उनकी जिंदगी नमूनये अमल नज़र आती है। बहादुरी व ज्ञान में वे सर्वश्रेष्ठ थे, सच्चे व न्यायप्रिय थे, कभी कोई गुनाह उनसे सरज़द नहीं हुआ और कुरआन की इस आयत पर पूरी तरह खरे उतरते थे :
(2 : 247) और उनके नबी ने उनसे कहा कि बेशक अल्लाह ने तुम्हारी दरख्वास्त के (मुताबिक़) तालूत को तुम्हारा बादशाह मुक़र्रर किया (तब) कहने लगे उस की हुकूमत हम पर क्यों कर हो सकती है हालांकि सल्तनत के हक़दार उससे ज़यादा तो हम हैं क्योंकि उसे तो माल के एतबार से भी खुशहाली तक नसीब नहीं (नबी ने) कहा अल्लाह ने उसे तुम पर फज़ीलत दी है और माल में न सही मगर इल्म और जिस्म की ताक़त तो उस को अल्लाह ने ज़यादा अता की है.जहाँ तक बहादुरी की बात है तो हज़रत अली(अ.) ने रसूल(स.) के समय में तमाम इस्लामी जंगों में आगे बढ़कर शुजाअत के जौहर दिखाये। खैबर की जंग में किले का दरवाज़ा एक हाथ से उखाड़ने का वर्णन मशहूर खोजकर्ता रिप्ले ने अपनी किताब 'बिलीव इट आर नाट' में किया है। वह कभी गुस्से व तैश में कोई निर्णय नहीं लेते थे। न पीछे से वार करते थे और न कभी भागते हुए दुश्मन का पीछा करते थे। यहाँ तक कि जब उनकी शहादत हुई तो भी अपनी वसीयत में अपने मुजरिम के लिये उन्होंने कहा कि उसे उतनी ही सज़ा दी जाये जितना कि उसका जुर्म है।
17 मार्च 600 ई. (13 रजब 24 हि.पू.) को अली(अ.) का जन्म मुसलमानों के तीर्थ स्थल काबे के अन्दर हुआ. ऐतिहासिक दृष्टि से हज़रत अली(अ.) एकमात्र व्यक्ति हैं जिनका जन्म काबे के अन्दर हुआ. जब पैगम्बर मुहम्मद (स.) ने इस्लाम का सन्देश दिया तो लब्बैक कहने वाले अली(अ.) पहले व्यक्ति थे
हज़रत अली(अ.) में न्याय करने की क्षमता गज़ब की थी।
उनका एक मशहूर फैसला ये है जब दो औरतें एक बच्चे को लिये हुए आयीं। दोनों दावा कर रही थीं कि वह बच्चा उसका है। हज़रत अली(अ.) ने अपने नौकर को हुक्म दिया कि बच्चे के दो टुकड़े करके दोनों को आधा आधा दे दिया जाये। ये सुनकर उनमें से एक रोने लगी और कहने लगी कि बच्चा दूसरी को सौंप दिया जाये। हज़रत अली ने फैसला दिया कि असली माँ वही है क्योंकि वह अपने बच्चे को मरते हुए नहीं देख सकती।
एक अन्य मशहूर फैसले में एक लड़का हज़रत अली(अ.) के पास आया जिसका बाप दो दोस्तों के साथ बिज़नेस के सिलसिले में गया था। वे दोनों जब लौटे तो उसका बाप साथ में नहीं था। उन्होंने बताया कि वह रास्ते में बीमार होकर खत्म हो गया है और उन्होंने उसे दफ्न कर दिया है। जब उस लड़के ने अपने बाप के माल के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि व्यापार में घाटे की वजह से कोई माल भी नहीं बचा। उस लड़के को यकीन था कि वो लोग झूठ बोल रहे हैं लेकिन उसके पास अपनी बात को साबित करने के लिये कोई सुबूत नहीं था। हज़रत अली(अ.) ने दोनों आदमियों को बुलवाया और उन्हें मस्जिद के अलग अलग खंभों से दूर दूर बंधवा दिया। फिर उन्होंने मजमे को इकटठा किया और कहा अगर मैं नारे तक़बीर कहूं तो तुम लोग भी दोहराना। फिर वे मजमे के साथ पहले व्यक्ति के पास पहुंचे और कहा कि तुम मुझे बताओ कि उस लड़के का बाप कहां पर और किस बीमारी में मरा। उसे दवा कौन सी दी गयी। मरने के बाद उसे किसने गुस्ल व कफन दिया और कब्र में किसने उतारा।
उस व्यक्ति ने जब वह सारी बातें बतायीं तो हज़रत अली ने ज़ोर से नारे तकबीर लगाया। पूरे मजमे ने उनका अनुसरण किया। फिर हज़रत अली दूसरे व्यक्ति के पास पहुंचे तो उसने नारे की आवाज़ सुनकर समझा कि पहले व्यक्ति ने सच उगल दिया है। नतीजे में उसने रोते गिड़गिड़ाते सच उगल दिया कि दोनों ने मिलकर उस लड़के के बाप का क़त्ल कर दिया है और सारा माल हड़प लिया है। हज़रत अली(अ.) ने माल बरामद कराया और उन्हें सज़ा सुनाई ।
इस तरह के बेशुमार फैसले हज़रत अली(अ.) ने किये और पीडि़तों को न्याय दिया।
हज़रत अली(अ.) मुफ्तखोरी व आलस्य से सख्त नफरत करते थे। उन्होंने अपने बेटे इमाम हसन (अ.) से फरमाया, 'रोजी कमाने में दौड़ धूप करो और दूसरों के खजांची न बनो।'
मज़दूरों से कैसा सुलूक करना चाहिए इसके लिये हज़रत अली (अ.) का मशहूर जुमला है, 'मज़दूरों का पसीना सूखने से पहले उनकी मज़दूरी दे दो।'
हज़रत अली(अ.) ने जब मालिके अश्तर को मिस्र का गवर्नर बनाया तो उन्हें इस तरंह के आदेश दिये 'लगान (टैक्स) के मामले में लगान अदा करने वालों का फायदा नजर में रखना क्योंकि बाज और बाजगुजारों (टैक्स और टैक्सपेयर्स) की बदौलत ही दूसरों के हालात दुरुस्त किये जा सकते हैं। सब इसी खिराज और खिराज देने वालों (टैक्स और टैक्सपेयर्स) के सहारे पर जीते हैं। और खिराज को जमा करने से ज्यादा जमीन की आबादी का ख्याल रखना क्योंकि खिराज भी जमीन की आबादी ही से हासिल हो सकता है और जो आबाद किये बिना खिराज (रिवार्ड) चाहता है वह मुल्क की बरबादी और बंदगाने खुदा की तबाही का सामान करता है। और उस की हुकूमत थोड़े दिनों से ज्यादा नहीं रह सकती।
मुसीबत में लगान की कमी या माफी, व्यापारियों और उधोगपतियों का ख्याल व उनके साथ अच्छा बर्ताव, लेकिन जमाखोरों और मुनाफाखोरों के साथ सख्त कारवाई की बात इस खत में मौजूद है। यह लम्बा खत इस्लामी संविधान का पूरा नमूना पेश करता है। और किताब नहजुल बलागाह में खत नं - 53 के रूप में मौजूद है। यू.एन. सेक्रेटरी कोफी अन्नान के सुझाव पर इस खत को यू.एन. के वैशिवक संविधान में सन्दर्भ के तौर पर शामिल किया गया है।
हजरत अली (अ.) का शौक था बाग़ों को लगाना व कुएं खोदना। यहाँ तक कि जब उन्होंने इस्लामी खलीफा का ओहदा संभाला तो बागों व खेतों में मजदूरी करने का उनका अमल जारी रहा। उन्होंने अपने दम पर अनेक रेगिस्तानी इलाकों को नखिलस्तान में बदल दिया था। मदीने के आसपास उनके लगाये गये बाग़ात आज भी देखे जा सकते हैं।
तमाम अंबिया की तरह हज़रत अली ने मोजिज़ात भी दिखाये हैं। सूरज को पलटाना, मुर्दे को जिंदा करना, जन्मजात अंधे को दृष्टि देना वगैरा उनके मशहूर मोजिज़ात हैं।
ज्ञान के क्षेत्र में भी हज़रत अली सर्वश्रेष्ठ थे ।
यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि हज़रत अली(अ.) एक महान वैज्ञानिक भी थे और एक तरीके से उन्हें पहला मुस्लिम वैज्ञानिक कहा जा सकता है.
हज़रत अली(अ.) ने वैज्ञानिक जानकारियों को बहुत ही रोचक ढंग से आम आदमी तक पहुँचाया. एक प्रश्नकर्ता ने उनसे सूर्य की पृथ्वी से दूरी पूछी तो जवाब में बताया कि एक अरबी घोड़ा पांच सौ सालों में जितनी दूरी तय करेगा वही सूर्य की पृथ्वी से दूरी है. उनके इस कथन के चौदह सौ सालों बाद वैज्ञानिकों ने जब यह दूरी नापी तो 149600000 किलोमीटर पाई गई. अरबी घोडे की औसत चाल 35 किमी/घंटा होती है और इससे यही दूरी निकलती है. इसी तरह एक बार अंडे देने वाले और बच्चे देने वाले जानवरों में फर्क इस तरह बताया कि जिनके कान बाहर की तरफ होते हैं वे बच्चे देते हैं और जिनके कान अन्दर की तरफ होते हैं वे अंडे देते हैं.
अली(अ.) ने इस्लामिक थियोलोजी को तार्किक आधार दिया। कुरान को सबसे पहले कलमबद्ध करने वाले भी अली ही हैं. बहुत सी किताबों के लेखक हज़रत अली(अ.) हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं
1. किताबे अली - इसमें कुरआन के साठ उलूम का जि़क्र है।
2. जफ्रो जामा (इस्लामिक न्यूमरोलोजी पर आधारित)- इसके बारे में कहा जाता है कि इसमें गणितीय फार्मूलों के द्वारा कुरान मजीद का असली मतलब बताया गया है. तथा क़यामत तक की समस्त घटनाओं की भविष्यवाणी की गई है. यह किताब अब अप्राप्य है.
- किताब फी अब्वाबुल फिक़ा
- किताब फी ज़कातुल्नाम
- सहीफे अलफरायज़
- सहीफे उलूविया
इसके अलावा हज़रत अली(अ.) के खुत्बों (भाषणों) के दो मशहूर संग्रह भी उपलब्ध हैं। उनमें से एक का नाम नहजुल बलाग़ा व दूसरे का नाम नहजुल असरार है। इन खुत्बों में भी बहुत से वैज्ञानिक तथ्यों का वर्णन है.
माना जाता है की जीवों में कोशिका (cell) की खोज 17 वीं शताब्दी में लीवेन हुक ने की. लेकिन नहजुल बलाग का निम्न कथन ज़ाहिर करता है कि अली(अ.) को कोशिका की जानकारी थी. ''जिस्म के हर हिस्से में बहुत से अंग होते हैं. जिनकी रचना उपयुक्त और उपयोगी है. सभी को ज़रूरतें पूरी करने वाले शरीर दिए गए हैं. सभी को रूहानी ताक़त हासिल करने के लिये दिल दिये गये हैं. सभी को काम सौंपे गए हैं और उनको एक छोटी सी उम्र दी गई है. ये अंग पैदा होते हैं और अपनी उम्र पूरी करने के बाद मर जाते हैं. (खुत्बा-81) स्पष्ट है कि 'अंग से अली का मतलब कोशिका ही था.'
हज़रत अली सितारों द्वारा भविष्य जानने के खिलाफ थे, लेकिन खगोलशास्त्र सीखने के हामी थे, उनके शब्दों में ''ज्योतिष सीखने से परहेज़ करो, हाँ इतना ज़रूर सीखो कि ज़मीन और समुद्र में रास्ते मालूम कर सको. (77वाँ खुत्बा - नहजुल बलागा)
इसी किताब में दूसरी जगह पर यह कथन काफी कुछ आइन्स्टीन के सापेक्षकता सिद्धांत से मेल खाता है, ''उसने मख्लूकों को बनाया और उन्हें उनके वक़्त के हवाले किया. (खुत्बा - 01)
चिकित्सा का बुनियादी उसूल बताते हुए कहा, ''बीमारी में जब तक हिम्मत साथ दे, चलते फिरते रहो."
ज्ञान प्राप्त करने के लिए अली ने अत्यधिक जोर दिया, उनके शब्दों में, ''ज्ञान की तरफ बढ़ो, इससे पहले कि उसका हरा भरा मैदान खुश्क हो जाए." इमाम अली(अ.) दुनिया के एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्होंने दावा किया, "मुझ से जो कुछ पूछना है पूछ लो." और वे अपने इस दावे में कभी गलत सिद्ध नहीं हुए.
इस तरह निर्विवाद रूप से हम पैगम्बर मोहम्मद(स.) के बाद हज़रत अली(अ.) को इस्लाम का सर्वोच्च अधिकारी कह सकते हैं।
शिया संस्कृति में इंतेज़ार का स्थान
इ़ंतेज़ार करने से कर्तव्य खत्म नहीं होता और न ही काम को टालने की अनुमति मिलती है। धर्म के कर्तव्यों में ढील और उनका उत्साहपूर्वक पालन न करना बिलकुल उचित नहीं है।
सच्चे इंतजार के अर्थ की स्पष्टता और निश्चितता के बावजूद, इसके विभिन्न मत और व्याख्याएँ प्रस्तुत की गई हैं। अधिकतर ये व्याख्याएँ विद्वानों और धर्माचार्यों की समझ से संबंधित हैं, और कुछ अन्य व्याख्याएँ कुछ शिया समुदाय के लोगों की समझ से जुड़ी हैं।
इस विषय में मुख्य दो प्रमुख व्याख्याएँ हैं:
1- सही और रचनात्मक इंतजार
रचनात्मक इंतजार ऐसा इंतजार है जो सक्रिय बनाता है और जिम्मेदारी देता है। इसे वह सच्चा इंतजार माना जाता है जिसे हदीसों में "सबसे बेहतरीन इबादत" और "पैग़म्बर की उम्मत का सर्वोत्तम जेहाद" बताया गया है।
मरहूम मुज़फ्फर(1) ने एक संक्षिप्त और व्यापक बयान में इंतजार को इस तरह समझाया है कि:
हक़ीक़ी मुस्लेह हज़रत महदी (अ) के ज़ुहूर के इंतजार का मतलब यह नहीं है कि मुसलमान अपने धार्मिक फर्जों को छोड़ दें और उनको निभाने में, जैसे कि हक़ की मदद करना, धर्म के कानूनों और आदेशों को जिंदा रखना, जेहाद करना, और अम्र बिल मारूफ़ व नही अनिल मुंकर मे कोताही करे, इस आशा से कि क़ायम-ए-आले-मुहम्मद (अ) आएंगे और सब काम सही कर देंगे, इसलिए वे अपने फ़र्ज़ों से हट जाएं। हर मुसलमान पर यह जिम्मेदारी है कि वह खुद को इस्लाम के आदेशों को पूरा करने वाला समझे; धर्म को सही रास्ते से पहचानने के लिए कोई कसर न छोड़े और अपनी क्षमता के अनुसार अम्र बिल मारूफ़ व नही अनिल मुंकर न छोड़े; जैसे कि पैग़म्बर (स) ने फ़रमाया:
کُلُّکُمْ رَاعٍ وَ کُلُّکُمْ مسؤول عَنْ رَعِیَّتِهِ कुल्लोकुम राइन व कुल्लोकुम मसऊलिन अन रइय्यतेहि
आप सभी एक-दूसरे के नेता हैं और सुधार के रास्ते में ज़िम्मेदार भी हैं। (बिहार उल अनवार, भाग 72, पेज 38)
इस हिसाब से, एक मुसलमान महदी मौऊद के इंतेज़ार के कारण अपने स्पष्ट और पक्के कर्तव्यों को छोड़ या कम नहीं कर सकता; क्योंकि इंतेज़ार करने से जिम्मेदारी खत्म नहीं होती और न ही काम को टालने की अनुमति मिलती है। धर्म के कर्तव्यों में सुकून और उदासीनता बिलकुल मंज़ूर नहीं है। (अक़ाइद उल इमामिया, पेज 118)
कुल मिलाकर, हक़ीक़ी इंतेज़ार की संस्कृति तीन मुख्य आधारों पर आधारित है:
- वर्तमान हालात से नाखुशी या संतुष्ट न होना
- बेहतर भविष्य की उम्मीद रखना
- वर्तमान हालात से बढ़कर बेहतर स्थिति की ओर प्रयास और सक्रियता करना
2- गलत और विनाशकारी इंतेज़ार
गलत और विनाशकारी इंतेज़ार, जो असल में एक तरह की "इबाहागिरी" है, हमेशा धर्म के महानुभावों द्वारा निंदित और तिरस्कृत किया गया है, और उन्होंने अहले बैत के अनुयायियों को इससे बचने की सलाह दी है।
अल्लामा मुताहरी क़ुद्दसा सिर्रोह ने इस बारे में लिखा है:
इस प्रकार का इंतेज़ार लोगों का महदीत्व और महदी मौऊद (अ) के ज़ुहूर और क्रांति की सतही समझ है, जो केवल विस्फोटक प्रकृति का होता है; यह केवल अत्याचारों, भेदभावों, रुकावटों, अन्यायों और बर्बादी के फैलाव और प्रचार से उत्पन्न होता है।
इस प्रकार के महदी मौअूद (अ) के इंतेज़ार और क्रांति की व्याख्या, जो इस्लामी हदों और नियमों को कमजोर कर देती है और एक प्रकार की "इबाहागिरी" कहलाती है, बिलकुल भी इस्लामी और कुरआनी मानदंडों के अनुरूप नहीं है। (क़याम व इंक़ेलाब महदी अलैहिस्सलाम, पेज 54)
इस्लामी गणराज्य ईरान के संस्थापक ने गलत इंतेज़ार की व्याख्याओं का खंडन करते हुए ऐसे विचार रखने वालों की कड़ी निंदा की है। (सहीफ़ा नूर, भाग 21)
इसलिए, एक सच्चा इंतेज़़ार करने वाला कभी भी महदी मौअूद (अ) के इंतेज़ार में केवल दर्शक की भूमिका नहीं निभा सकता।
श्रृंखला जारी है ---
इक़्तेबास : "दर्स नामा महदवियत" नामक पुस्तक से से मामूली परिवर्तन के साथ लिया गया है, लेखक: खुदामुराद सुलैमियान
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(1) मुहम्मद रज़ा मुज़फ़्फ़र (1322 - 1383 हिजरी) एक प्रसिद्ध मुज्तहिद, फ़क़ीह, उसूलवादी, मुताकल्लिम, फ़लसफ़ी और शिया विद्वानों में से एक थे, जो हौज़ा फ़िक़्ह व उसूल, मन्तिक़ और कलाम व अक़ाइद के क्षेत्र में शोधकर्ता थे।
यूरोप में हज़ारों लोगों ने इज़राइली आक्रामकता का विरोध किया
इज़राइली आक्रामकता के ख़िलाफ़ वियना और लंदन में हज़ारों लोग सड़कों पर उतरे और इज़राइली उत्पादों के बहिष्कार और उन पर प्रतिबंध लगाने की माँग करते हुए नारे लगाए।
फ़िलिस्तीन के समर्थन में यूरोप के विभिन्न शहरों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और रैलियाँ आयोजित की गईं। वियना और लंदन में हुए प्रदर्शनों में हज़ारों लोगों ने भाग लिया और गाज़ा पर इज़राइली हमलों की कड़ी निंदा की।
लंदन में प्रदर्शन
रिपोर्ट के अनुसार, लंदन में प्रदर्शनकारियों ने शॉपिंग सेंटरों के सामने धरना दिया और इज़राइली उत्पादों के बहिष्कार की माँग की। विरोध प्रदर्शनों में विश्वविद्यालयों और खेल के मैदानों सहित विभिन्न क्षेत्र भी शामिल थे।
वियना में प्रदर्शन
हज़ारों लोग वियना में सड़कों पर उतरे। उन्होंने "फ़िलिस्तीन को आज़ाद करो" के नारे लगाए और गाज़ा में चल रहे नरसंहार का कड़ा विरोध किया। यहूदी-विरोधी ज़ायोनी समुदाय के सदस्यों ने भी प्रदर्शन में भाग लिया। प्रतिभागी ऑस्ट्रिया और यूरोपीय संघ से इज़राइल पर प्रतिबंध लगाने की माँग के लिए संसद तक मार्च करने की तैयारी कर रहे थे।
यूरोपीय सरकारों पर प्रभाव
विभिन्न यूरोपीय देशों में चल रहे ये विरोध प्रदर्शन अब इन सरकारों के निर्णयों को भी प्रभावित करने लगे हैं।
ब्रिटेन ने फिलिस्तीन को एक राज्य के रूप में मान्यता देने का फैसला किया
ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीयर स्टारमर आज रात, स्थानीय समयानुसार, एक आधिकारिक बयान में फिलिस्तीन को स्वतंत्र और स्वायत्त देश के रूप में मान्यता देने की घोषणा करेंगे।
ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीयर स्टारमर आज रात, स्थानीय समयानुसार, एक आधिकारिक बयान में फिलिस्तीन को स्वतंत्र और स्वायत्त राज्य के रूप में मान्यता देने की घोषणा करेंगे।
स्टारमर ने कहा है कि "फिलिस्तीन को मान्यता देना फिलिस्तीनी लोगों का अटल अधिकार है और यह कदम इज़राइल की दीर्घकालिक सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है। यह कोई तोहफा नहीं बल्कि स्थायी शांति प्रक्रिया का हिस्सा है।
उन्होंने गाज़ा में जारी "असहनीय स्थिति" पर गहरी चिंता व्यक्त की और स्पष्ट किया कि "हमारे फैसले पर किसी को वीटो का अधिकार नहीं है।
याद दिलाया गया कि जुलाई में स्टारमर ने घोषणा की थी कि यदि इज़राइल गाजा युद्ध समाप्त करने, पश्चिमी तट के कब्जे को रोकने और दीर्घकालिक शांति प्रक्रिया को लागू करने के लिए गंभीर कदम नहीं उठाता है, तो ब्रिटेन फिलिस्तीन को मान्यता देने का निर्णय लेगा।
सूत्रों के अनुसार, लंदन सरकार इज़राइल और उसके समर्थक समूहों की आलोचना को कम करने के लिए हमास के खिलाफ नई पाबंदियां भी लगाने जा रहा है। इन पाबंदियों का विवरण अभी सामने नहीं आया है, लेकिन उम्मीद है कि प्रधानमंत्री अपने आज के बयान में इस संबंध में और जानकारी देंगे।
इसके पहले ब्रिटेन की पूर्व सरकारें भी फिलिस्तीन को मान्यता देने के पक्ष में रही हैं, लेकिन इसके लिए कोई समय निर्धारित नहीं किया गया था। कीयर स्टारमर को लेबर पार्टी के दबाव (जिसके आधे से अधिक सांसदों ने तत्काल फिलिस्तीन को मान्यता देने की मांग की है) और यूरोपीय सहयोगियों खासकर फ्रांस के निर्णय के बाद यह कदम उठाना पड़ा।
यह उल्लेखनीय है कि हाल के महीनों में फ्रांस, कनाडा और माल्टा ने फिलिस्तीन को मान्यता दी है, और अब ब्रिटेन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य देशों में दूसरा पश्चिमी देश बन गया है जिसने फिलिस्तीन को आधिकारिक रूप से मान्यता दी है।
ग़ज़्ज़ा में फिलिस्तीनियों के नरसंहार के खिलाफ चेन्नई में विशाल रैली
चैन्नई में पीरियार के विचारों को मानने वाले संगठनों ने ग़ज़्ज़ा और फ़िलिस्तीन के साथ एकता दिखाने के लिए एक बड़ी रैली और जनसभा का आयोजन किया। इस रैली में हजारों लोग शामिल हुए, जिनमें दक्षिण भारत की फिल्म इंडस्ट्री के कई महत्वपूर्ण कलाकार भी मौजूद थे। क़टप्पा के किरदार से प्रसिद्ध अभिनेता सत्यराज ने कहा कि ऐसे प्रदर्शन में हिस्सा लेना कलाकारों का फ़र्ज़ है। अगर हमारी प्रसिद्धि मानवता और आज़ादी के काम नहीं आती तो वह बेकार है।
चैन्नई में पीरियार के विचारों को मानने वाले संगठनों ने ग़ज़्ज़ा और फ़िलिस्तीन के साथ एकता दिखाने के लिए एक बड़ी रैली और जनसभा का आयोजन किया। इस रैली में हजारों लोग शामिल हुए, जिनमें दक्षिण भारत की फिल्म इंडस्ट्री के कई महत्वपूर्ण कलाकार भी मौजूद थे। क़टप्पा के किरदार से प्रसिद्ध अभिनेता सत्यराज ने कहा कि ऐसे प्रदर्शन में हिस्सा लेना कलाकारों का फ़र्ज़ है। अगर हमारी प्रसिद्धि मानवता और आज़ादी के काम नहीं आती तो वह बेकार है।
अभिनेता प्रकाश राज ने ग़ज़्ज़ा में हो रहे नरसंहार के लिए ट्रम्प और मोदी को भी ज़िम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि यह विरोध उन सभी के लिए है जो इंसानियत के पक्ष में आवाज़ उठाते हैं। उन्होंने युद्ध के विनाशकारी असर पर एक कविता भी पढ़ी और कहा कि जब तक लड़ाकू विमानों का गरजना बंद नहीं होगा, तब तक शांति नहीं आ सकती।
फिल्म निर्माता वीत्रीमारन ने ग़ज़्ज़ा में हो रहे हिंसा को "योजना बद्ध नरसंहार" बताया। सांसद थोल थरुमवलन ने कहा कि पीरियार की राजनीति उन लोगों के लिए लड़ना है जो अन्याय का शिकार हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया के हर विवाद में, चाहे वह फ़िलिस्तीन हो या यूक्रेन, अमेरिका की साम्राज्यवाद की छाया है।
मई-17 आंदोलन के नेता थरो मॉर्गन गांधी ने कहा कि हमास को आतंकवादी कहना गलत है, वह एक स्वतंत्रता संग्राम है। जो देश हमास को आतंकवादी कहते हैं, वे खुद आतंकवादी हैं।
इस रैली में लोगों ने फ़िलिस्तीन की आज़ादी और न्याय के लिए एकजुट होकर आवाज़ उठाई।
ग़ज़्ज़ा खून से लथपथ, पानी और भोजन की महामारी
गज्ज़ा के अस्पतालों से प्राप्त जानकारी के अनुसार आज सुबह से अब तक इज़राइली सेना की बमबारी में 51 फ़िलस्तीनी शहीद हो चुके हैं, जिनमें से 43 केवल ग़ाज़ा शहर में मारे गए।
ग़ाज़ा के अस्पतालों से मिली सूचनाओं के अनुसार आज सुबह से इज़राइली सेना की बमबारी में 51 फ़िलस्तीनी शहीद हुए हैं, जिनमें से 43 ग़ाज़ा शहर के थे।
ग़ाज़ा की सिविल डिफेंस ने कहा है कि इज़राइली बल नागरिकों के किसी भी जमावड़े को सीधे निशाना बना रहे हैं। शनिवार की सुबह से इज़राइली सेना ने शहर के विभिन्न इलाक़ों पर तीव्र बमबारी और हवाई हमले जारी रखे, जिनमें बेघर हुए लोग और मदद के लिए आने वाले नागरिक भी शहीद और घायल हुए। इसी बीच नसर इलाके में एक आवासीय इमारत पूरी तरह से तबाह कर दी गई।
मुक़ाइम शाति में बमबारी के दौरान डॉक्टर मोहम्मद अबू सलेमिया (डायरेक्टर, मजमूअ अल-शिफा अस्पताल) के परिवार समेत 5 फ़िलस्तीनी शहीद हो गए और कई घायल हुए। शव और घायल अस्पताल भेजे गए हैं।
इसी तरह, इलाक़ा अलतफ़ाह (उत्तर-पूर्वी ग़ज़ा) में इज़राइली सेना ने नागरिकों के एक समूह को निशाना बनाया, जिसमें 6 फ़िलस्तीनी शहीद और कई घायल हुए। उन्हें तुरंत अलममदानी अस्पताल पहुंचाया गया।
ग़ाज़ा में लगातार बमबारी, अकाल और पानी की कमी के कारण मानवीय संकट तेजी से गंभीर होता जा रहा है।
इस्लाम की हैसियत व इज्ज़त का बड़ा हिस्सा उलेमा के हाथों में है
हौज़ा ए इल्मिया ईरान की सुप्रीम काउंसिल के सचिव हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अहमद फरूख फाल ने मशहदे मुकद्दस में आयोजित दूसरे राष्ट्रीय सम्मेलन और वित्तीय मामलों के जिम्मेदारों व लेख परीक्षकों के विशेष वर्कशॉप से संबोधित करते हुए कहा कि आज हम उस मुकाम पर हैं जहाँ इस्लाम और इस्लामी हुकूमत की बड़ी हद इज़्ज़त और वेक़ार उलेमाओं और रूहानियत से जुड़ी हुई है।
हौज़ा ए इल्मिया ईरान की सुप्रीम काउंसिल के सचिव हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अहमद फरूख फाल ने मशहदे मुकद्दस में आयोजित दूसरे राष्ट्रीय सम्मेलन और वित्तीय मामलों के जिम्मेदारों व लेख परीक्षकों के विशेष वर्कशॉप से संबोधित करते हुए कहा कि आज हम उस मुकाम पर हैं जहाँ इस्लाम और इस्लामी हुकूमत की बड़ी हद इज़्ज़त और वेक़ार उलेमाओं और रूहानियत से जुड़ी हुई है।
उन्होंने कहा कि ये बैठकें हौज़ा ए इल्मिया के वित्तीय प्रबंधन और संगठनात्मक ढांचे में विकास के लिए प्रभावशाली साबित होंगी।
उनका कहना था कि उलमा हमेशा यह चाहते हैं कि धार्मिक संस्थान अपने कर्तव्यों को पूरी सावधानी और मजबूती के साथ निभाएं और इस प्रक्रिया में वित्तीय मामलों के संरक्षकों और लेखाकारों की अहम भूमिका होती है।
उन्होंने ज़ोर दिया कि ज़िम्मेदारियां अस्थायी होती हैं लेकिन उनकी स्थिरता सही और ईमानदार कार्यप्रणाली पर निर्भर करती है। इस मौके पर उन्होंने हज़रत अली अलैहिस्सलाम का भी हवाला दिया कि जो व्यक्ति संपत्ति या जिम्मेदारी में विश्वासघात करता है और उसे सही तरीके से उपयोग नहीं करता, वह अपने ऊपर अपमान और बदनामी को ज़बरदस्ती स्वीकार करता है।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अहमद फरूख फाल ने आगे कहा कि हौज़ा ए इल्मिया का असली फल ईमान की तालीम है, यही मिशन पैगंबर इस्लाम से लेकर आज तक इमामे मासूमीन अलैहिमुस्सलाम और उलमा की कुर्बानियों से जारी है।
उन्होंने पैगंबर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मदीना हिजरत को धार्मिक और हौज़वी गतिविधियों की शुरुआत का बिंदु बताया और कहा कि नबी ने पहला प्रचारक समूह तैयार किया, जो राह-ए-हक़ में शहीद हुआ, लेकिन यह मिशन कभी नहीं रुका।
उन्होंने वित्तीय संसाधनों की रक्षा, पारदर्शिता, कानूनों का पालन, व्यर्थता से बचाव और समय पर सही उपयोग को वित्तीय जिम्मेदारों के लिए मौलिक आवश्यकताएं बताया।
इज़राइल का अस्तित्व केवल अपराधों पर टिका हुआ है/अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की चुप्पी शर्मनाक
मजलिस ए खबरगान के सदस्य ने कहा, कि सियोनिस्ट राज्य का अस्तित्व केवल अत्याचार और अपराध के सहारे है और वैश्विक संस्थाओं की चुप्पी मानवता के लिए शर्मनाक है।
मजलिस ए खबरगान के सदस्य हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अस्कर दीरबाज ने कहा है कि सियोनिस्ट राज्य का अस्तित्व केवल ज़ुल्म और अपराध के सहारे है और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की चुप्पी मानवता के लिए शर्मनाक है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि इस नकली सरकार की नींव तीन स्तंभों पर टिकी है,धार्मिक शिक्षाओं का राजनीतिक और विचारधारात्मक शोषण चुनी हुई क़ौम के नाम पर दूसरों को कमतर समझना और उनके खिलाफ अत्याचार को जायज़ ठहराना।
नकली वादे, ज़मीन और परलोक संबंधी विचारों का विकृत उपयोग नील से फरात" तक के सपने और ईसाई सियोनिस्ट समूहों के साथ स्वार्थपूर्ण गठजोड़।विदेशी समर्थन और उपनिवेशवादी हित अमेरिका और पश्चिमी शक्तियों की मदद जो क्षेत्र के संसाधनों, तेल और गैस पर कब्ज़ा करने के लिए इज़राइल का इस्तेमाल कर रहा हैं।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अस्कर दीरबाज ने कहा कि इज़राइल वास्तव में अत्याचारी सरकारों की एक अपराधी शाखा है और लेबनान, यमन, सीरिया, इराक़ और यहां तक कि ईरान पर हमलों में सीधे शामिल है। उन्होंने अमेरिका के दोहरे मापदंड की मिसाल क़तर घटना से दी, जहां एक ओर हमास को बातचीत का निमंत्रण दिया गया और दूसरी ओर उनके ठिकानों पर हमला किया गया।
उन्होंने गाज़ा की गंभीर मानवीय स्थिति पर बात करते हुए कहा कि जब इज़राइल को सैन्य हार का सामना करना पड़ा तो उसने घेराबंदी, भूख और प्यास को हथियार बना लिया। भोजन और पानी के लिए कतार में खड़े बेसहारा फिलिस्तीनियों पर गोलियां चलाना और उन्हें शहीद करना सबसे बुरी बर्बरता है।
उन्होंने आगे कहा कि इज़राइल ने NPT समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं और अपने परमाणु हथियार बढ़ा रहा है, जो क्षेत्र और विश्व के लिए गंभीर खतरा है।
अहले-बैत (अ) की विलायत और तक़वा के बिना नमाज़ क़बूल नहीं होती
काशान में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सय्यद सईद हुसैनी ने कहा है कि नमाज़ क़बूल होने की दो बुनियादी शर्तें हैं: अहले-बैत (अ) की विलायत और तक़वा। अगर ये दोनों शर्तें पूरी नहीं होतीं, तो नमाज़, भले ही वह दिखने में सही हो, क़बूल नहीं होती।
काशान में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सय्यद सईद हुसैनी ने कहा है कि नमाज़ क़बूल होने की दो बुनियादी शर्तें हैं: अहले-बैत (अ) की विलायत और तक़वा। अगर ये दोनों शर्तें पूरी नहीं होतीं, तो नमाज़, भले ही वह दिखने में सही हो, क़बूल नहीं होती।
काशान में नमाज़ समिति की एक बैठक को संबोधित करते हुए, उन्होंने शहीदों, विशेष रूप से पवित्र रक्षा, बारह दिवसीय युद्ध और काशान के स्थानीय शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा कि क्रांति के सर्वोच्च नेता ने भी नेतृत्व के विशेषज्ञों की बैठक में इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया है कि जब कोई ज़िम्मेदार व्यक्ति अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करता है, तो उसे हज़रत यूनुस (अ) की याद आती है, जिन्होंने सोचा था कि ईश्वर कठोर नहीं होगा, लेकिन ईश्वर ने उसकी परीक्षा ली।
उन्होंने कहा कि संस्थानों, विश्वविद्यालयों, मदरसों और धार्मिक संगठनों में नमाज़ को बढ़ावा देने के लिए पहला कदम यह है कि ज़िम्मेदार व्यक्ति स्वयं नमाज़ का पालन करें। यदि नमाज़ स्वीकार हो जाती है, तो अन्य सभी कर्म जैसे हज, रोज़ा, दान, अल्लाह की राह में जिहाद और अच्छे कर्म भी स्वीकार हो जाते हैं, लेकिन यदि नमाज़ सही नहीं है, तो अन्य कर्मों पर ध्यान नहीं दिया जाता।
पैग़्बर (स) की हदीस का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि जो कोई नमाज़ बर्बाद करता है, वह मुसलमानों के साथ नहीं होगा, जबकि अल्लाह तआला नमाज़ पढ़ने वालों के साथ है।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैनी ने कहा कि अल्लाह ने वादा किया है कि जो कोई इस दुनिया में उसे याद करेगा, वह आख़िरत में भी उसे याद करेगा, और नमाज़ अल्लाह को याद करने का सबसे अच्छा तरीका है।
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि किसी भी संस्था के प्रमुख को सबसे पहले अपने परिवार और फिर अपने अधीनस्थों में नमाज़ के महत्व को स्थापित करना चाहिए। वर्तमान में, काशान में नमाज़ को बढ़ावा देने की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी जुमे के इमाम पर है, जबकि 400 से ज़्यादा स्कूलों के प्रमुखों को भी सामूहिक नमाज़ को बढ़ावा देने के लिए गंभीर कदम उठाने की आवश्यकता है।
अगर सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध फिर से लागू हुए तो काहिरा समझौता खत्म कर देंगे
ईरानी उप विदेश मंत्री काज़िम गरीब आबादी ने कहा कि अगर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थगित किए गए प्रतिबंधों को फिर से बहाल किया गया, तो काहिरा समझौता रद्द कर दिया जाएगा।
ईरान के उप विदेश मंत्री काज़िम गरीब आबादी ने चेतावनी दी है कि अगर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा स्थगित की गई प्रतिबंधों को 27 सितंबर 2025 तक दोबारा लागू किया गया, तो ईरान और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के बीच काहिरा में हुआ समझौता तुरंत समाप्त कर दिया जाएगा।
उन्होंने कहा कि सुरक्षा परिषद में हाल ही में हुई वोटिंग में प्रस्तावित प्रस्ताव पारित नहीं हो सका, लेकिन अब भी एक सप्ताह का समय है, जिसमें कूटनीतिक प्रयासों से इन प्रतिबंधों की बहाली को रोका जा सकता है। अगर इस अवधि में कोई ठोस और अर्थपूर्ण कदम नहीं उठाया गया, तो समझौते का खात्मा एक जरूरी और तर्कसंगत फैसला होगा।
गरीब आबादी ने कहा कि ईरानी विदेश मंत्री ने काहिरा समझौते पर हस्ताक्षर के तुरंत बाद यह स्पष्ट कर दिया था कि ईरान के खिलाफ किसी भी प्रकार की शत्रुतापूर्ण कार्रवाई को इस समझौते की निलंबना माना जाएगा।
ईरान के उप विदेश मंत्री ने कहा कि ईरान पूरी सतर्कता के साथ अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करेगा और हर कदम का उचित और सटीक जवाब दिया जाएगा। इस स्थिति को देखते हुए, ईरान के आगामी कदमों पर नीति स्तर पर विचार किया जा रहा है और उचित समय पर इनकी घोषणा की जाएगी।