
رضوی
बेन गुरियन एयरपोर्ट पर यमन का हमला, अंतरराष्ट्रीय उड़ानें रद्द
यमन की सेना द्वारा कब्जे वाले ज़ायोनी शासन के खिलाफ़ सफल ऑपरेशन के बाद कब्जे वाले फ़िलिस्तीन के लिए अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के रद्द होने की लहर बढ़ गई है।
कब्जे वाले ज़ायोनी शासन के खिलाफ़ यमन की सेना द्वारा सफल ऑपरेशन के बाद कब्जे वाले फ़िलिस्तीन के लिए अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के रद्द होने की लहर बढ़ गई है।
कब्जे वाले इज़राइली 12 टीवी चैनल ने बताया है कि जर्मन एयरलाइन लुफ्थांसा आज तेल अवीव के लिए अपनी उड़ानें रद्द कर देगी।
हिब्रू मीडिया ने भी माना कि तेल अवीव के लिए उड़ानों का रद्द होना जारी है।
रिपोर्ट के अनुसार, स्विटज़रलैंड और ऑस्ट्रिया ने भी कब्जे वाले क्षेत्रों के लिए अपनी उड़ानें रद्द कर दी हैं।
इससे पहले, यह बताया गया था कि एक भारतीय विमान ने बेन गुरियन एयरपोर्ट पर उतरने से पहले अपना मार्ग बदल दिया था।
ध्यान रहे कि यह स्थिति यमन द्वारा बेन गुरियन एयरपोर्ट पर सफल मिसाइल हमले के बाद सामने आई है।
पुतिन: यूक्रेन से सुलह सिर्फ़ समय पर निर्भर है
एक इन्टरव्यू में रूस के राष्ट्रपति ने यूक्रेन से सुलह को निश्चित क़रार दिया और कहा: यह सिर्फ़ समय की बात है।
रूस के राष्ट्रपति विलादीमीर पुतिन ने शनिवार को रूसी पत्रकार पावेल ज़ारुबिन से एक इन्टरव्यू में कहा कि रूस को यूक्रेन में अपने सैन्य अभियान के दौरान परमाणु हथियारों का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं थी।
उन्होंने कहा कि रूस को कीव के साथ युद्ध के दौरान परमाणु हथियारों का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं थी और हम आशा करते हैं कि भविष्य में ऐसी आवश्यकता पैदा नहीं होगी।
पुतिन ने इस बात पर जोर दिया कि परमाणु हथियारों के बिना भी रूस के पास विशेष अभियान पूरा करने के लिए पर्याप्त ताक़त और संसाधन हैं।
रूसी राष्ट्रपति ने कहा कि यूक्रेन में सैन्य अभियान के दौरान रूस शांत है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया: मास्को को भड़काने का प्रयास, पूरी तरह से ग़लत साबित हुआ।
पुतिन ने कहा कि यूक्रेन के साथ रूस का मेल-मिलाप और समझौता "अपरिहार्य" है और यह सिर्फ़ पर निर्भर है।
ईरानी पहलवानों ने 9 पदक प्राप्त किए
ईरान की चुनी हुई फ्री स्टाइल कुश्ती की टीम के पहलवानों ने तुर्किये में होने वाले विश्व कप मुक़ाबले में 9 नौ पदक जीता।
फ्री स्टाइल कुश्ती का पहला मुक़ाबला तुर्किये के अंतालिया शहर में आयोजित हुआ।
पहले दिन की समाप्ति पर फ्री स्टाइल कुश्ती में ईरानी टीम के चुने हुए नौजवान पहलवानों ने तीन स्वर्ण पदक, दो रजत पदक और चार कांस्य पदक प्राप्त किया।
फ्री स्टाइल कुश्ती का दूसरा दिन तुर्किये में शनिवार को आयोजित होगा।
ईरान ने न्यायपूर्ण समझौते पर बल दिया
अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने बताया है कि ग़ज़ा पट्टी के ख़िलाफ़ ज़ायोनी सरकार के युद्ध के आरंभ से अब तक इस क्षेत्र में 211 पत्रकार मारे जा चुके हैं।
अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में राष्ट्रसंघ मानवाधिकार कार्यालय ने शुक्रवार और समाचार पत्रों की स्वतंत्रता के अंतरराष्ट्रीय दिवस के अवसर पर एक बयान जारी करके एलान किया है कि सात अक्तूबर 2023 से अब तक कम से कम 211 पत्रकार इस्राईली हमलों में ग़ज़ा में मारे गये हैं जिनमें 28 पत्रकार महिला भी शामिल हैं। यूनिस्को की घोषणा के अनुसार 47 पत्रकारों को डियूटी अंजाम देने के दौरान मारा गया। इस रिपोर्ट के अनुसार 49 पत्रकार इस समय ज़ायोनी सरकार की जेलों में बंद हैं।
इराक़चीः हम एक न्यायपूर्ण समझौता करने का पक्का इरादा रखते हैं
ईरान के विदेशमंत्री सय्यद अब्बास इराक़ची ने सोशल साइट X पर अभी हाल ही में लिखा है कि हमने ओमानी और अमेरिकी पक्षों के साथ वार्ता के चौथे चरण को तकनीकी कारणों से विलंबित करने का फ़ैसला किया है।
उन्होंने आगे लिखा कि हम हर समय से एक न्यायपूर्ण व संतुलित समझौते को हासिल करने का पक्का फ़ैसला किया है।
उन्होंने लिखा कि हम ऐसा समझौता चाहते हैं जो प्रतिबंधों की समाप्ति की गैरेन्टी दे और इस संबंध में विश्वास बहाली करे कि ईरान का शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम बाक़ी रहेगा। साथ ही इस बात की भी गैरेन्टी दी जाये कि ईरान के अधिकारों का पूरी तरह से ध्यान रखा जायेगा।
अमेरिकी सरकार पर जापानियों का विश्वास व भरोसा कम हो गया है
जापानी समाचार पत्र आसाही के हालिया सर्वे परिणाम इस बात के सूचक हैं कि डोनाल्ड ट्रम्प के शासन काल में अमेरिकी सरकार के प्रति जापानियों के भरोसे में बहुत कमी हो गयी है। इस सर्वे परिणामों के आधार पर अमेरिकी सरकार के प्रति जापानियों के अविश्वास में वृद्धि हो रही है इस प्रकार से कि 77 प्रतिशत से अधिक जापानी नागरिकों का मानना है कि सैनिक संकट आने की स्थिति में अमेरिका उनकी मदद नहीं करेगा।
ईरान का परमाणु ख़तरा,ज़ायोनी कल्पना है
जॉर्डन के एक विश्लेषक ने कहा है कि इस्राईल ने ईरान के परमाणु खतरे के बारे में जो दावा किया है उसका लक्ष्य इस शासन द्वारा अरबों के ख़िलाफ़ किये जा रहे अपराधों से आमजनमत का ध्यान हटाना है।
जॉर्डन के एक विश्लेषक "इब्राहीम क़बीलात" ने जॉर्डन के समाचार पत्र निसान में एक लेख में लिखा कि इस्राइल, ईरान जैसे अपने काल्पनिक दुश्मनों के माध्यम से क्षेत्रीय शक्तियों को निष्क्रिय करने की कोशिश कर रहा है ताकि वह अपनी दादागीरी व वर्चस्व बना सके।
क़बीलात ने इस्राइली सरकार के वित्त मंत्री "बेज़ालेल स्मोट्रिच" की उन बयानों की ओर संकेत किया जिसमें उन्होंने कहा था कि ग़ज़ा युद्ध की समाप्ति के लिए सीरिया और अरबों का विभाजन ज़रूरी है।
इस राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि इस्राईल सीरिया में दुरूज़ियों के समर्थन" के बहाने इस देश को रणक्षेत्र बनाए रखना चाहता है ताकि सीरिया में एकता को रोक सके। ग़ाज़ा में भी, फिलिस्तीनी शरणार्थियों का मुद्दा न केवल हमास से प्रतिशोध है, बल्कि प्रतिरोध को समाप्त करने का बहाना है।
क़बीलात ने अमेरिका की भूमिका को इन जघन्य अपराधों के साथ सहयोग के रूप में बताया और कहा कि इस्राइल आर्थिक संकट पैदा करके और अंदरूनी विवादों को बढ़ाकर अरबों को कमज़ोर कर रहा है।
इस जॉर्डन के विश्लेषक ने बल देकर कहा कि अरबों की एकता एक ऐसा हथियार है जिससे इस्राईल डरता है और इस्राईल से मुक़ाबला उसके षडयंत्रों की जानकारी और अरबों की एकता से आरंभ होता है न कि आंतरिक लड़ाई व विवाद से।
ईरानः फ़िलिस्तीन के समर्थन में यमनियों की कार्यवाहियां
इस्लामी गणराज्य ईरान के विदेश मंत्रालय ने यमन की जनता के आत्मरक्षा में साहसिक कार्यों और फिलिस्तीनी लोगों के समर्थन को ईरान से जोड़ने के आधारहीन दावों को इस शक्तिशाली और पीड़ित राष्ट्र का अपमान बताया है।
इस्लामी गणराज्य ईरान के विदेश मंत्रालय ने रविवार की शाम को एक बयान जारी करके यमन के संबंध में तेहरान पर लगाए गए आरोपों की निंदा की।
इस बयान में कहा गया है कि निः संदेह यमनी लोगों द्वारा फिलिस्तीनी लोगों का समर्थन करने का कदम एक स्वतंत्र निर्णय और फिलिस्तीनी भाइयों और बहनों के प्रति उनकी मानवीय और इस्लामी एकजुटता की भावना का परिणाम है और इसे ईरान से जोड़ना गुमराह करने वाला है और इसका लक्ष्य फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी सरकार के अपराधों से ध्यान हटाना, उस पर पर्दा डालना, अपनी नाकामियों को छुपाना और पश्चिमी एशिया के क्षेत्र को और अधिक अस्थिर व अशांत बनाने का बहाने देना है।
ईरान के विदेश मंत्रालय ने इस बयान में अपने सिद्धांतिक रुख पर ज़ोर देते हुए अमेरिका के यमन में सैन्य हमलों को संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के बुनियादी नियमों का घोर उल्लंघन करार दिया और इसकी भर्त्सना की।
इसी प्रकार विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता के बयान में देशों की क्षेत्रीय अखंडता और राष्ट्रीय संप्रभुता का सम्मान करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। बयान में याद दिलाया गया है कि यह अमेरिकी सेना है जो जनसंहार करने वाले इस्राईल के समर्थन में यमन की जनता के खिलाफ युद्ध में शामिल हुई है और इस देश के विभिन्न शहरों में बुनियादी ढांचे और असैन्य लक्ष्यों पर हमले करके युद्ध अपराध कर रही है।
ईरान के विदेश मंत्रालय ने इस बयान में पश्चिम एशिया और लाल सागर के क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता पर इन हमलों के लगातार प्रभावों और ख़तरनाक परिणामों की याद दिलाते हुए अतिग्रहित फ़िलिस्तीन में नरसंहार और हत्या को समाप्त करने की मांग की है जो पूरे क्षेत्र में असुरक्षा के निरंतर बने रहने का मुख्य कारण है।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेशमंत्रालय के बयान में आया है कि ईरानी सपूत व जवान हर प्रकार की दुष्टता और ईरान की राष्ट्रीय सुरक्षा और हितों के खिलाफ हर प्रकार की अवैध कार्रवाई का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार हैं। इसी प्रकार बयान में अमेरिका और ज़ायोनी शासन की हालिया धमकियों की निंदा की गयी है और कहा गया है कि इसके परिणामों और प्रभावों की ज़िम्मेदारी अमेरिकी सरकार और ज़ायोनी सरकार पर है।
शियों के अहले सुन्नत से सवाल 3
17-आप कहते हैं कि पैगम्बर ने कहा कि “मेरे असहाब सितारों के समान हैं तुम जिसका भी अनुसरन करोगे हिदायत प्राप्त कर लोगे।” परन्तु सहीह बुखारी किताब फ़ज़ाइल असहाबुन नबी, बाब मनाक़िबे उस्मान बिन उफ़्फ़ान 75/5 मे लिखा है कि वलीद पुत्र उक़बा नामक सहाबी ने शराब पी तथा आदरनीय उस्मान ने उनको अस्सी कोड़े मारने की अज्ञा दी। अब आप बताऐं कि अगर कोई वलीद पुत्र उक़बा नामक सहाबी का अनुसरन करते हुए शराब पिये तो क्या वह भी हिदात प्राप्त किये हुए है?
18-खालिद पुत्र वलीद नामक सहाबी ने मालिक पुत्र नुवैरा नामक सहाबी को कत्ल किया। तथा उसी रात्री उनकी पत्नी के साथ बलात्कार किया।(अल कामिल फ़ित्तारीख नामक किताब मे सन् 11 हिजरी क़मरी की घटनाओं का उल्लेख करते हुए हदीसे सक़ीफ़ा व खिलाफ़ते अबु बकर359/2 के अन्तर्गत उपरोक्त कथन का उल्लेख किया गया है।) अब आप बताऐं कि अगर कोई व्यक्ति खालिद पुत्र वलीद नामक सहाबी का अनुसरन करते हुए किसी की हत्या करके उसकी पत्नी के साथ बलात्कार करे तो क्या वह भी हिदायत प्राप्त किये हुए है?
19-कुऑन मे इस बात का वर्णन मिलता है कि असहाब का एक ग्रुप नमाज़े जुमा मे पैगम्बर को अकेला छोड़ कर क्रय विक्रय तथा मौज मस्ती मे लग गया। (सूरए जुमा की 11वी आयत के अन्तर्गत देखें) अब आप बताऐं कि अगर मुसलमान असहाब के इस ग्रुप का अनुसरन करते हुए नमाज़ को छोड़ कर क्रय विक्र व मौज मस्ती के लिए निकल जाऐं तो क्या वह हिदात प्राप्त किये हुए हैं?
20-असहाब का एक ग्रुप ओहद व हुनैन नामक युद्धो मे रण भूमी से भाग गया और पैगम्बर के पुकारने पर भी उन्होने कोई ध्यान नही दिया।(सुराए आले इमरान आयत न.153 के अन्तर्गत देखें) अब आप बताऐं कि अगर मुसलमान असहाब के इस ग्रुप का अनुसरन करते हुए युद्ध भूमी से भागें तो क्या वह हिदायत प्राप्त किये हुए हैं?
21-सआद पुत्र उबादा नामक सहाबी ने आदरनीय अबु बकर की बैअत नही की तथा उनकी खिलाफ़त को स्वीकार नही किया।(अल इसाबत फ़ी तमीज़िस सहाबत नामक किताब मे अस्क़लानी नामक सुन्नी विद्वान ने सआद नामक सहाबी के हालात का वर्णन करते हुए उपरोक्त कथन का उलेलेख किया है। तथा अल कामिल फ़ित्तारीख नामक किताब मे सन् 11 हिजरी क़मरी की घटनाओं का वर्णन करते हुए हदीसे सक़ीफ़ा व खिलाफ़ते अबु बकर के अन्तर्गत उपरोक्त कथन का उल्लेख मिलता है।) अब आप बताऐं कि अगर सभी सहाबी सितारों के समान हैं और उनके अनुसरन मे हिदायत की प्राप्ति है तो सआद पुत्र उबादा नामक सहाबी का अनुसरन करने वालो को हिदायत प्राप्त किये हुए व्यक्तियों के रूप मे क्यो स्वीकार नही करते हो?
22-सहीह बुखारी मे किताबुस्सुलहे बाबे मा जाआ फ़िल इसलाह बैनन नास हदीस न. 1,2व 4 के अन्तर्गत उल्लेखित है कि एक बार कुछ असहाब मे आपस मे झगड़ा हुआ और उनमे मे लाठी डंडे,मुक्के लात व जूते चप्पल चले।अब आप बताऐं कि अगर आज मुसलमान उन असहाब का अनुसरन करते हुए आपस मे इसी प्रकार लड़े तो क्या वह हिदायत प्राप्त किये हुए कहलाऐंगे?
23-इब्ने असीर नामक सुन्नी विद्वान अपनी किताब असदुल ग़ाब्बा फ़ी मारेफ़तिस सहाबा नामक किताब मे लिखा है कि आदरनीय उमर ने हातिब बिन अबी बलताह नामक बद्री सहाबी को अप शब्द कहे तथा उनको मुनाफ़िक़ कह कर सम्बोधित किया। अतः असहाब को बुरा भला कहना आदरनीय उमर का अनुसरन है। और वह भी एक सहाबी थे। और आपकी विचार धारा के अनुसार सहाबी का अनुसरन हिदायत की प्राप्ति का साधन है।
24-तारीखे तबरी नामक किताब मे सन् 36 हिजरी क़मरी की घटनाओं का वर्णन करते हुए उल्लेख किया गया है कि आदरनीय आयशा ने (जो कि पैगम्बर की पत्नि व सहाबिया थी) तृतीय खलीफ़ा आदरनीय उस्मान को नासल कह कर सम्बोधित किया और इस प्रकार उनकी मान हानी की।बस इस प्रकार आदरनीय आयशा का अनुसरन व आदरनीय उस्मान की मान हानी हिदायत प्राप्ति का लक्षण है।
25-अल कामिल फ़ित्ताऱीख नामक किताब मे सन् 38 हिजरी क़मरी की घटनाओं के अन्तर्गत उल्लेखित है। कि जब माविया की अज्ञा से आदरनीय आयशा के भाई मुहम्मद पुत्र अबु बकर की हत्या कर दी गई, तो इस के बाद से आदरनीय आयशा ने प्रत्येक नमाज़ के बाद माविया पर लाअनत की।बस माविया पर लाअनत करना आदरनीय आयशा का अनुसरन व हिदायत प्राप्ति का साधन भी।
26-सहीह मुस्लिम मे किताबुल बर वस्सिलात वल आदाब, बाबे मन लआनाहुन नबी अव सबाहु अव दआ अलैहे, प्रथम हदीस के अन्तर्गत उल्लेखित है कि आदरनीय आयशा ने सूचित किया कि पैगम्बर(स0) ने दो सहाबियों पर नफ़रीन की। क्या यह सिद्ध होने के बाद भी कि पैगम्बर(स0) बुरे सहाबीयों पर स्वंय नफ़रीन करते थे। आप बुरे सहाबीयो पर लाअनत करने को (जो कि नफ़रीन के अन्तर्गत आती है) गुनाहे कबीरा व काफ़िर हो जाने का कारण मानते हो?
शियों के अहले सुन्नत से सवाल 2
9-आप कहते हैं कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम खलीफ़ाओं को स्वीकार किया करते थे।परन्तु आदरनीय उमर कहते हैं कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम हमको झूटा,पापी व धोखे बाज़ मानते थे।( सहीह मुस्लिम किताबुल जिहाद वस्सैर बाबुल फ़ै एक लम्बी हदीस के अन्तर्गत) अब आप बताऐं कि आदरनीय उमर सत्य कहते हैं या आप?
10-दूसरे खलीफ़ा ने अपने देहान्त से पहले छः व्यक्तियों की एक कमैटी बना दी तथा कहा कि इनमे से जिसको चाहना खलीफ़ा बना लेना यह छः के छः व्यक्ति खिलाफ़त की योग्यता रखते हैँ। बाद मे कहा कि अगर इन मे से कोई इस का विरोध करे तो उसकी हत्या कर देना। अब आप बताऐं कि खिलाफ़त पद की योग्यता रखने वाले व्यक्ति की हत्या किस प्रकार जायज़ हो सकती है?
11-पैगम्बर(स0) का सहाबी होना व्यक्ति की अपनी सामर्थ्य मे है या नही? अगर अपनी सामर्थ्य मे नही है तो सहाबा के कार्यो को इतनी महत्ता क्यो दी जाती है
12-केवल पैगम्बर (स0) को देखने मे ऐसा कौनसा गुण है कि जिसने एक बार देख लिय़ा वह आदिल, सितारे के समान तथा हिदायत का साधन बन गया?
13-आप कहते हैं कि सभी सहाबी आदिल थे। जबकि बुखारी लिखते हैं कि वलीद पुत्र उक़बाह सहाबी ने शराब पी।(सहीह बुखारी किताब फ़ज़ाइले असहाबुन नबी(स0) बाब मनाक़िबे उस्मान बिन उफ़्फ़ान75/5 प्रकाशित दारूल क़लम बैरूत) अब आप बताऐं कि आप झूट बोलतें हैं या बुखारी ने झूट बोला है? या शराब पीने से अदालत को कोई नुक़सान नही पहुँचता?
14-आप कहते हैं कि अल्लाह ने सहाबा के गुनाह जैसे जंगे(युद्ध) ओहद से फ़रार(भागना) आदि को क्षमा कर दिया है। अगर अल्लाह ने एक शराब पीने वाले, झूट बोलने वाले,व हत्या करने वाले के गुनाह को क्षमा कर दिया तो क्या इसका अर्थ यह है कि उसने कोई गुनाह नही किया व वह सदैव आदिल रहा?और अगर यह सत्य नही है तो अगर यह मान भी लिय़ा जाये कि कुछ सहाबा के गुनाहों को अल्लाह ने क्षमा कर दिया है तो गुनाहों को क्षमा कर देना इस बात को कहाँ सिद्ध करता है कि वह आदिल और उनके द्वारा वर्णित समस्त हदीसें विश्वसनीय है?
15-आप कहते हैं कि समस्त सहाबा(वह मुसलमान जिस ने पैगम्बर को देखा) सत्यवादी थे। अतः उन्होने पैगम्बरों के जिन कथनो का वर्णन किया है उनको निःसंकोच स्वीकार कर लेना चाहिए।
जबकि कुऑन कहता है कि इन मुसलमानो(असहाब)ने पैगम्बर की पत्नि पर अवैध सम्बन्ध रखने का इलज़ाम लगाया। सूरए नूर आयत 11
क्या ऐसे मुसलमान(असहाब) भी सत्यवादी थे ?
16-कुऑन कहता है कि अगर कोई फ़ासिक़ व्यक्ति तुम्हारे पास कोई सूचना ले कर आये तो उस सूचना के सम्बन्ध मे छान बीन करो। सूरए हुजरात आयत न.6, आपकी तफ़सीर रूहुल मआनी मे इस आयत के सम्बन्ध मे लिखा है कि क्योंकि वलीद पुत्र उक़बा नामक सहाबी ने पैगम्बर से झूट बोला था इस सम्बन्ध मे यह आयत नाज़िल(उतरी) हुई। अब आप बताऐं कि वलीद पुत्र उक़बा नामक सहाबी को झूटा स्वीकार करते हो या अपने मुफ़स्सेरीन को झूटा मानते हो?
17-आप कहते हैं कि पैगम्बर ने कहा कि “मेरे असहाब सितारों के समान हैं तुम जिसका भी अनुसरन करोगे हिदायत प्राप्त कर लोगे।” परन्तु सहीह बुखारी किताब फ़ज़ाइल असहाबुन नबी, बाब मनाक़िबे उस्मान बिन उफ़्फ़ान 75/5 मे लिखा है कि वलीद पुत्र उक़बा नामक सहाबी ने शराब पी तथा आदरनीय उस्मान ने उनको अस्सी कोड़े मारने की अज्ञा दी। अब आप बताऐं कि अगर कोई वलीद पुत्र उक़बा नामक सहाबी का अनुसरन करते हुए शराब पिये तो क्या वह भी हिदात प्राप्त किये हुए है?
18-खालिद पुत्र वलीद नामक सहाबी ने मालिक पुत्र नुवैरा नामक सहाबी को कत्ल किया। तथा उसी रात्री उनकी पत्नी के साथ बलात्कार किया।(अल कामिल फ़ित्तारीख नामक किताब मे सन् 11 हिजरी क़मरी की घटनाओं का उल्लेख करते हुए हदीसे सक़ीफ़ा व खिलाफ़ते अबु बकर359/2 के अन्तर्गत उपरोक्त कथन का उल्लेख किया गया है।) अब आप बताऐं कि अगर कोई व्यक्ति खालिद पुत्र वलीद नामक सहाबी का अनुसरन करते हुए किसी की हत्या करके उसकी पत्नी के साथ बलात्कार करे तो क्या वह भी हिदायत प्राप्त किये हुए है?
जारी है.......
शियों के अहले सुन्नत से सवाल (1)
1-खलीफ़ा की नियुक्ति अच्छा कार्य है या बुरा? अगर अच्छा कार्य है तो फ़िर क्यों कहा जाता है कि पैगम्बर ने किसी को खलीफ़ा नियुक्त नही किया। और अगर यह कार्य बुरा है तो फ़िर आदरनीय अबुबकर व उमर ने यह कार्य क्यों किया?
2-जब हज़रत पैगम्बर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेही वसल्लम ने बीमारी की अवस्था मे अपने जीवन के अन्तिम चरण मे कहा कि कलम व काग़ज़ दो ताकि मैं तुम्हारे लिए एक ऐसी बात लिख दूँ कि तुम मेरे बाद भटक न सको। तो आदरनीय उमर ने कहा कि पैगम्बर पर दर्द की अधिकता है जिस कारण ऐसा कह रहे हैं। हमारे लिए अल्लाह की किताब काफ़ी है।( सहीह बुखारी किताबुल इल्म) परन्तु जब आदरनीय अबुबकर ने अपने जीवन के अन्तिम चरण मे वसीयत लिखना चाही तो आदरनीय उमर ने क्यों नही कहा कि यह दर्द की अधिकता के कारण ऐसा कह रहे हैं हमारे लिए अल्लाह की किताब काफ़ी है?
3-मुत्तक़ी हिन्दी ने आदरनीय उमर की इस हदीस का उल्लेख किया है कि “जब भी किसी पैगम्बर के बाद उनकी उम्मत मे इखतेलाफ़ हुआ तो बातिल समुदाय को हक़ समुदाय पर विजय प्राप्त हुई।”(कनज़ुल उम्माल जिल्द 1 पेज 283 हदीस 929)
4-अगर सक़ीफ़ा मे खलीफ़ा का चुनाव व बैअत लेने का तरीक़ा सही था तो आदरनीय उमर ने यह क्यों कहा कि वह बिना विचार विमर्श के एक आकस्मिक कार्य था?( सहीह बुखारी किताबुल मुहारेबीन बाबे रजमुल हलबी मिनज़्ज़िना585/8 एक लम्बी हदीस के अन्तर्गत)
5-अगर परामर्श के बिना किसी की बैअत करना जाइज़ है तो आदरनीय उमर ने क़त्ल की धमकी देकर यह क्यों कहा कि “ अगर इसके बाद कोई यह कार्य करेगा तो बैअत करने वालो व बैअत लेने वालो की हत्या करदी जायेगी। ” व अगर परामर्श के बिना किसी की बैअत करना हराम है तो इस को सक़ीफ़ा मे क्यो लागू नही किया?( सहीह बुखारी किताबुल मुहारेबीन बाबे रजमुल हलबी मिनज़्ज़िना585/8 एक लम्बी हदीस के अन्तर्गत)
6-अगर हज़रत पैगम्बरे अकरम (स0) खिलाफ़त पद पर आदरनीय अबुबकर या उमर को नियुक्त करना चाहते थे तो अपने जीवन के अन्तिम समय मे उनको उसामा के नेतृत्व मे जाने वाली सेना मे सम्मिलित कर युद्ध भूमी मे क्यों भेज रहे थे?
7-आप कहते हैं कुऑने करीम मे अल्लाह ने वचन दिया है कि वह इमानदार व नेक कार्य करने वाले व्यक्तियों को पृथ्वी पर खलीफ़ा बनाएगा।अतः आदरनीय अबुबकर व उमर कुऑने करीम की इस आयत के मिस्दाक़ हैं।
अगर आदरनीय अबु बकर हज़रत पैगम्बर(स0) की अज्ञा का पालन करते हुए उसामा की सेना मे सम्मिलित होकर युद्ध भूमी मे चले जाते तो निश्चित रूप से उनके स्थान पर कोई दूसरा व्यक्ति खलीफ़ा बनता।परन्तु उन्होने हज़रत पैगम्बर(स0) की अज्ञा की अवहेलना की और युद्ध भूमी मे न जाकर शहर के बाहर रुके रहे। और इस प्रकार पैगम्बर के स्वर्गवास के बाद खिलाफ़त पद प्राप्त किया। अब आप बताऐं कि क्या अल्लाह अपने नबी की अवज्ञा कराके अपने वचन को पूरा करता है?
8-बुद्धि कहती है कि सेना पति पद के लिए बलवान, वीर व कुशल नेतृत्व वाले व्यकित का चुनाव किया जाए। अब प्रश्न यह है कि पैगम्बर(स0) ने सेना पति पद का उत्तरदायित्व उसामा को क्यो सौपाँ? व आदरनीय अबु बकर व उमर को इस पद के लिए क्योँ अयोग्य घोषित किया? बस जो व्यक्ति सेना पति पद की योग्यता न रखता हो वह खिलाफ़त पद पर किस प्रकार आसीन हो सकता है। जबकि खिलाफ़त सेना पति से भी उच्च पद है?
क़ुरआन मे तहरीफ नही हुई
क़ुरआन की फेरबदल से सुरक्षा
पैगम्बरों और र्इश्वरीय दूतो के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए यह आवश्यक था कि र्इश्वरीय संदेश सही अवस्था और बिना किसी फेर-बदल के लोगों तक पहुँचाऐ ताकि लोग अपना लोक-परलोक बनाने के लिए उससे लाभ उठा सकें।
इस आधार पर, लोगों तक पहुँचने से पूर्व तक क़ुरआने करीम का हर प्रकार के परिर्वतन से सुरक्षित रहना अन्य सभी र्इश्वरीय पुस्तकों की भाँति चर्चा का विषय नही है किंतु जैसा कि हमे मालूम है अन्य र्इश्वरीय किताबें लोगों के हाथों में आने के बाद थोड़ी बहुत बदल दी गयीं या कुछ दिनों बाद उन्हे पुर्ण रूप से भूला दिया गया जैसा कि हज़रत नूह और हजरत इब्राहीम (अ.स) की किताबों का कोर्इ पता नही हैं और हज़रत मूसा व हज़रत र्इसा (अ.स) की किताबो के मूल रूप को बदल दिया गया हैं।
इस बात के दृष्टिगत, यह प्रश्न उठता हैं कि हमें यह कैसे ज्ञात है कि अंतिम र्इश्वरीय संदेश के नाम पर जो किताब हमारे हाथो में है यह वही क़ुरआन है जिसे पैगम्बरे इस्लाम (स.अ.व.व) पर उतारा गया था और आज तक उसमे किसी भी प्रकार का फेर-बदल नही किया गया और न ही उसमे कोर्इ चीज़ बढार्इ या घटार्इ गई।
जबकि जिन लोगों को इस्लामी इतिहास का थोड़ा भी ज्ञान होगा और क़ुरआन की सुरक्षा पर पैगम्बर इस्लाम और उन के उत्तराधिकारयों द्वारा दिए जाने वाले विशेष ध्यान के बारे मे पता होगा तथा मुसलमानो के मध्य क़ुरआन की सुरक्षा के बारे में पाई जाने वाली संवेदनशीलता की जानकारी होगी तो वह इस किताब में किसी प्रकार के परिवर्तन की संभावना का इन्कार बड़ी सरलता से कर देगा। क्योकि इतिहासिक तथ्यो के अनुसार केवल एक ही युध्द में क़ुरआन को पूरी तरह से याद कर लेने वाले सत्तर लोग शहीद हुए थे। इससे क़ुरआन के स्मंरण की परपंरा का पता चलता है जो निश्चित रूप से क़ुरआन की सुरक्षा में अत्याधिक प्रभावी है। इस प्रकार गत चौदह सौ वर्षो के दौरान क़ुरआन की सुरक्षा में किए गये उपाय, उस की आयतो और शब्दो की गिनती आदि जैसे काम भी इस संवेदनशीलता के सूचक हैं। किंतु इस प्रकार के विश्वस्त ऐतिहासिक प्रमाणो से हटकर भी बौध्दिक व ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित एक तर्क द्रवारा क़ुरआन की सुरक्षा को सिध्द किया जा सकता है अर्थात सबसे पहले क़ुरआन में किसी विषय की वृध्दि को बौध्दिक तर्क द्रवारा सिध्द किया जा सकता है और जब यह सिध्द हो जाए कि वर्तमान क़ुरआन ईश्वर की ओर से भेजा गया है तो उसकी आयतो को प्रमाण बना कर सिध्द किया जा सकता है कि उसमे से कोई वस्तु कम भी नही हुई है।
इस प्रकार से हम क़ुरआन मे फेर-बदल न होने को दो अलग- अलग भागो मे सिध्द करेगें।
1.क़ुरआन में कुछ बढाया नही गया हैं
इस विषय पर मुसलमानों के सभी गुट सहमत हैं बल्कि विश्व के सभी जानकार लोगों ने भी इसकी पुष्टि की है और कोई भी ऐसी घटना नही घटी हैं जिस के अन्तर्गत क़ुरआन में जबरदस्ती कुछ बढाना पड़ा हो और इस प्रकार की संभावना का कोई प्रमाण भी मौजूद नही है।किंतु इसी के साथ क़ुरआन में किसी वस्तु के बढ़ाए जाने की संभावना को बौध्दिक तर्क से भी इस प्रकार रद्द किया जा सकता हैः
अगर यह मान लिया जाए कि कोई एक पूरा विषय क़ुरआन में बढ़ा दिया गया हैं तो फिर उसका अर्थ यह होगा कि क़ुरआन जैसी रचना दूसरे के लिए संभव है किंतु यह संभावना क़ुरआन के चमत्कारी पहलू और क़ुरआन का जवाब लाने में मनुष्य की अक्षमता से मेल नही खाती। और यह अगर मान लिया जाए कि कोई एक शब्द या एक छोटी-सी आयत उसमे बढा दी गयी हैं तो उसका अर्थ यह होगा कि क़ुरआन की व्यवस्था व ढॉचा बिगढ़ गया जिस का अर्थ होगा कि क़ुरआन में वाक्यों के मध्य तालमेल का जो चमत्कारी पहलू था वह समाप्त हो गया है और इस दशा में यह भी सिध्द हो जाएगा कि क़ुरआन में शब्दो की बनावट और व्यवस्था का जवाब लाना संभव हैं क्योंकि क़ुरआनी शब्दो का एक चमत्कार शब्दों का चयन तथा उनके मध्य संबंध भी है और उन में किसी भी प्रकार का परिवर्तन, उसके खराब होने का कारण बन जाऐगा।
तो फिर जिस तर्क के अंतर्गत क़ुरआन के मौजिज़ा होने को सिध्द किया गया था उसका सुरक्षित रहना भी उन्ही तर्को व प्रमाणो के आधार पर सिध्द होता है किंतु जहाँ तक इस बात का प्रश्न है कि क़ुरआन से किसी एक सूरे को इस प्रकार से नही निकाला गया है कि दूसरी आयतों पर उसका कोई प्रभाव ना पड़े तो इसके लिए एक अन्य तर्क की आवश्यकता है।
- क़ुरआन से कुछ कम नही हुआ हैं
शिया और सुन्नी समुदाय के बड़े बड़े धर्म गुरूओं ने इस बात पर बल दिया है कि जिस तरह से क़ुरआन में कोई चीज़ बढ़ाई नही गयी है उसी तरह से उसमें से किसी वस्तु को कम भी नही किया गया है। और इस बात को सिध्द करने के लिए उन्होने बहुत से प्रमाण पेश किये हैं किंतु खेद की बात है कि कुछ गढ़े हुए कथनों तथा कुछ सही कथनों की गलत समझ के आधार पर कुछ लोगों ने यह संभावना प्रकट की है बल्कि बल दिया है कि क़ुरआन से कुछ आयतों को हटा दिया गया है।
किंतु क़ुरआन में किसी भी प्रकार के फेर बदल न होने के बारे में ठोस ऐतिहासिक प्रमाणों के अतिरिक्त स्वंय क़ुरआन द्वारा भी उसमें से किसी वस्तु के कम होने को सिध्द किया जा सकता हैं।
अर्थात जब यह सिध्द हो गया कि इस समय मौजूद क़ुरआन ईश्वर का संदेश है और उसमें कोई चीज़ बढ़ाई नही गयी है तो फिर क़ुरआन की आयतें ठोस प्रमाण हो जाएगी। और क़ुरआन की आयतों से यह सिध्द होता है कि ईश्वर ने अन्य ईश्वरीय किताबों को विपरीत कि जिन्हे लोगों को सौंप दिया गया था, क़ुरआन की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी स्वंय ली हैं।
उदाहरण स्वरूप सुरए हिज्र की आयत 9 में कहा गया हैः
إِنَّا نَحْنُ نَزَّلْنَا الذِّكْرَ وَإِنَّا لَهُ لَحَافِظُونَ
निश्चित रूप से स्मरण(1) को उतारा है और हम ही उसकी सुरक्षा करने वाले हैं।
यह आयत दो भागों पर आधारित है। पहला यह कि हम ने क़ुरआन को उतारा है जिससे यह सिध्द होता है कि क़ुरआन ईश्वरीय संदेश है और जब उसे उतारा जा रहा था तो उसमें किसी प्रकार का फेर-बदल नही हुआ और दूसरा भाग वह है जिस में कहा गया हैं वह अरबी व्याकरण की दृष्टि से निरतरंता को दर्शाता है अर्थात ईश्वर सदैव क़ुरआन की सुरक्षा करने वाला हैं।
यह आयत हाँलाकि क़ुरआन में किसी वस्तु की वृध्दि न होने को भी प्रमाणित करती है किंतु इस आयत को क़ुरआन मे किसी प्रकार की कमी के न होने के लिऐ प्रयोग करना इस आशय से है कि अगर क़ुरआन मे किसी विषय के बढ़ाऐ न जाने के लिऐ इस आयत को प्रयोग किया जाऐगा तो हो सकता है यह कल्पना की जाऐ कि स्वंय यही आयत बढ़ाई हुई हो सकती है इस लिऐ हमने क़ुरआन मे किसी वस्तु के बढ़ाऐ न जाने को दूसरे तर्को और प्रमाणो से सिध्द किया है और इस आयत को क़ुरआन मे किसी वस्तु के कम न होने को सिध्द करने के लिऐ प्रयोग किया है। इस प्रकार से क़ुरआन मे हर प्रकार के फेरबदल की संभावना समाप्त हो जाती है।
अंत मे इस ओर संकेत भी आवश्यक है कि क़ुरआन के परिवर्तन व बदलाव के सुरक्षित होने का अर्थ ये नही है कि जहाँ भी क़ुरआन की कोई प्रति होगी वह निश्चित रूप से सही और हर प्रकार की लिपि की ग़लती से भी सुरक्षित होगी या ये कि निश्चित रूप उसकी आयतो और सूरो का क्रम भी बिल्कुल सही होगा तथा उसके अर्थो की किसी भी रूप मे ग़लत व्याख्या नही की गई होगी।
बल्कि इसका अर्थ ये है कि क़ुरआन कुछ इस प्रकार से मानव समाज मे बाक़ी रहेगा कि वास्तविकता के खोजी उसकी सभी आयतो को उसी प्रकार से प्राप्त कर सकते है जैसे वह ईश्वर द्वारा भेजी गई थी।इस आधार पर क़ुरआन की किसी प्रति में मानवीय गलतियों का होना हमारी इस चर्चा के विपरीत नही हैं।
(1) यहाँ पर क़ुरआन के लिऐ ज़िक्र का शब्द प्रयोग किया गया है जिसका अर्थ स्मरण और आशय क़ुरआन है।