رضوی

رضوی

 हज़रत आयतुल्लाह जवादी आमोली ने कहा: यदि यह कहा गया है, "विद्वान नबियों के उत्तराधिकारी हैं," तो इसका अर्थ है कि आपको केवल शिक्षक बनने का प्रयास नहीं करना चाहिए, बल्कि इमाम के स्थान पर बैठने का प्रयास करना चाहिए। नबियों को जो संसार का ज्ञान दिया गया था, यदि उसका एक अंश भी कोई विद्वान प्राप्त कर लेता है, तो वह दिव्य विद्वान बन जाता है, और केवल एक दिव्य विद्वान ही समाज का सुधार कर सकता है।

हज़रत आयतुल्लाह जवादी आमोली ने "जामेअतुज ज़हरा (स)" और "मरकज़ ए मुदीरियत हौज़ा ए इल्मिया ख़ाहारान" के शैक्षणिक वर्ष के उद्घाटन समारोह में भेजे गए अपने वीडियो संदेश में कहा: नबियों को जो संसार का ज्ञान दिया गया था, यदि उसका एक अंश भी कोई विद्वान प्राप्त कर लेता है, तो वह दिव्य विद्वान बन जाता है, और केवल एक दिव्य विद्वान ही समाज का सुधार कर सकता है।

उन्होंने कहा: चूँकि इस शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत पैग़म्बर मुहम्मद (स) के पावन जन्मदिवस से हो रही है, इसलिए उनके शब्दों और जीवनी के संदर्भ में शिक्षा और प्रशिक्षण की वास्तविकता का वर्णन करना उचित है।

आयतुल्लाह जवादी आमोली ने कहा: पैग़म्बर मुहम्मद (स) का सबसे बड़ा चमत्कार पवित्र कुरान है, जो शिक्षा और ज्ञान का आधार है। कुरान ज्ञान को जीवन का स्रोत मानता है क्योंकि इल्लाही नूर और नबूवत का उद्देश्य मनुष्य को सच्चा जीवन प्रदान करना है। पशु और वनस्पति जीवन के साथ-साथ मानव जीवन भी ईश्वरीय ज्ञान से ही संभव है।

उन्होंने कहा: ज्ञान की वास्तविकता यह है कि यह एक दिव्य विषय है, सांसारिक विषयों की तरह सीमित नहीं। इमाम अली (अ) ने कहा: "ज्ञान के पात्र को छोड़कर, प्रत्येक पात्र उसमें रखी गई वस्तु के कारण संकुचित होता है, क्योंकि वह उसके साथ फैलता है।" अर्थात्, प्रत्येक पात्र उसमें रखी गई वस्तु के कारण संकुचित होता है, लेकिन ज्ञान का पात्र ऐसा है कि जितना अधिक फैलता है, उतना ही व्यापक होता जाता है।

इस विद्वान ने आगे कहा: पैग़म्बर का शिष्य केवल वह नहीं है जो सुनकर और लिखकर ज्ञान प्राप्त करता है, बल्कि पैग़म्बर का वास्तविक उत्तराधिकारी वह है जो "विरासत के ज्ञान" से लाभान्वित होता है, न कि केवल "अध्ययन के ज्ञान" से। अध्ययन का ज्ञान कड़ी मेहनत, सुनने और दोहराने से प्राप्त होता है, लेकिन विरासत का ज्ञान एक आंतरिक और दिव्य उपहार है।

उन्होंने दुआ के साथ समापन किया: अल्लाह हमारी इस्लामी व्यवस्था, उसके नेताओं, ज़िम्मेदार व्यक्तियों, मदरसों और सभी शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक केंद्रों को हज़रत वली-ए-अस्र (अ) की विशेष कृपा प्रदान करे ताकि यह इस्लामी व्यवस्था अपने सच्चे और प्रामाणिक गुरु के उदय से जुड़ सके।

 

करगिल में आयोजित शिया उलेमा असेंबली की बैठक में देश के प्रमुख धर्मगुरुओं और सामाजिक नेताओं ने समुदाय की एकता, धार्मिक प्रशिक्षण और जन समस्याओं के समाधान के लिए साझा रणनीति अपनाने पर सहमति जताई।

शिया उलेमा असेंबली हिंदुस्तान की एक महत्वपूर्ण बैठक लद्दाख के शहर करगिल में आयोजित हुई। इसमें मौलाना ग़ुलाम रसूल कश्मीरी, मौलाना जवाद हैदर जौदी, मौलाना बाक़िर फ़ैय्यज़ हुसैनी सहित देश भर के प्रमुख उलेमा, मज़हबी रहनुमा और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए।

बैठक का मुख्य उद्देश्य मौजूदा मज़हबी और सामाजिक हालात पर चर्चा करना, समुदाय की इस्लाह व भलाई के लिए साझा रणनीति बनाना, और नई पीढ़ी की दीन की तालीम व तरबियत पर ज़ोर देना था।

उलेमाओं ने अपने भाषणों में मुसलमानों के बीच एकता, दीन की तालीम के फ़रोग और समाजिक चुनौतियों से निपटने के लिए एकजुट होकर काम करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।

बैठक के अंत में एक साझा बयान भी जारी किया गया जिसमें समुदाय की एकता, फ़िरक़ावाराना हमआहंगी और जन समस्याओं के समाधान के लिए साझा कोशिशों को तेज़ करने की घोषणा की गई।

बैठक में स्थानीय प्रशासन और अन्य संबंधित संस्थाओं के साथ बेहतर तालमेल और सहयोग बढ़ाने पर भी ज़ोर दिया गया ताकि जन-कल्याण की योजनाओं को प्रभावी ढंग से अमल में लाया जा सके।

 

इज़रायल के केंद्रीय सांख्यिकी विभाग ने बताया है कि वर्ष 2024 में इजरायल छोड़ने वाले यहूदियों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है और लगभग 79 हज़ार लोगों ने कब्जे वाले क्षेत्रों को छोड़ दिया है।

इजरायल के केंद्रीय सांख्यिकी विभाग ने बताया कि 2024 में इजरायल छोड़ने वाले यहूदियों की संख्या में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है और लगभग 79 हजार लोग कब्जे वाले क्षेत्रों को छोड़कर चले गए हैं।

आंकड़ों के अनुसार, इसी अवधि में केवल 21 हज़ार पुराने प्रवासी वापस लौटे और करीब 25 हजार नए लोग इजरायल में बसाए गए। इस प्रकार कुल मिलाकर कब्जे वाले क्षेत्रों में रहने वाले यहूदियों की आबादी में 28 हज़ार की कमी दर्ज की गई।

रिपोर्ट के अनुसार, इजरायली जनसंख्या वृद्धि दर भी प्रभावित हुई है, जो 2024 में केवल 1 प्रतिशत रही, जबकि पिछले साल यह 1.2 प्रतिशत थी। पिछले वर्ष लगभग 1 लाख 89 हज़ार बच्चे पैदा हुए और करीब 50 हजार लोग मरे, जिसके बाद जनसंख्या में वास्तविक वृद्धि केवल 1 लाख 1 हजार रही, जो पिछले वर्षों की तुलना में कम है।

यहूदियों की कुल संख्या नए साल की शुरुआत में लगभग 1 करोड़ 14 लाख बताई गई है। इसमें 7 करोड़ 75 लाख यहूदी हैं जो कुल आबादी का लगभग 78.5 प्रतिशत बनते हैं, जबकि 21 लाख से अधिक फिलिस्तीनी नागरिक हैं जो 21.5 प्रतिशत हैं। इसके अलावा करीब 2.5 लाख विदेशी नागरिक भी इजरायल में मौजूद हैं।

यह प्रवृत्ति ऐसे समय सामने आई है जब इजरायल को गाज़ा पर जारी युद्ध, ईरान के हालिया मिसाइल हमलों और यमन की ओर से तेल अवीव समेत अन्य शहरों पर ड्रोन और रॉकेट हमलों का सामना करना पड़ रहा है। इसके साथ ही आंतरिक राजनीतिक मतभेद, आर्थिक समस्याएं और जनता की असंतोष ने यहूदी बस्तियों को रहने के लिए असुरक्षित बना दिया है।

 

बिसमिल्ला हिर रहमानिर रहीम

जाबिर इब्न अब्दुल्लाह अंसारी बीबी फ़ातिमा ज़हरा (स:अ) बिन्ते रसूल अल्लाह (स:अ:व:व) से रिवायत करते हुए कहते हैं के मैने जनाब फ़ातिमा ज़हरा (स:अ) से सुना है की वो फ़रमा रहीं थीं के एक दिन मेरे बाबा जान रसूले ख़ुदा (स:अ:व:व) मेरे घर तशरीफ़ लाये और फ़रमाने लगे, "सलाम हो तुम पर ऐ फ़ातिमा (स:अ)" मैने जवाब दिया, "आप पर भी सलाम हो" फिर आप ने फ़रमाया :"मै अपन जिस्म में कमज़ोरी महसूस कर रहा हूँ" मै ने अर्ज़ किया की, "बाबा जान ख़ुदा न करे जो आप में कमज़ोरी आये" आप ने फ़रमाया: "ऐ फातिमे (स:अ) मुझे एक यमनी चादर लाकर उढ़ा दो" तब मै यमनी चादर ले आई और मैंने वो बाबा जान क़ो ओढ़ा दी और मै देख रही थी के आपका चेहरा-ए-मुबारक चमक रहा है, जिस तरह चौदहवीं रात क़ो चाँद पूरी तरह चमक रहा हो, फिर एक लम्हा ही गुज़रा था की मेरे बेटे हसन (अ:स) वहां आ गए और बोले, "सलाम हो आप पर ऐ वालिदा मोहतरमा (स:अ)!" मैंने कहा और तुम पर भी सलाम हो ऐ मेरी आँख के तारे और मेरे दिल के टुकड़े - वोह कहने लगे, "अम्मी जान (स:अ), मै आप के यहाँ पाकीज़ा ख़ुशबू महसूस कर रहा हूँ जैसे वोह मेरे नाना जान रसूले ख़ुदा (स:अ:व:व) की ख़ुशबू हो" मैंने कहा, "हाँ तुम्हारे नाना जान चादर ओढ़े हुए हैं" इसपर हसन (अ:स) चादर की तरफ़ बढे और कहा, "सलाम हो आप पर ऐ नाना जान, ऐ ख़ुदा के रसूल! क्या मुझे इजाज़त है के आपके पास चादर में आ जाऊं?" आप ने फ़रमाया, "तुम पर भी सलाम हो ऐ मेरे बेटे और ऐ मेरे हौज़ के मालिक, मै तुम्हें इजाज़त देता हूँ" बस हसन आपके साथ चादर में पहुँच गए! फिर एक लम्हा ही गुज़रा होगा के मेरे बेटे हुसैन (अ:स) भी वहां आ गए और कहने लगे :"सलाम हो आप पर ऐ वालिदा मोहतरमा (स:अ) - तब मैंने कहा, "और तुम पर भी सलाम हो ऐ मेरे बेटे, मेरी आँख के तारे और मेरे कलेजे के टुकड़े" इसपर वो मुझे से कहने लगे, "अम्मी जान (स:अ), मै आप के यहाँ पाकीज़ा ख़ुशबू महसूस कर रहा हूँ जैसे वोह मेरे नाना जान रसूले ख़ुदा (स:अ:व:व) की ख़ुशबू हो" मैंने कहा, "हाँ तुम्हारे नाना जान और भाई जान इस चादर में हैं" बस हुसैन (अ:स) चादर के नज़दीक आये और बोले, "सलाम हो आप पर ऐ नाना जान! सलाम हो आप पर ऐ वो नबी जिसे ख़ुदा ने चुना है - क्या मुझे इजाज़त है के आप दोनों के साथ चादर में दाख़िल हो जाऊं?" आप ने फ़रमाया, "और तुम पर भी सलाम हो ऐ मेरे बेटे, और ऐ मेरी उम्मत की शफ़ा'अत करने वाले, तुम्हें इजाज़त देता हूँ" तब हुसैन (अ:स) ईन दोनों के पास चादर में चले गए, इसके बाद अबुल हसन (अ:स) अली इब्न अबी तालिब (अ:स) भी वहां आ गए और बोले, "सलाम हो आप पर ऐ रसूले ख़ुदा की बेटी!" मैंने कहा, "आप पर भी सलाम हो ऐ अबुल हसन (अ:स), ऐ मोमिनों के अमीर" वो कहने लगे, "ऐ फ़ातिमा (स:अ) मै आप के यहाँ पाकीज़ा ख़ुशबू महसूस कर रहा हूँ, जैसे वो मेरे भाई और मेरे चचाज़ाद, रसूले ख़ुदा की ख़ुशबू हो" मैंने जवाब दिया, "हाँ वो आप के दोनों बेटों समेत चादर के अन्दर हैं" फिर अली (अ:स) चादर के क़रीब हुए और कहा, " सलाम हो आप पर ऐ ख़ुदा के रसूल - क्या मुझे इजाज़त है के मै भी आप तीनों के पास चादर में आ जाऊं?" आप ने इनसे कहा, "और तुम पर भी सलाम हो ऐ मेरे भाई, मेरे क़ायेम मुक़ाम, मेरे जा'नशीन, मेरे अलम'बरदार, मै तुम्हें इजाज़त देता हूँ" बस अली (अ:स) भी चादर में पहुँच गए - फिर मै चादर के नज़दीक आये और मैंने कहा, "सलाम हो आप पर ऐ बाबा जान, ऐ ख़ुदा के रसूल, क्या आप इजाज़त देते हैं के मैन आप के पास चद्दर में आ जाऊं?" आप ने फ़रमाया, "और तुम पर भी सलाम हो मेरी बेटी और मेरी कलेजे की टुकड़ी, मैंने तुम्हे इजाज़त दी" तब मै भी चादर में दाख़िल हो गयी! जब हम सब चादर में इकट्ठे हो गए तो मेरे वालिदे गिरामी रसूल अल्लाह (स:अ:व:व) ने चादर के दोनों किनारे पकड़े और दायें हाथ से आसमान की तरफ़ इशारा करके फ़रमाया, "ऐ ख़ुदा! यक़ीनन यह हैं मेरे अहलेबैत (अ:स), मेरे ख़ास लोग, और मेरे हामी, इनका गोश्त मेरा गोश्त और इनका ख़ून मेरा ख़ून है, जो इन्हें सताए वो मुझे सताता है, और जो इन्हें रंजीदा करे वो मुझे रंजीदा करता है! जो इनसे लड़े मै भी उस से लडूंगा, जो इनसे सुलह रखे, मै भी उस से सुलह रखूओंगा, मै इनके दुश्मन का दुश्मन और इनके दोस्त का दोस्त हूँ, क्योंकि वो मुझ से और मै इनसे हूँ! बस ऐ ख़ुदा तू अपनी इनायतें और अपने बरकतें और अपनी रहमत और अपनी बखशिश और अपनी खुशनूदी मेरे और इनके लिये क़रार दे, इनसे नापाकी क़ो दूर रख, इनको पाक कर, बहुत ही पाक", इसपर खुदाये-बुज़ुर्ग-ओ-बरतर ने फ़रमाया, "ऐ मेरे फरिश्तो और ऐ आसमान में रहने वालो, बेशक मैंने यह मज़बूत आसमान पैदा नहीं किया, और न फैली हुई ज़मीन, न चमकता हुआ चाँद, न रौशन'तर सूरज, न घुमते हुए सय्यारे, न थल्कता हुआ समुन्दर, और न तैरती हुई किश्ती, मगर यह सब चीज़ें ईन पाक नफ्सों की मुहब्बत में पैदा की हैं जो इस चादर के नीचे हैं" इसपर जिब्राइल अमीन (अ:स) ने पुछा, "ऐ परवरदिगार! इस चादर में कौन लोग हैं?" खुदाये-अज़-ओ-जल ने फ़रमाया की वो नबी (स:अ:व:व) के अहलेबैत (अ:स)  और रिसालत का ख़ज़ीना हैं, यह फ़ातिमा (स:अ) और इनके बाबा (स:अ:व:व), इनके शौहर (अस:) इनके दोनों बेटे (अ:स) हैं! तब जिब्राइल (अ:स) ने कहा, "ऐ परवरदिगार! क्या मुझे इजाज़त है की ज़मीन पर उतर जाऊं ताकि इनमे शामिल होकर छठा फ़र्द बन जाऊं?" खुदाये ताला ने फ़रमाया, " हाँ हम ने तुझे इजाज़त दी" बस जिब्राइल ज़मीन पर उअतर आये और अर्ज़ की, "सलाम हो आप पर ऐ ख़ुदा के रसूल! खुदाये बुलंद-ओ-बरतर आप क़ो सलाम कहता है, आप क़ो दुरूद और बुज़ुर्गवारी से ख़ास करता है, और आप से कहता है, मुझे अपने इज़्ज़त-ओ-जलाल की क़सम के बेशक मै ने नहीं पैदा किया मज़बूत आसमान और न फैली हुई ज़मीन, न चमकता हुआ चाँद, न रौशन'तर सूरज, न घुमते हुए सय्यारे, न थल्कता हुआ समुन्दर, और न तैरती हुई किश्ती, मगर सब चीज़ें तुम पाँचों की मुहब्बत में पैदा की हैं और ख़ुदा ने मुझे इजाज़त दी है की आप के साथ चादर में दाख़िल हो जाऊं, तो ऐ ख़ुदा के रसूल क्या आप भी इजाज़त देते हैं?" तब रसूले ख़ुदा बाबा जान (स:अ:व:व) ने फ़रमाया , "यक़ीनन की तुम पर भी हमारा सलाम हो ऐ ख़ुदा की वही के अमीन (अ:स), हाँ मै तुम्हे इजाज़त देता हूँ" फिर जिब्राइल (अ:स) भी हमारे साथ चादर में दाख़िल हो गए और मेरे ख़ुदा आप लोगों क़ो वही भेजता है और कहता है वाक़ई ख़ुदा ने यह इरादा कर लिया है की आप लोगों ए नापाकी क़ो दूर करे ऐ अहलेबैत (अ:स) और आप क़ो पाक-ओ-पाकीज़ा रखे", तब अली (अ:स) ने मेरे बाबा जान से कहा, "ऐ ख़ुदा के रसूल बताइए के हम लोगों का इस चादर के अन्दर आ जाना ख़ुदा के यहाँ क्या फ़ज़ीलत रखता है?" तब हज़रत रसूले ख़ुदा ने फ़रमाया, "इस ख़ुदा की क़सम जिस ने मुझे सच्चा नबी बनाया और लोगों की निजात की ख़ातिर मुझे रिसालत के लिये चुना - अहले ज़मीन की महफ़िलों में से जिस महफ़िल में हमारी यह हदीस ब्यान की जायेगी और इसमें हमारे शिया और दोस्तदार जमा होंगे तो इनपर ख़ुदा की रहमत नाज़िल होगी, फ़रिश्ते इनको हल्क़े में ले लेंगे, और  जब वो लोग महफ़िल से रूखसत न होंगे वो इनके लिये बखशिश की दुआ करेंगे", इसपर अली (अ:स) बोले, " ख़ुदा की क़सम हम कामयाब हो गए और रब्बे काबा की क़सम हमारे शिया भी कामयाब होंगे" तब हज़रत रसूल ने दुबारा फ़रमाया, "ऐ अली (अ:स) इस ख़ुदा की क़सम जिस ने मुझे सच्चा नबी बनाया, और लोगों की निजात की ख़ातिर मुझे रिसालत के लिये चुना, अहले ज़मीन की महफ़िलों में से जिस महफ़िल में हमारी यह हदीस ब्यान की जायेगी और इस्मे हमारे शिया और दोस्तदार जमा होंगे तो इनमे जो कोई दुखी होगा ख़ुदा इसका दुख़ दूर कर देगा, जो कोई ग़मज़दा होगा ख़ुदा इसके ग़मों से छुटकारा देगा, जो कोई हाजत मंद होगा झुदा इसकी हाजत क़ो पूरा कर देगा" तब अली (अ:स) कहने लगे, "ब'ख़ुदा हमने कामयाबी और बरकत पायी और रब्बे काबा की क़सम की इस तरह हमारे शिया भी दुन्या व आख़ेरत में कामयाब व स'आदत मंद होंगे!
अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मुहम्मा व आले मुहम्मद


हदीसे किसा का विस्तारपूर्वक विवरण :

हदीसे किसा एक विनीत वर्णन है, जो एक परम्परा भी है और एक घटना का विवरण भी, यह उत्कृष्टता का एक भी वर्णन है और समृद्धि का कारण भी! विश्वासियों के बीच ऐसा कोई नहीं जिसे ईन शब्दों या इस धार्मिक हदीस की जानकारी नहीं, यह हदीस बीमार क़ो चिकित्सा प्रदान करने में,  इच्छुक की इच्छाओं को पूरा करने में, आपदाओं में फंसे असहाय व्यक्ति क़ो समर्थन प्रदान करने का माध्यम है, इस तथ्य को भी उस में उल्लेख किया गया है की इसको पढ़ने से अल्लाह की दयालुता प्राप्त होती है, और फ़रिश्ते माफ़ी की दुआ करते है, इसको पढ़ने से विशाल शर्तों क़ो सुनवाई जल्द प्राप्त होती है, जरूरतमंद अपनी जरूरतों को पूरा कर  सकते हैं, और सैकड़ों वर्ष से इस हदीस द्वारा विश्वासियों क़ो गौरव प्रदान हुआ है, और यह क्यों न हो! यह मासूमों (अ:स) और पवित्रता के मालिकों (अ:स) की एक हदीस है, जिसमे सिद्दीका-ए-ताहेरा (स:अ:व:व) का वर्णन है,  पवित्र क़ुरान की तफ़सील है, अल्लाह की रौशनी भरी सभा की एक घटना है, यह विस्मय और आशा है अल्लाह द्वारा प्रदान की गयी गद्दी के निवासियों (अ:स) के लिये, और जो महान और उत्कृष्टत इंसान हैं, और जड़ें पाक हैं!  अगर इन विशिष्टताओं की मौजूदगी में अनुग्रह, समृद्धि और दया की प्राप्ति नहीं होगी तो कब होगी?

बुधवार, 17 सितम्बर 2025 18:46

इस्लामी भाईचारा

पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने मदीने में दाख़िल होने के बाद सब से पहले जो बेसिक क़दम उठाए उनमें एक अहम काम यह भी था कि मुसलमानों के बीच प्यार, मुहब्बत और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए अंसार व मुहाजेरीन में से हर एक को एक दूसरे का भाई बना दिया और उनके बीच भाईचारे का सीग़ा (formula) भी पढ़ा जिसका नतीजा यह हुआ कि अरबों के सारे क़बीलों के बीच सैकड़ों साल पुरानी दुश्मनी और ख़ून खराबे का ख़ुद बख़ुद अंत हो गया और उस की जगह भाई चारे और प्यार व मुहब्बत ने ले ली और सब एक दूसरे के साथ मिल कर, एक जान हो कर पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के इशारों पर दीन के लिए अपनी जान निछावर करने लगे। इस्लाम की निगाह में सब इंसान बराबर हैं और कोई क़ौम या क़बीला तथा कोई रंग व नस्ल एक दूसरे पर वरीयता नहीं रखता और धन दौलत या ग़रीबी, बड़ाई या श्रेष्ठता का आधार नहीं है बल्कि उसकी निगाह में सदाचार के अतिरिक्त बड़ाई का हर आधार निराधार है जैसा कि क़ुर्आन मजीद में अल्लाह तआला फ़रमाता है कि हमनें तुम्हारी पहचान के लिए तुम्हें विभिन्न क़ौमों, क़बीलों और रंग व नस्ल और ज़बानों के हिसाब से पैदा किया है लेकिन यह याद रखना कि यह सब बातें तुम्हारी बड़ाई और श्रेष्ठता का कारण नहीं हैं बल्कि तुम्हारे अच्छे काम और सदाचार तुम्हारी वरीयता और बड़ाई का कारण और आधार हैं। क़ुर्आने मजीद में अल्लाह तआला फ़रमाता हैः ऐ इंसानों ! हम ने तुम को एक मर्द और एक औरत से पैदा किया है और फिर तुम में शाख़ाएं और क़बीले बनाए हैं ताकि आपस में एक दूसरे को पहचान सको। तुम में से अल्लाह के नज़दीक ज़्यादा सम्मानित वही है जो ज़्यादा परहेज़गार व सदाचार है और अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है और हर बात का जानने वाला है। अल्लाह तआला क़ुर्आने मजीद में मोमिनों को सम्बोधित करते हुए कह रहा है कि तुम्हारे बीच यह प्यार व मुहब्बत और भाईचारा अल्लाह की नेमत है वरना ईर्ष्या व द्वेष, हसद और जलन की आग ने तुम्हें मौत के दहाने पर पहुँचा दिया था। क़ुर्आने मजीद में अल्लाह फ़रमाता हैः और अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पक़ड़े रहो आर आपस में फूट न डालो और अल्लाह की नेमत को याद करो कि तुम लोग आपस में दुश्मन थे उसने तुम्हारे दिलों में प्यार पैदा कर दिया तो तुम उसकी नेमत से भाई भाई बन गये और तुम जहन्नम के किनारे पर थे तो उसने तुम्हें निकाला और अल्लाह इस तरह अपनी निशानियां तुम्हें दिखाता है कि शायद तुम सीधे रास्ते पर आ जाओ। हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम और मासूमीन अ. ने भी हमेशा मुसलमानों के बीच भाईचारे और बरादरी को मज़बूत करने पर ज़ोर दिया है और मोमिनों के बीच ज़्यादा से ज़्यादा भाईचारा और नज़दीकी पैदा करने की कोशिश की इसी लिए मरने के बाद उसके फ़ायदे और नतीजे भी बयान कर दिये हैं। हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम का फरमाते हैः अगर कोई आदमी किसी मोमिन भाई को अल्लाह तआला के लिए अपना भाई बनाये तो अल्लाह तआला उसे जन्नत में एक ऐसा दर्जा देगा जिस तक उसका कोई और अमल नहीं पहुँच सकता हैं। आप ने यह भी फ़रमायाः क़यामत के दिन कुछ लोगों के लिए आसमान के चारों तरफ़ कुछ कुर्सियाँ रखी जाएँगी और उनके चेहरे चौदहवीं के चाँद की तरह चमक रहे होंगे उस दिन लोग गिड़गिड़ा रहे होंगे मगर वह शांत होंगे, लोग भयभीत होंगे मगर उन्हें कोई डर न होगा, वह अल्लाह के नेक बंदों हैं जिन्हें न कोई डर है और न उदासी। पूछा गया ऐ अल्लाह के रसूल वह कौन लोग हैं? तो आपने फ़रमायाः वह अल्लाह के लिए मुहब्बत करने लोग हैं। आपके हवाले से यह भी बयान हुआ है, हदीसे क़ुदसी में अल्लाह का इरशाद हैं किः मेरी मुहब्बत उन लोगों को नसीब होगी जो मेरे लिए एक दूसरे से मुलाक़ात करेंगे और मेरी मुहब्बत उन लोगों को नसीब होगी जो मेरी वजह से एक दूसरे की मदद करते हैं, मेरी मुहब्बत उन लोगों को नसीब होगी जो मेरी लिए एक दूसरे से मुहब्बत करते हैं तथा मेरी मुहब्बत उनको नसीब होगी जो मेरी लिए एक दूसरे पर अपना माल ख़र्च करते हैं। (मुसनदे अहमद इबने हम्बल जि4 पे 386) हज़रत इमाम-ए-जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते है कि एक दिन हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने अपने असहाब से फ़रमायाः ईमान की कौन सी रस्सी सब से ज़्यादा मज़बूत है? असहाब ने कहाः ख़ुदा और उसका रसूल ज़्यादा बेहतर जानते हैं उसके बाद भी कुछ लोगों ने कहा नमाज़, ज़कात, रोज़ा, और कुछ ने कहा हज और उमरा और कुछ ने जेहाद का नाम लिया। हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने इरशाद फ़रमायाः जो कुछ तुम लोगें ने बयान किया है उनमें से हर एक के अंदर कोई न कोई श्रेष्ठता ज़रूर है मगर ईमान की सबसे मज़बूत रस्सी यह है कि हर एक से अल्लाह के लिए मुहब्बत करो और अल्लाह के लिए घृणा और नफ़रत करो और अल्लाह के औलिया (दोस्तों) से दोस्ती और अल्लाह के दुश्मनों से दुश्मनी करो। (बेहारुल अनवार जि 69, पे 242) जिस तरह इस्लाम की निगाह में हर काम अल्लाह की इच्छा के लिए होना ज़रूरी है उसी तरह दोस्ती और दुश्मनी भी अल्लाह की इच्छा के लिए होना चाहिए क्योंकि उसे कुछ रिवायतों में दीन का स्तम्भ और कुछ में दीन का आधार कहा गया है। और सच्चाई तो यह है कि इस्लाम में हर दोस्ती और दुश्मनी का आधार अल्लाह की संतुष्टि के अतिरिक्त कुछ और नहीं है। क़ुर्आने करीम में अल्लाह तआला फ़रमाता हैः बेशक सारे मोमिन लोग एक दूसरे के भाई हैं। मोमिनों की दोस्ती और मुहब्बत का आधार अल्लाह पर ईमान और उसका आज्ञापालन है और उसके अतिरिक्त दुनिया के दूसरे सारे भौतिक आधार और अहकाम बेकार और निराधार हैं। जो लोग किसी आदमी के माल, दौलत या पद की वजह से मुहब्बत करते हैं या उसका सम्मान करते हैं और उससे डरते हैं उनकी उस मुहब्बत में स्थिरता नहीं पायी जाती है बल्कि जैसे ही उनके उद्देश्य़ पूरे होते हैं या उसकी दौलत और उसका पद उसके हाथ से निकल जाता है उसी दिन से सब मोहब्बतें भी मिट्टी में मिल जाती हैं अधिकतर ऐसा होता है पुराना चहेता दुश्मन भी हो जाता है लेकिन इस्लामी मूल्यों पर आधारित हर दोस्ती परमानेन्ट होती है और उसमें किसी प्रकार की दराड़ नहीं पड़ती है क्योंकि उसका आधार अल्लाह की मुहब्बत है जिस में किसी प्रकार के ख़ोखलपन की संभावना नहीं है। यही वजह है कि दीनी मुहब्बत और भाई चारा सारे भौतिक मूल्यों जैसे रंग, नस्ल, माल और दौलत आदि से उच्च है इसी लिए इस्लाम के आरम्भिक दिनों में हर आदमी ने यह सीन अपनी आँखों से देखा है कि हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ग़ुलामों के साथ दस्तरखान पर बैठ कर खाना ख़ाते थे। एक दिन वह था जब अरब क़बीले केवल अपने ऊँट, औलाद, और संपत्ति की अधिकता पर ही नहीं बल्कि अपने मुर्दों और क़ब्रों की अधिकता पर भी गर्व किया करते थे और अरब को ग़ैरे अरब पर और गोरे को काले पर प्राथमिकता देते थे। लेकिन हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने जाहेलियत के इन सारे मूल्यों को रद्द कर दिया, और बिलाले हब्शी, सहीब रूमी, सलमाने फ़ारसी को अपने असहाब में शामिल कर लिया और ज़ैद इबने हारेसा की शादी अपनी फुफी की बेटी जनाबे ज़ैनब से करा दी। या जनाबे जुवैबर (जो अफ़रीक़ा के एक फ़क़ीर बाशिंदे थे) का निकाह एक मालदार और मशहूर आदमी की बेटी ज़ुलफ़ा के साथ करा दिया क्योंकि आप का यह फ़रमान है किः एक मोमिन दूसरे मोमिन के समान है। ख़ुलासा यह है कि अल्लाह के अतिरिक्त किसी और से मुहब्बत करना एक प्रकार का शिर्क है क्योंकि जब मुहब्बत का चेहरा किसी के दिखावे की या वास्तविक ख़ूबसूरती व सुंदरता की वजह से अल्लाह के अतिरिक्त की तरफ़ मुड़ जाएगा तो चूंकी यह ख़ूबसूरती व सुंदरता वास्तव में अल्लाह तआला की दी है और वह कमाल व सुंदरता का स्रोत है इसलिये उससे आँखें बंद करके किसी दूसरे की तरफ़ चेहरा करना शिर्क है। इस्लाम ने अल्लाह तआला की जिस मुहब्बत की प्रेरणा दी है उसकी मुहब्बत में उसके चाहने वाले और उसके चहेते बंदे अनिवार्य रूप से शामिल हैं जिस की एक वजह यह भी है कि अल्लाह के नेक बंदों की मुहब्बत से अल्लाह के ज़िक्र का शौक़ पैदा होता है क्योंकि उनकी ज़ात में अल्लाह तआला के विशेषताएं प्रमुख रहती हैं और सारांश यह कि उनके द्वारा अल्लाह से नज़दीकी हासिल होती है। अल्लाह की इच्छा के लिए मुहब्बत और नफ़रत के आधार पर ही अल्लाह के दुश्मनों और काफ़िरों से दुश्मनी और दूरी यानी तबर्रा का हुक्म दिया गया है। क्योंकि मसल मशहूर है कि दोस्त का दुश्मन भी, दुश्मन होता है। क़ुर्आन की आयत ने इसी बात को अत्यंत सुंदर अंदाज़ में यूँ बयान किया हैः मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं, और जो लोग उनके साथ हैं वह क़ुफ़्फ़ार के लिए सख़्ततरीन और आपस में इंतेहाई रहम दिल हैं। मानो उनके बीच बेहद प्यार व मुहब्बत पाई जाती है और अल्लाह की मुहब्बत ने उनको एक बना दिया था और उसी मुहब्बत की वजह पर वह अल्लाह के दुश्मनों के मुक़ाबले में एक लोहे की दीवार बने हुए हैं। ज़ियारते आशूरा में यूँ बयान किया गया हैः क़यामत तक मेरी केवल उससे सुलह और दोस्ती है जिस से आप की सुलह और दोस्ती हो और उससे मेरी दुश्मनी है जिससे आप लोग की जंग और दुश्मनी है। अल्लाह तआला की सच्ची मुहब्बत का अंदाज़ा दो चीज़ों से लगाया जा सकता है।

  1. अल्लाह द्वारा वाजिब की गईं चीज़ों की पाबंदी और हराम की गई चीज़ों से परहेज़ क्योंकि वह इंसान हरगिज़ सच्चा नहीं हो सकता है कि जो मुहब्बत का दम भरता हो मगर अपने चहेते का आज्ञापालन न करे। क्योंकि अल्लाह तआला निश्चित रूप से हम से मुहब्बत करता है इसी लिए उसने हमें बेशुमार नेमतों से नवाज़ा है और हम यह नेमतें लेने के बाद उनका आज्ञापालन करते हैं और उसका शुक्र अदा करते हैं ताकि अपने दिल में मौजूद उसकी मुहब्बत का सुबूत दे सकें और यही नहीं बल्कि उस शुक्र से नेमतें और ज़्यादा होती है जैसा कि अल्लाह फ़रमाता हैः अगर तुम हमारा शुक्र अदा करोगे तो हम नेमतों को बढ़ा कर देंगे। इस शुक्र के नतीजे में उसे इतनी नेमतें मिलती हैं कि वह इंसान को उस के ऊंचे स्थान तक पहुँचा देती हैं।
  2. अल्लाह की मुहब्बत की मांग यह है कि इंसान समाजी और सामूहिक वाजेबात और अधिकार भी ज़रूर अदा करे जैसे वालिदैन का आज्ञापालन और उनको राज़ी रखना, पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार और रिश्तेदारों से मिलना जुलना, ग़रीबों और फ़क़ीरों कि मदद और उनसे मुहब्बत, तथा अल्लाह के दुश्मनों से नफ़रत और दूरी अल्लाह। यही वजह है कि क़ुर्आने मजीद ने दोस्ती और दुश्मनी के सारे आधार निर्धारित कर दिए हैं कि किस से मुहब्बत की जाए और किस से नफ़रत हो जैसा कि अल्लाह फ़रमाता हैः ईमान वालो! ख़बरदार मोमनीन को छोड़ कर क़ुफ़्फ़ार को अपना वली और अभिभावक न बनाना। इसी तरह फ़रमाता हैः ऐ ईमान वालों खबरदार मेरे और अपने दुश्मनों को दोस्त मत बनाना। इससे इस्लामी एकता और भाई चारे की प्रसंविदा की महानता का पता चलता है जो शुद्ध तौहीद के अक़ीदे की आग़ोश में परवान चढ़ा है और यही (एकता) इस अक़ीदे की पहचान है। सारांश हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने मदीना पहुँचने के बाद सबसे पहला अहेम क़दम यह उठाया कि अंसार और मुहाजेरीन के बीच भाईचारे का सीग़ा पढ़ाया जिसके नतीजे में इस्लामी समाज में बे मिसाल मुहब्बत व भाईचारे और एकता पैदा हो गई, और सारे मुसलमानों के बीच नज़दीकी और मुहब्बत का एक अभूतपूर्व वातावरण स्थापित हो गया। अल्लाह तआला ने सदाचार और परहेज़गारी को ही वरीयता और बड़ाई का आधार बताया है और आपसी सम्पर्क और सम्बंध को अल्लाह तआला की मुहब्बत और दुश्मनी के आधार पर आधारित करने की तकीद की है। अल्लाह तआला की मुहब्बत या दुश्मनी का अंदाज़ा वाजेबात की अदायगी और हराम व वर्जित चीज़ों से परहेज़ के द्वारा लगाया जा सकता है या यह कि अल्लाह के नज़दीक बंदों की मुहब्बत हो और उसके दुश्मनों से मुहब्बत और सम्बंध के रिश्ते तोड़ लिए जाएँ।

wilayat.in

प्रश्नः 1. इस्लाम में बड़ाई का आधार किया है? सूरए हुजरात की एक आयत बयान कीजिये?

  1. मोमनीन के बीच भाईचारे की अहमियत के बारे में हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की एक हदीस बयान कीजिये?
  2. हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने ईमान की सब से मज़बूत रस्सी किस चीज़ को बताया है?
  3. इस्लाम ने हमें किस मक़सद के तहत औलियाए इलाही की दोस्ती का हुक्म दिया है?
  4. क़ुर्आने करीम ने हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम और आपके वफ़ादार असहाब की क्या विशेषता बयान की हैं?
  5. अल्लाह तआला से दोस्ती और उसके दुश्मनों से दुश्मनी का अनिवार्य नतीजा किया है?

 

कभी-कभी इलाही नेमतो की जड़ें अनंत काल तक पहुँच जाती हैं। इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने स्वयं यह खुशखबरी दी थी कि उनके पुत्र हज़रत मूसा काज़िम (अ) के गर्भ से एक कुलीन महिला का जन्म होगा, जिसका दरगाह ईमान वालों के लिए एक शरणस्थली और आश्रय बनेगा। यही वह परंपरा है जो हज़रत मासूमा (स) के अनगिनत चमत्कारों को भी उजागर करती है।

हज़रत मासूमा (स) की उदार कृपाओं के बारे में प्राचीन काल से ही परंपराएँ प्रचलित हैं। ये कहानियाँ इस बात की साक्षी हैं कि जिसने भी नेतृत्व किया और उनके दरबार में उपस्थित होकर अपनी इच्छा व्यक्त की, उसे हमेशा ईश्वरीय कृपा और दया का प्रतिफल प्राप्त हुआ।

रावी कहता हैं: मैं इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) की सेवा में आया और देखा कि वह पालने में एक बच्चे से बात कर रहे थे।

मैंने आश्चर्य से पूछा: क्या तुम भी पालने में पड़े बच्चे से बात करते हो?

इमाम (अ) ने फ़रमाया: हाँ, अगर तुम चाहो तो उससे भी बात कर सकते हो।

मैं पास गया और बच्चे का अभिवादन किया। उन्होंने जवाब दिया:

"अपनी बेटी का नाम बदल दो क्योंकि अल्लाह को यह नाम पसंद नहीं है।"

कुछ दिन पहले, अल्लाह ने मुझे एक बेटी दी थी और मैंने उसका नाम "हुमिरा" रखा।

बच्ची की बातचीत, जो अदृश्य का समाचार देती थी और भलाई का आदेश देती थी और बुराई से रोकती थी, मेरे लिए आश्चर्य और विस्मय का कारण बन गई। इमाम सादिक (अ) ने फ़रमाया:

"आश्चर्यचकित मत हो, यह मेरा बेटा मूसा है। अल्लाह मुझे इससे एक बेटी देगा जिसका नाम फ़ातिमा होगा। उसे क़ुम की धरती पर दफ़न किया जाएगा और जो कोई भी उसके दर्शन करेगा वह जन्नत का हक़दार होगा।"

 

नई दिल्ली ए.एम.आर. मेडिकल एंड एजुकेशनल ट्रस्ट और लाइफ लाइन आई सेंटर दिल्ली के संयुक्त प्रयास से एक विशेष फ्री आई मेडिकल कैंप का आयोजन किया जा रहा है। यह कैंप 20 और 27 सितंबर 2025 को आयोजित होगा।

नई दिल्ली ए.एम.आर. मेडिकल एंड एजुकेशनल ट्रस्ट और लाइफ लाइन आई सेंटर दिल्ली के संयुक्त प्रयास से एक विशेष फ्री आई मेडिकल कैंप का आयोजन किया जा रहा है। यह कैंप 20 और 27 सितंबर 2025 को आयोजित होगा।

कैंप प्रत्येक शनिवार सुबह 10:00 बजे से दोपहर 3:00 बजे तक चलेगा। इसका स्थान A-13, प्रीयदर्शनी विहार, लक्ष्मी नगर, दिल्ली-110092 निर्धारित किया गया है।

कैंप में आंखों से संबंधित कई सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँगी, जिनमें शामिल हैं:फ्री ओ.पी.डी.,फ्री चेक-अप,आंखों की संपूर्ण जांच, विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श

कैंप में मरीजों का उपचार प्रसिद्ध नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. जावेद एच. फारूकी (MBBS, DNB) करेंगे। वे सीनियर कंसल्टेंट आई स्पेशलिस्ट और कॉर्निया, कैटरैक्ट एवं रिफ्रेक्टिव सर्जन हैं तथा ऑस्ट्रेलिया के रॉयल एडीलेड हॉस्पिटल से फेलोशिप प्राप्त कर चुके हैं।

आयोजकों के अनुसार, मरीजों को इस कैंप में केवल ₹100 पंजीकरण शुल्क देना होगा, जबकि अन्य सभी सुविधाएँ निःशुल्क प्रदान की जाएँगी।

जनता से अधिक से अधिक संख्या में शामिल होकर इस चिकित्सा सेवा का लाभ उठाने की अपील की गई है।

संपर्क नंबर: +91 9599 444 445, 9319570586

 

हज़रत फातेमा मासूमा (स.ल.व.) की ऐतिहासिक हिजरत और संक्षिप्त ठहराव ने क़ुम को शिओ की धड़कन बना दिया। उनकी पाक मज़ार आज भी ज्ञान और आध्यात्मिक दुनिया के लिए मार्गदर्शन का स्रोत है।

23 रबीअ उल अव्वल सन २०१ हिजरी को हज़रत फातेमा मासूमा सल्लल्लाहु अलैहा के आगमन से क़ुम का इतिहास एक नए युग में प्रवेश हुआ। यद्यपि आप केवल १७ दिन इस शहर में रहीं, लेकिन आपके दफन ने क़ुम को अम्मुल क़ुरा य शिया" का दर्जा दिया और यह शहर शिया ज्ञान का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और शैक्षिक केंद्र बन गया।

क़ुम; अहले तशय्यो का धड़कता हुआ दिल

आइम्मा ए अतहार अलैहिमुस्सलाम ने हज़रत मासूमा सल्लल्लाहु अलैहा की ज़ियारत को जन्नत की गारंटी माना है, जिसके कारण सदियों से मोमिन और उलमा क़ुम की ओर रुख करते रहे हैं। इतिहासकार लिखते हैं कि केवल शिया ही नहीं, बल्कि सुन्नी अमीर और शासक भी आपके मक़बरे की ज़ियारत को नज़दीक़ी की वजह मानते थे।

अहले तशय्यो और शैक्षिक विरासत

हज़रत मासूमा सल्लल्लाहु अलैहा के मज़ार की बरकत से क़ुम जल्दी ही ज़ायरीन, व्यापारी और तलबा इल्म का केंद्र बन गया। अश'अरी खानदान और मुद्धिसीन (हदीस के ज्ञाता) ने सीधे आइम्मा ए अतहार अलैहिमुस्सलाम से इल्म हासिल किया और हजारों छात्रों के ज़रिए अहल-ए-बैत की शिक्षाएं ईरान और अन्य इस्लामी इलाक़ों तक पहुंचाईं।

हौज़ा इल्मिया क़ुम; सबसे बडा इल्मी मिरास:

मध्य युग में क़ुम में लाखों उलेमा और तलबा मौजूद थे और सैंकड़ों किताबें यहाँ से इस्लामी केंद्रों तक पहुंचीं। यह शैक्षिक संग्रह बाद में हौज़ा इल्मिया क़ुम बन गया जो आज भी दुनिया भर में अहल-ए-बैत की शिक्षाओं का झंडा बुलंद किए हुए है।

नतीजा

यह कहना गलत न होगा कि ईरान में तशय्ये की स्थिरता और आध्यात्मिक प्रभुत्व का रहस्य हज़रत फातिमा मासूमा सल्लल्लाहु अलैहा की बरकत वाली हिजरत और क़ुम में उनके पाक हरम की मौजूदगी में छुपा है।

 

मरकज़ी दार उल क़ुरान ज़ैनबिया के अंतर्गत इमाम खुमैनी टावर (आईकेएमटी केजीएल) में "जश्न-ए-सादेक़ैन" समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें संस्थान के बड़ी संख्या में शिक्षकों और छात्रों ने भाग लिया।

इमाम खुमैनी टावर (आईकेएमटी केजीएल) में "जश्न-ए-सादेक़ैन" समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें संस्थान के बड़ी संख्या में शिक्षकों और छात्रों ने भाग लिया।

मरकज़ी दार उल क़ुरान ज़ैनबिया के अंतर्गत खुमैनी टावर कारगिल में जश्न-ए-सादेक़ैन (अ) का आयोजित

सादिक़ीन कक्षा के छात्रों ने पवित्र कुरान के सामूहिक पाठ के साथ समारोह की शुरुआत की; कक्षा सुलेमानी ने नात प्रस्तुत की, कक्षा शाहिदा बिन्त अल-हुदा ने मनक़बत प्रस्तुत की और ज़हरा बतूल (कक्षा नासिरिन) ने इस्लामी ज्ञान के प्रश्न प्रस्तुत किए।

मरकज़ी दार उल क़ुरान ज़ैनबिया के अंतर्गत खुमैनी टावर कारगिल में जश्न-ए-सादेक़ैन (अ) का आयोजित

ज़ैनब कुबरा (कक्षा नासिरिन) ने ईद मिलादुन्नबी (स) पर एक प्रभावशाली भाषण दिया, जबकि बिलक़ीस (कक्षा सालेहीन) ने बाल्टी में क़सीदा पढ़ा।

कार्यक्रम के अंत में, प्रधानाचार्या सुश्री ज़हरा यूसुफ़ी ने समापन भाषण दिया।

मरकज़ी दार उल क़ुरान ज़ैनबिया के अंतर्गत खुमैनी टावर कारगिल में जश्न-ए-सादेक़ैन (अ) का आयोजित

कार्यक्रम के अंत में, सभी प्रतिभागियों के बीच दुआएँ बाँटी गईं; यह कार्यक्रम शैक्षणिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुआ।

हौज़ा ए इल्मिया ईरान के प्रमुख आयातुल्लाह अली रज़ा आराफी ने हौज़ा और समाज के बीच संबंध को मज़बूत करने के लिए वास्ता सिद्धांत की आवश्यकता पर ज़ोर दिया हैं।

हौज़ा ए इल्मिया ईरान के प्रमुख आयातुल्लाह अली रज़ा आराफी ने इमाम खुमैनी रह.वैज्ञानिक और शोध संस्थान, कुम में नए शैक्षिक वर्ष के उद्घाटन समारोह में शिक्षकों, शोधकर्ताओं और छात्रों को नए शैक्षिक वर्ष की शुभकामनाएं दीं। साथ ही उन्होंने पैग़म्बर मुहम्मद (स.ल.) और इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम के मिलाद और पैग़म्बर इस्लाम (स.ल..) की 1500वीं सालगिरह के अवसर पर बधाई भी पेश की। उन्होंने संस्थान की वैज्ञानिक और शोध सेवाओं की भी सराहना की।

आयातुल्लाह आराफ़ी ने आयातुल्लाह मिस्बाह यज़दी (रह.) की शख्सियत का ज़िक्र करते हुए कहा कि वे इमाम खुमैनी (र.ह.) और इस्लामी क्रांति के बुज़ुर्गों में से थे और क्रांति के हर उतार-चढ़ाव में इस्लामी विचार के संरक्षक और इस्लामी व्यवस्था के सिद्धांतों व मूल्यों के रक्षक रहे। उन्होंने वलीयत-ए-फक़ीह (फकीह की नेतृत्व) के पक्षधर के रूप में साहसी और अग्रणी भूमिका निभाई। उनकी इल्मी विरासत हौज़ा और विश्वविद्यालयों के लिए एक अनमोल खज़ाना है।

फ़क़ीहा काउंसिल के इस सदस्य ने आगे कहा कि नहजुल बलाग़ा की ख़ुतबात में पैग़म्बर मुहम्मद (स.ल.) की शख्सियत पर विचार करना आवश्यक है। नहजुल बलाग़ा में 45 स्थानों पर रसूलुल्लाह (स.ल.) के बारे में चर्चा हुई है जो यह दर्शाती है कि पैग़म्बरी मिशन कोई स्थानीय घटना नहीं बल्कि एक विश्वव्यापी और इतिहास बदलने वाली घटना है।

उन्होंने बताया कि कुछ लोग समझते हैं कि पैग़म्बर (स.ल.) की रसालत सिर्फ़ अरब के गिरते हुए समाज तक सीमित थी, जबकि नहजुल बलाग़ा की बातें इस तथ्य को स्पष्ट करती हैं कि उनकी पैग़म्बरी मिशन का संदेश पूरी मानवता के लिए एक सार्वभौमिक और निजात देने वाला था।

निदेशक ने कहा कि यदि कोई पैग़म्बर (स.ल..) की महान शख्सियत को समझना चाहता है तो उसे नहजुल बलाग़ा की तरफ रुख़ करना चाहिए। अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम के अलावा कोई भी ऐसा नहीं है जो इस महान मुकाम की गहरी और सटीक तस्वीर पेश कर सके। ये बयान न केवल पैग़म्बरी मिशन के सामाजिक पहलुओं को उजागर करते हैं बल्कि पैग़म्बर (स.ल.) के पारिवारिक और इलाही मुकाम को भी बयान करते हैं।

उन्होंने आगे कहा कि अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम के बयान पैग़म्बर (स.ल.) की व्यक्तिगत और पारिवारिक महानता को भी दर्शाते हैं और उस दौर के सामाजिक विश्लेषण को भी प्रदान करते हैं। ये दोनों पहलू हमें यह संदेश देते हैं कि व्यक्तिगत इच्छा शक्ति, पारिवारिक पवित्रता और इलाही कनेक्शन हर तरह की बुराई और भौतिक ताकतों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।

आयातुल्लाह आराफ़ी ने छात्रों को नहजुल बलाग़ा से जुड़ने की सलाह दी और कहा कि नहजुल बलाग़ा हमेशा छात्रों के साथ रहनी चाहिए। यह किताब केवल उच्चतम ज्ञान का संग्रह नहीं है, बल्कि इसमें साहित्य की श्रेष्ठता, वीरता, जिहाद और नैतिक विषय भी शामिल हैं। इसमें नैतिकता, प्रशासन, शासन और यहां तक कि युद्ध के मैदान से जुड़ी बातें भी हैं, इसलिए नहजुल बलाग़ा एक महान और दूसरी तरफ़ कार्यात्मक किताब है।

उन्होंने आगे कहा कि सुप्रीम लीडर का संदेश हौज़ा इल्मिया के भविष्य के लिए एक रोडमैप है। यह संदेश कमजोरियों को नजरअंदाज नहीं करता बल्कि सफलताओं को उजागर करता है और कमजोरियों को दूर करने की याद दिलाता है। सही व्याख्या यही है कि हमें संतुलित नजरिए से एक तरफ उपलब्धियों और संभावनाओं को देखना चाहिए और दूसरी तरफ सुधार की जरूरतों को पूरा करने का प्रयास करना चाहिए।