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ईरानी उद्योग और व्यापार मंत्री मोहम्मद अताबक और पाकिस्तानी व्यापार मंत्री जाम कमाल खान की हाल ही में हुई बैठक में आर्थिक संबंधों को बढ़ाने पर सहमति बनी है।

ईरान और पाकिस्तान ने आपसी व्यापारिक संबंधों को नए स्तर पर ले जाने के संकल्प का इजहार करते हुए सालाना 10 अरब डॉलर के व्यापार का लक्ष्य निर्धारित किया है। यह घोषणा ईरानी उद्योग, खान और व्यापार मंत्री मोहम्मद अताबक ने पाकिस्तानी व्यापार मंत्री जाम कमाल खान से मुलाकात के दौरान की।

मोहम्मद अताबक ने कहा कि ईरान और पाकिस्तान आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में संबंधों को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। दोनों देशों के मानवीय और आर्थिक संसाधनों को देखते हुए यह लक्ष्य हासिल करना संभव है।

उन्होंने पाकिस्तान की ओर से इजरायली आक्रामकता के खिलाफ ईरान के समर्थन की सराहना करते हुए कहा कि तेहरान और इस्लामाबाद के ऐतिहासिक और भाईचारे के संबंध हमेशा सौहार्द और पड़ोसी नीति पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।

ईरानी मंत्री ने हाल के बाढ़ के कारण पाकिस्तान में जान और माल के नुकसान पर दुख जताते हुए कहा कि ईरान मुश्किल समय में अपने पड़ोसी देशों की मदद के लिए तैयार है।

उन्होंने यह भी बताया कि दोनों देशों के केंद्रीय बैंकों के निवेश से संयुक्त ईरान-पाकिस्तान कंपनी की स्थापना पर भी बातचीत जारी है, जो द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगी।

पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल व्यापार मंत्री के नेतृत्व में तेहरान में ईरान-पाकिस्तान संयुक्त सहयोग आयोग की बैठक में भाग लेने के लिए मौजूद है, जहां जरूरी सामानों के समझौते सहित कई आर्थिक परियोजनाओं पर विचार किया जाएगा।

 

हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने कहा है कि नहजुल-बलाग़ा सिर्फ़ एक किताब नहीं, बल्कि एक घोषणापत्र है जो मनुष्य के भीतर परिवर्तन और क्रांति पैदा करता है। उनके अनुसार, आज के युग में महिला विद्वानों की ज़िम्मेदारी है कि वे धार्मिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में सक्रिय रहें और नई दुनिया के बौद्धिक शासन में अपनी भूमिका निभाएँ।

क़ुम स्थित जामेअतुज़ ज़हरा (स) और हौज़ा ए इल्मिया ख़ाहारान के नए शैक्षणिक वर्ष के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए, आयतुल्लाह आराफ़ी ने कहा कि पैगंबर (स) का नूर कायनात का पहला नूर और मानवता के लिए मार्गदर्शन की एक शाश्वत मशाल है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अमीरुल मोमेनीन (अ) ने नहजुल-बलाग़ा में पैगंबर (स) के व्यक्तित्व को एक व्यापक संज्ञानात्मक और बौद्धिक प्रणाली के रूप में प्रस्तुत किया है, जो आज भी मानव जीवन के लिए एक मार्गदर्शक है।

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि महिला धार्मिक मदरसे में एक विशेष पाठ्यक्रम होना चाहिए जो छात्राओं को नहजुल-बलाग़ा के माध्यम से पैग़म्बरी और धार्मिक ज्ञान से गहराई से परिचित कराए। उनके अनुसार, इस्लामी क्रांति के नेता ने भी बार-बार सेमिनरी के पाठों और प्रशिक्षण में नहजुल-बलाग़ा को केंद्रीय स्थान देने पर ज़ोर दिया है।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने आगे कहा कि क़ुरान और सुन्नत ने मानवता के लिए बौद्धिक, न्यायशास्त्रीय, नैतिक और सामाजिक मुद्दों के द्वार खोले हैं और आज यह ज़रूरी है कि महिला विद्वान इन शिक्षाओं को नई पीढ़ी तक पहुँचाएँ ताकि इस्लाम का असली चेहरा दुनिया के सामने आए।

उन्होंने यह भी कहा कि महिला विद्वानों को नहजुल-बलाग़ा का रोज़ाना अध्ययन करना चाहिए ताकि उनकी शैक्षणिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक क्षमताओं में वृद्धि हो सके।

नहजुल-बलाग़ा परिवर्तन और जागृति की एक पुस्तक है/महिला विद्वान नई दुनिया के शासन में प्रमुख भूमिका निभा सकती हैं: आयतुल्लाह आराफ़ी

इस्लामी क्रांति के बाद उभरी शैक्षणिक और धार्मिक जागरूकता अब एक वैश्विक वास्तविकता बन गई है और यह संदेश महिलाओं के माध्यम से दुनिया तक अधिक प्रभावी ढंग से पहुँचाया जा सकता है।

भविष्य में, प्रौद्योगिकी, विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता और वैज्ञानिक विज्ञान में विशेषज्ञता, धार्मिक संस्थानों के लिए अपरिहार्य होगी, इसलिए महिला विद्वानों को भी इन विज्ञानों से परिचित होना चाहिए।

अंत में, उन्होंने कहा कि महिला विद्वानों को न केवल शैक्षणिक और धार्मिक स्तर पर, बल्कि सांस्कृतिक और सरकारी क्षेत्रों में भी अग्रणी बनना होगा ताकि इस्लाम का संदेश पूरी दुनिया तक बेहतर ढंग से पहुँचाया जा सके।

इज़राईली स्रोतों ने मिस्र और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव के मद्देनजर युद्ध की संभावना जताई है।

इज़राईली स्रोतों ने चेतावनी दी है कि मिस्र की बढ़ती सैन्य शक्ति और दोनों देशों के बीच तनाव के कारण काहिरा और तेल अवीव के बीच निकट भविष्य में युद्ध छिड़ने की आशंका है।

विवरण के अनुसार, ज़ायोनी मामलों के विशेषज्ञ और इजरायली सैन्य खुफिया के पूर्व अधिकारी ताल ओर्टन ने कहा है कि इजरायली खुफिया एजेंसियों को मिस्र पर गहरी नजर रखनी चाहिए क्योंकि काहिरा युद्ध की तैयारी कर रहा है।

दूसरी ओर, इजरायल हयूम ने भी रिपोर्ट दी है कि काहिरा और तेल अवीव के राजनीतिक संबंध निचले स्तर पर पहुंच चुका हैं और शांति और संबंधों की बहाली के समझौते अब व्यावहारिक रूप से समाप्त होते जा रहे हैं।

हिब्रू अखबारों ने पिछले दिनों अपने मुख्य पृष्ठों पर लिखा कि मिस्र की सैन्य शक्ति तेजी से बढ़ रही है और अमेरिका, रूस और चीन के साथ हुई व्यापक सैन्य अभ्यासों के परिणामस्वरूप यह देश युद्ध की तैयारियों को मजबूत कर रहा है।

 

इस्राइली मीडिया के अनुसार, हरीदी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले कम से कम आठ सैनिक देश से बाहर भागने की कोशिश करते समय बिन गुरियन एयरपोर्ट पर गिरफ़्तार किए गए हैं।

ग़ासिब इस्राइली मीडिया ने बताया है कि हरीदी समुदाय से संबंध रखने वाले कम से कम आठ सैनिक विदेश भागने की कोशिश करते हुए बिन गुरियन एयरपोर्ट पर गिरफ्तार किए गए हैं।

ज़ायोनी मीडिया के मुताबिक, ज़ायोनी सेना से भागने वाले ये आठ हरेदी यहूदी बिन गुरियन एयरपोर्ट पर पकड़े गए हैं।रिपोर्ट में बताया गया है कि ये लोग सैन्य सेवा से गायब थे और एयरपोर्ट पर ही पकड़ में आए।

ग़ाज़ा में चल रही लंबी लड़ाई के कारण ज़ायोनी सेना को गंभीर जनशक्ति की कमी का सामना करना पड़ रहा है, वहीं हरीदी यहूदी लगातार सेना में भर्ती होने से इनकार कर रहे हैं।

यह भी ध्यान देने वाली बात है कि इससे पहले चीफ ऑफ स्टाफ आयाल ज़ामीर ने चेतावनी दी थी कि ग़ाज़ा के खिलाफ युद्ध में सेना को जनशक्ति की कमी एक गंभीर समस्या बन गई है।

 

 

आयतुल्लाह सय्यद शहाबुद्दीन मरअशी नजफी अपने जीवन की एक अद्भुत घटना का वर्णन करते हैं, कि कैसे हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स) के दान से उन्हें कठिनाइयों और गरीबी से मुक्ति मिली।

अहले बैत (अ) ईश्वरीय दया और निराश लोगों की आशा का प्रतीक हैं। इन्हीं में से एक हैं हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स), जिनकी पवित्र शहर क़ुम में स्थित दरगाह हर ज़रूरतमंद व्यक्ति के लिए सांत्वना और मध्यस्थता का केंद्र है।

आयतुल्लाह मरअशी नजफी बताते हैं कि जब वे नजफ़ अशरफ़ से क़ुम आए, तो वे अत्यधिक गरीबी से जूझ रहे थे और एक छोटे से किराए के घर में रहते थे। घर की मालकिन बहुत सख्त और अनैतिक थी, और छोटी-छोटी बातों पर भी अपनी पति से झगड़ती रहती थी। एक दिन, इस झगड़े से बहुत दुखी होकर, आयतुल्लाह मरअशी नजफ़ी हज़रत मासूमा (स) की दरगाह की ओर मुड़े और आँसू और विलाप के साथ कहा:

“बीबी जान! मैं आपका मेहमान हूँ और आपकी दरगाह में शरण चाहता हूँ। अल्लाह से दुआ करें कि मुझे किराए के घर में रहने के दुःख से मुक्ति मिले।”

कुछ दिनों बाद, उनके चाचा का एक पत्र आया जिसमें लिखा था कि उन्होंने मन्नत मानी है कि अगर उनकी ज़रूरत पूरी हो जाए, तो वे क़ुम में एक बेघर छात्र के लिए एक घर खरीदेंगे। चूँकि आयतुल्लाह मरअशी नजफ़ी के पास अपना घर नहीं था, इसलिए उन्हें छह सौ तूमान भेजे गए ताकि वे क़ुम में एक घर खरीद सकें।

इस प्रकार, हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स) की कृपा और मध्यस्थता से, आयतुल्लाह मरअशी नजफ़ी और उनके परिवार को किराए के घर में रहने और कठिनाइयों से मुक्ति मिली।

 

 

सदियों से फ़लसफ़ीयों और इल्म ए क़लाम के जानकार इस सवाल पर विचार करते आए हैं अगर खुदा सबसे पहले से हर चीज़ जानता है, तो फिर इंसान की आज़ादी और इख़्तियार का क्या मक़ाम रहता है? क्या ईश्वर के पहले से जानने का मतलब यह है कि हमारे पास अपनी मर्जी और चुनाव की कोई गुंजाइश नहीं बचती?

सदियों से फ़लसफ़ीयों और इल्म ए क़लाम के जानकार इस सवाल पर विचार करते आए हैं अगर खुदा सबसे पहले से हर चीज़ जानता है, तो फिर इंसान की आज़ादी और इख़्तियार का क्या मक़ाम रहता है? क्या ईश्वर के पहले से जानने का मतलब यह है कि हमारे पास अपनी मर्जी और चुनाव की कोई गुंजाइश नहीं बचती?

अल्लाह तआला का 'इल्म-ए-एज़ली' और इंसान के इख़्तियार का मसला सदियों से दार्शनिकों और मुफ़्तकिरीन के बीच चर्चा का विषय रहा है। इसके संबंध में एक आम शक्ल पेश की जाती है:

शूब्ह:

अगर ईश्वर पहले से जानता है कि मैं क्या करूँगा तो मैं मजबूर हूँ?

यह सोच असल में एक ग़लतफहमी है, जिसमें कारण (अलल) और परिणाम को उल्टा समझ लिया जाता है।

हक़ीक़त यह है कि ईश्वर जानता है क्योंकि तुम चुनाव करोगे, न कि तुम चुनाव करते हो क्योंकि ईश्वर जानता है।

स्पष्टीकरण:

यह बात पहली नज़र में विरोधाभास लगती है कि अगर ईश्वर सबसे पहले से जानता है कि मैं क्या करने वाला हूँ, तो फिर मेरे पास इख़्तियार कैसे है? लेकिन असलियत यह है कि "जानना" और "मजबूर करना" दो अलग बातें हैं।

ईश्वर का ज्ञान हमारे अमलों पर वैसा ही है जैसे कोई व्यक्ति किसी घटना को सीधे देख रहा हो। ईश्वर समय से बाहर है, और अतीत, वर्तमान और भविष्य सब उसके सामने एक साथ हैं। बिलकुल वैसे ही जैसे हम एक रिकॉर्ड की हुई फिल्म को पूरा देख सकते हैं। लेकिन फिल्म देखने का मतलब यह नहीं कि हमने किसी किरदार को मजबूर किया।

इंसान वास्तव में मालिक है, और उसकी मर्ज़ी भी इस दुनिया में एक असली कारण (अलल) है। जैसे आग जलाने का कारण होती है, वैसे ही इंसान की "इरादा और मर्ज़ी" भी उसके अमल की असली वजह है। इसलिए ईश्वर जानता है कि इंसान क्या करेगा क्योंकि वह अपनी मर्ज़ी से चुनाव करेगा, न कि वह इसलिए करेगा क्योंकि ईश्वर पहले से जानता है।

उदाहरण:

माल लीजिए एक कैमरा हर चीज़ रिकॉर्ड कर रहा है। अगर वीडियो में दिखाया जाए कि मैंने हाथ उठाया, तो इसका मतलब यह नहीं कि कैमरे ने मुझे मजबूर किया। वह बस हक़ीक़त को दिखा रहा है। उसी तरह ईश्वर का ज्ञान हमारे "इख़्तियार" की हक़ीक़त को दर्शाता है।

दार्शनिक पहलू:

(अ) समय की हक़ीक़त: हम समय को रैखिक (अतीत → वर्तमान → भविष्य) समझते हैं। लेकिन ईश्वर समय से परे है, उसके लिए सब समय एक साथ है। इसलिए उसका जानना "पूर्वानुमान" नहीं बल्कि "सीधा अवलोकन" है। और "देखना" कभी ज़बर्दस्ती पैदा नहीं करता।

(ब) इख़्तियार एक असली कारण है: इंसान का इरादा एक असली कारण है, जैसे आग जलाने का कारण। अगर हम इरादे को खत्म कर दें तो इंसान के अस्तित्व का मतलब ही खत्म हो जाएगा।

(स) नैतिक ज़िम्मेदारी: अगर सब कुछ ज़बर्दस्ती होता तो नैतिकता और कानून का कोई आधार न रहता, क्योंकि कोई अपने अमल का ज़िम्मेदार न होता। लेकिन असलियत यह है कि दुनिया के सभी लोग (यहाँ तक कि नास्तिक भी) अपनी ज़िंदगी में "इख़्तियार" और "ज़िम्मेदारी" को मानते हैं। यह इस बात की गवाही है कि इख़्तियार इंसान की फितरत का एक नकारा न जा सकने वाला पहलू है।

धार्मिक प्रमाण:

कुरान कहता है:
«إِنَّا هَدَیْنَاهُ السَّبِیلَ إِمَّا شَاکِراً وَإِمَّا کَفُوراً»
"हमने इंसान को रास्ता दिखाया, अब चाहे वह शुक्रगुजार बने या काफिर। (सूरा-ए-इंसान, आयत 3)यानि दो रास्ते दिए गए, चुनाव इंसान के इख़्तियार में है।

इमाम अली (अलैहिस्सलाम) ने फरमाया:
«لا جبر و لا تفویض، بل أمر بین الأمرین.»
ना ज़बर्दस्ती है, ना पूरी आज़ादी, बल्कि दोनों के बीच की एक हक़ीक़त है।
यानि ईश्वर ने ऐसा नज़रियात बनाया है जिसमें इंसान अपनी मर्ज़ी से फैसला करता है और अपने फैसले का जवाबदेह भी होता है।

नतीजा:

अल्लाह तआला का जानना किसी को मजबूर नहीं करता।

इख़्तियार क़ायनात के नज़मी हिस्सा है।

अगर इख़्तियार न माना जाए तो नैतिकता, कानून और यहाँ तक कि वैज्ञानिक खोज भी निरर्थक हो जाती है।

इसलिए ईश्वर का पहले से जानना और इंसान की आज़ादी एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं। हक़ीक़त यह है कि ईश्वर बस यह जानता है कि इंसान अपनी आज़ादी के साथ क्या करेगा।

मसाहिब:

मआरिफ़-ए-इस्लामी व कलामी मुद्दे

छात्रों के सवाल-जवाब

अदयान व मज़ाहीब विश्वविद्यालय के संरक्षक ने कहा,ईरान और मचर (थाईलैंड) की विश्वविद्यालयों और धार्मिक केंद्रों के बीच शैक्षिक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर दोनों देशों में शैक्षिक कूटनीति को बढ़ावा देंगे।

अदयान व मज़ाहीब विश्वविद्यालय के संरक्षक हज़रत हुज्जतुल इस्लाम सैयद अबुलहसन नवाब ने थाईलैंड के दौरे के दौरान जुलालोंगकोर्न विटयालय (मचर) विश्वविद्यालय में प्रोफेसरों और जिम्मेदार अधिकारियों से मुलाकात की और बातचीत की।

इस बैठक की शुरुआत में, प्राजरावत वोतयानो ने विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि के रूप में सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया और बैठक के उद्देश्यों को बताते हुए कहा,इस बैठक का उद्देश्य ईरान और थाईलैंड के शैक्षिक और धार्मिक संस्थानों के बीच संपर्क का एक पुल स्थापित करना है ताकि संवाद, अनुभवों का आदान-प्रदान और साझेदारी के विकास के रास्ते खोले जा सकें।

उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि इन वार्ताओं के परिणामों को व्यवहार में लाना आवश्यक है, खासकर शिक्षा, शोध और सांस्कृतिक क्षेत्रों में सहयोग के समझौतों के रूप में।

इसके बाद,डॉक्टर प्रा बान्डित सोटिरात, विश्वविद्यालय के उपाध्यक्ष ने ईरानी प्रतिनिधिमंडल का स्वागत करते हुए कहा, जुलालोंगकोर्न विटयालय (मचर) विश्वविद्यालय पहले भी ईरान के शैक्षिक संस्थानों के साथ सहयोग कर चुकी है और हमेशा ईरानी प्रोफेसरों और विद्वानों की मेजबानी को स्वागत योग्य माना है।

उन्होंने कहा,यह विश्वविद्यालय ईरान के शैक्षिक, सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्रों के साथ सहयोग के द्वार खोल चुकी है और पूरी तरह तैयार है कि निकट भविष्य में प्रोफेसरों और छात्रों के आदान-प्रदान, सम्मेलनों के आयोजन और संयुक्त शैक्षिक शोध जैसे परियोजनाओं पर काम करे।

डॉक्टर प्रा बान्डित सोटिरात ने आगे कहा,मचर और ईरान की विश्वविद्यालयों के बीच औपचारिक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने का मार्ग प्रशस्त करना और इन समझौतों का आयोजन धार्मिक ज्ञान के प्रचार, शैक्षिक सहयोग के विस्तार और वैश्विक शांति संस्कृति के विकास के लिए एक नई नींव प्रदान करेगा क्योंकि यह सहयोग दोनों देशों के बीच शैक्षिक, सांस्कृतिक और धार्मिक कूटनीति के क्षेत्रों में रणनीतिक संबंधों की बुनियाद है।

धर्म और संप्रदाय विश्वविद्यालय के संरक्षक सैयद अबुलहसन नवाब ने इस विश्वविद्यालय की मेजबानी के लिए आभार व्यक्त करते हुए सामाजिक और वैश्विक स्तर पर धर्म की भूमिका को पुनः स्थापित करने के महत्व पर प्रकाश डाला और कहा,ऐसे समय में जब मानव समाज नैतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय संकटों का सामना कर रहा है, विभिन्न धर्म अपनी साझा मूल्यों के माध्यम से वैश्विक शांति और न्याय की प्राप्ति के लिए एक नया रास्ता खोल सकते हैं।

उन्होंने आगे कहा,इस्लाम और बौद्ध धर्म की शिक्षाओं में कई समानताएं हैं और यह शैक्षिक, सांस्कृतिक और धार्मिक सहयोग के लिए एक बड़ी क्षमता है।

 

भारत में वली फक़ीह के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन डॉ. अब्दुलमजीद हकीम इलाही ने क़ुम अलमुकद्देसा में भारतीय छात्रों के साथ विचार-विमर्श की बैठक में कहा कि भारत की धरती बड़े-उलेमा और मुज्तहिदीन का गढ़ रही है।

भारत में वली फक़ीह के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन डॉ. अब्दुलमजीद हकीम इलाही ने क़ुम अल-मुकद्देसा में हौज़ा इल्मिया ईरान के प्रमुख आयतुल्लाह अराफ़ी और भारत में रहबर मुअज़म के पूर्व और वर्तमान प्रतिनिधियों की मौजूदगी में भारतीय छात्रों के साथ एक फिक्री बैठक हुई।

उन्होंने पैगंबर मुहम्मद स.ल.व. और उनके पुत्र इमाम जाफ़र सादिक स.ल. की विलादत पर मुबारकबाद पेश की।उन्होंने भारतीय उलेमा, उपस्थित लोगों और विभिन्न सांस्कृतिक संस्थाओं का धन्यवाद करते हुए कहा कि फ़लसफ़ा ने अस्तित्व (वजूद) की तीन प्रकारों को बताया है।

पहली किस्म माद्दी अस्तित्व है, जो सीमित और कमजोर होता है तथा एक समय में केवल एक स्थान पर रह सकता है, जैसे यह दुनिया जहाँ देखने के लिए आंख और चलने के लिए पैर चाहिए।

दूसरी किस्म उजूद मिसाली अस्तित्व है, जो पूरी तरह से मुज्रद नहीं, लेकिन माद्दी समय और स्थान से स्वतंत्र होता है। जैसे सपने में आत्मा का विभिन्न स्थानों पर होना कभी लखनऊ, कभी मुंबई, कभी नजफ़। मरने के बाद भी आत्मा इसी आदर्श दुनिया में रहती है।

तीसरी किस्म अक़्ली अस्तित्व है, जो न समय और न स्थान से बंधा होता है। यह पूर्णता का प्रतीक है और किसी क्रिया के लिए किसी उपकरण या माध्यम की आवश्यकता नहीं होती। इसी तरह का अस्तित्व सैय्यदुश्शोहदा जैसे अवलिया का होता है।

डॉ. हकीम इलाही ने कहा कि यदि इंसान सभी सीमाओं को तोड़कर अपने अस्तित्व को ईश्वर के अस्तित्व से जोड़ दे, तो वह भी विकास के ज़रिए अक़्ली और व्यापक अस्तित्व तक पहुँच सकता है, जो समय और स्थान से परे है।

उन्होंने हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मेंहदी महदवी पूर की सेवाओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने पिछले 15 वर्षों में डेढ़ सौ वर्षों के बराबर उल्लेखनीय कार्य किए हैं और आशा जताई कि हम सब भी उनकी राह पर चलने की क्षमता पाएंगे।

उन्होंने भारत के इल्मी गौरव का उल्लेख करते हुए कहा कि जब साहिब जवाहर ने अपनी मशहूर किताब "जवाहर अल-कलाम" की रचना की, तो इसकी तश्रीह और प्रकाशन की अनुमति के लिए भारत भेजा गया था। भारत में ऐसे महान मुज्तहिदीन और उलेमा मौजूद थे जिनकी कब्रें आज भी "कब्रिस्तान ग़ुफ़रान मआब" में मौजूद हैं। लगभग 50 मुज्तहिदीन थे जिनका मुस्लिम जगत में गहरा इल्मी प्रभाव था।

डॉ. हकीम इलाही ने कहा कि भारत का धार्मिक और इल्मी इतिहास अत्यंत शानदार रहा है। बड़े बड़े हौज़ात इल्मिया और उनकी इमारतों के नक़्शे-ओ-निगार देखकर उसकी महानता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। यहाँ तक कि कुछ विषयों पर, जैसे यह बहस कि क्या शब-ए-आशूरा को इमाम हुसैनؑ के खीमे में पानी था या नहीं, भारत में ढाई सौ से अधिक किताबें लिखी गईं।

 

इज़रायल में बंधकों की रिहाई के लिए सक्रिय संगठन ने प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को ग़ज़्ज़ा युद्ध के समाप्त होने में सबसे बड़ी बाधा बताया है। यह प्रतिक्रिया दोहा (कतर) में हुए एक इज़रायली हवाई हमले के बाद आई है، जिसे बंधकों के परिजनों ने संभावित समझौते को नाकाम बनाने की कोशिश करार दिया। 

इज़रायल में बंधकों की रिहाई के लिए सक्रिय संगठन ने प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को ग़ज़्ज़ा युद्ध के समाप्त होने में सबसे बड़ी बाधा बताया है। यह प्रतिक्रिया दोहा (कतर) में हुए एक इज़रायली हवाई हमले के बाद आई है، जिसे बंधकों के परिजनों ने संभावित समझौते को नाकाम बनाने की कोशिश करार दिया। 

प्राप्त जानकारी के अनुसार "बंधक और लापता परिवार संगठन" ने अपने बयान में कहा कि जैसे ही कोई शांति समझौता करीब आता है, नेतन्याहू उसे विफल कर देते हैं। संगठन का मानना है कि नेतन्याहू जानबूझकर युद्ध को खींच रहे हैं ताकि सत्ता में बने रह सकें।

वहीं, नेतन्याहू ने कहा है कि ग़ज़्ज़ा युद्ध का अंत तभी संभव है जब कतर में रह रहे हमास नेताओं को खत्म कर दिया जाए। उन्होंने हमास पर युद्धविराम समझौतों को तोड़ने का आरोप लगाया और कहा कि यही नेता बंधकों की रिहाई में बाधा हैं। परंतु, बंधकों के परिवारों ने इस बयान को नेतन्याहू की विफलता छुपाने की कोशिश बताया और कहा कि अब समय आ गया है कि इन बहानों को खत्म किया जाए और युद्ध को समाप्त कर बंधकों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित की जाए।

 

गाज़ा पट्टी में फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की है कि इजरायली सेना के हमलों में शहीद होने वालों की संख्या बढ़कर 64,905 हो गई है।

गाज़ा पट्टी में फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक नए बयान में पिछले साल 7 अक्टूबर से अब तक के हमलों में हताहतों के नवीनतम आंकड़े जारी किए हैं।

फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, 7 अक्टूबर, 2023 से लेकर इस समय तक इजरायली सेना के हमलों के परिणामस्वरूप 64,905 लोग शहीद हो चुके हैं।

साथ ही, इस फिलिस्तीनी चिकित्सा प्राधिकरण ने यह भी कहा कि इस पट्टी में युद्ध शुरू होने के बाद से इजरायली हमलों में घायल होने वालों की कुल संख्या 164,926 हो गई है।

मंत्रालय ने यह भी घोषणा की कि पिछले 24 घंटों में 34 शहीदों के शव अस्पताल लाए गए हैं। इस अवधि में 316 अन्य लोग घायल हुए हैं।

इसके अलावा, 18 मार्च, 2025 से गाजा पर नए सिरे से शुरू किए गए हमलों में भी 12,354 लोग शहीद और 52,885 लोग घायल हुए हैं।अभी भी हज़ारों लोग गाजा पट्टी में लापता हैं और मलबे के नीचे दबे हुए हैं।

सहायता वितरण केंद्रों पर पिछले 24 घंटों में 3 लोग शहीद और 47 अन्य घायल हुए हैं, जिससे इन केंद्रों पर शहीद होने वाले फिलिस्तीनियों की संख्या बढ़कर 2,497 और घायलों की संख्या 18,182 हो गई है।