
رضوی
आप अल्लाह को धोखा नहीं दे सकतेः मरहूम अल्लामा मिस्बाह यज़्दी
अल्लाह तआला बाहरी दिखावे और दावों से धोखा नहीं खाता। कोई व्यक्ति दावा कर सकता है कि वह ज्ञान और परहेज़गारी वाला है या दूसरों को भलाई के रास्ते पर ले जाना चाहता है, लेकिन असल में वह चालाकी और धोखे में हो सकता है। अगर कोई सच्चाई से अल्लाह के सामने सच बोलता है, तो उसे शुरू में ही उसके असर के कुछ निशान दिखाई देने लगते हैं।
मरहूम अल्लामा मिस्बाह ने अपनी एक तक़रीर में «अल्लाह के इरादे से जुड़ाव और अमल में सच्चाई» के विषय पर बात की, जो आपके समक्ष प्रस्तुत है। कमजोर इंसान जब ब्राह्माण की शक्ति के स्रोत, यानी «अल्लाह के इरादे» से जुड़ता हैं, तो वे एक अनंत ऊर्जा के स्रोत से ताकत पा सकता हैं। लेकिन यह संबंध केवल दावे या बातों से स्थापित नहीं होता।
* अल्लाह तआला के सामने सच्चे बनो
अल्लाह तआला बाहरी दिखावे और दावों से धोखा नहीं खाता। कोई व्यक्ति दावा कर सकता है कि वह ज्ञान और परहेज़गारी वाला है या दूसरों को भलाई के रास्ते पर ले जाना चाहता है, लेकिन असल में वह चालाकी और धोखे में हो सकता है।
एक बुज़ुर्ग आलिम के शब्दों में, "हम धोखा देने नहीं जाते क्योंकि अल्लाह को धोखा नहीं दिया जा सकता।"
अगर कोई अल्लाह के सामने सच्चाई से कहे, "हे अल्लाह, मैं तेरा बंदा हूँ, मैं वही करना चाहता हूँ जो तू पसंद करता है और इसके लिए हर कीमत चुकाने को तैयार हूँ, हर प्रकार की कुर्बानी देने को तैयार हूँ," और अगर वह सच में सच्चा हो, तो उसे शुरू में ही इसके कुछ असर दिखाई देने लगेंगे।
हालांकि, इस सच्चाई के बड़े इनाम और गहरे प्रभाव पाने के लिए परीक्षा के कई चरणों से गुजरना पड़ता है।
* सच्चाई में सफ़लता के दो हथियार: सब्र और तक़वा
इंसान को विभिन्न चरणों से गुजरना पड़ता है ताकि वह धीरे-धीरे अंतिम इनाम पाने के योग्य बन सके। सब कुछ शुरू में साफ़ नहीं दिखता। जैसे कि विद्वानों ने कहा है: "सच्ची खुशी परीक्षा के समय ही सामने आती है, ताकि हर उस व्यक्ति का असली चेहरा उजागर हो सके जिसका केवल बाहरी रूप होता है।"
परीक्षा में ही पता चलता है कि कौन सच में अपने शब्दों पर कायम है और कौन झूठ बोलता है या चालाक और धोखेबाज़ है।
अगर कोई अपने दावे में कि वह अल्लाह का बंदा है, सच्चा हो और इस रास्ते में धैर्य और स्थिरता दिखाए, तो अल्लाह का वादा कभी टूटता नहीं है और अल्लाह उसे अकेला नहीं छोड़ता। अल्लाह ने क़ुरआन में फरमाया है:
وَلَئِنْ صَبَرْتُمْ وَاتَّقَیْتُمْ وَأَتَوْکُمْ مِنْ فَوْرِهِمْ هَذَا یُمْدِدْکُمْ رَبُّکُمْ بِخَمْسَةِ آلافٍ مِنَ الْمَلائِکَةِ مُسَوِّمِینَ «और यदि तुम सब्र करो और परहेज़गारी अपनाओ और दुश्मन अचानक तुम पर हमला करे, तो तुम्हारा रब तुम्हारी मदद करेगा पाँच हज़ार फरिश्तों के साथ।»
इस आयत में अल्लाह की मदद पाने के लिए दो शर्तें बताई गई हैं:
पहली, सब्र और धैर्य,
और दूसरी, तक़वा और अल्लाह की आज्ञा का पालन।
हमें यकीन होना चाहिए कि अगर हम सब्र और तक़वा (परहेज़गारी) के साथ अल्लाह की राह पर चलें, तो अल्लाह हमें कभी अकेला नहीं छोड़ेगा। भले ही हमारे पास सभी सांसारिक और ज़ाहेरी साधन छिन जाएं, फिर भी अल्लाह की मदद और फरिश्तों की सहायता हमारे साथ बनी रहेगी।
इस अल्लाह की मदद का एक उदाहरण "बदर की लड़ाई" में देखा जा सकता है, और एक और उदाहरण "लेबनान की 33 दिन की लड़ाई" है, जहाँ अल्लाह की मदद स्पष्ट रूप से नजर आई।
अब सवाल यह है कि हम इस अनंत शक्ति के स्रोत से कैसे लाभ उठा सकते हैं?
इसका रास्ता है: ईमान, तक़वा (परहेज़गारी), सब्र और स्थिरता
सबसे पहले यह मानना जरूरी है कि ये बातें हकीकत हैं, सिर्फ़ कल्पना या भ्रम नहीं हैं। फिर हमें अल्लाह की आज्ञा का सच्चा इरादा करना चाहिए।
हमें अल्लाह की हिदायतों को सिर्फ़ नारे की तरह नहीं बोलना चाहिए, बल्कि उनके खिलाफ काम भी नहीं करना चाहिए। पिछले कई दशकों के अनुभवों में भी देखा गया है कि कुछ लोग ज़ाहिर में सही रास्ते और सच्चाई की बात करते हैं, लेकिन असल में उनका व्यवहार उससे उल्टा होता है।
अल्लाह के साथ कोई धोखा नहीं कर सकता। अगर कोई खुद को अल्लाह का बंदा कहता है, तो उसे ईमानदारी से उस बात पर कायम रहना चाहिए। क़ुरआन मजीद में फरमाया गया है:
مِنَ الْمُؤْمِنِینَ رِجَالٌ صَدَقُوا مَا عَاهَدُوا اللَّهَ عَلَیْهِ «मोमिनों में ऐसे लोग भी हैं जो अल्लाह के साथ किए गए अपने वादे पर सच्चाई से कायम हैं।»
अगर इंसान अल्लाह के साथ अपने वादे में सच्चा हो, तो वह अल्लाह की मदद और जीत के वादे पर भरोसा कर सकता है। भले ही उनकी संख्या कम हो, उनके पास दिखावटी ताकत या आधुनिक हथियार न हों, लेकिन अगर उनका ईमान मजबूत हो, अल्लाह की पूरी आज्ञा माने, और धैर्य व स्थिरता दिखाए, तो अल्लाह उनकी मदद करेगा।
अमेरिका के 700 शहरों में ट्रंप सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन
20 अप्रैल 2025 को अमेरिका के 700 से अधिक शहरों में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। यह प्रदर्शन 50501 आंदोलन के बैनर तले आयोजित किए गए।
20 अप्रैल 2025 को अमेरिका के 700 से अधिक शहरों में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। ये प्रदर्शन "50501" आंदोलन के बैनर तले आयोजित किए गए,
प्रदर्शन अमेरिका के सभी 50 राज्यों में हुए, जिसमें वाशिंगटन डीसी, न्यूयॉर्क, शिकागो, लॉस एंजेल्स, मियामी और ह्यूस्टन जैसे प्रमुख शहर शामिल थे केवल वाशिंगटन डीसी में ही 20,000 से अधिक प्रदर्शनकारियों ने भाग लिया अमेरिका के अलावा कनाडा, मैक्सिको और कई यूरोपीय देशों में भी ट्रंप की नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए।
आव्रजन नीतियों, व्यापार शुल्कों, शैक्षिक बजट में कटौती और सरकारी नौकरियों में 20,000 से अधिक कटौती के खिलाफ विरोध टेस्ला के सीईओ एलोन मस्क की सरकार में बढ़ती भूमिका के खिलाफ आक्रोश किल्मार अब्रेगो गार्सिया के मामले पर चिंता, जिन्हें गलती से अल सल्वाडोर भेज दिया गया था।
यह आंदोलन फरवरी 2025 में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म रेडिट से शुरू हुआ और जल्दी ही एक राष्ट्रीय विरोध अभियान में बदल गया आंदोलन ने खुद को "अमेरिकी कामकाजी वर्ग की आवाज" बताया जो "अधिनायकवादी शासन और सरकारी भ्रष्टाचार" के खिलाफ लड़ रहा है 5 अप्रैल को "हैंड्स ऑफ! प्रदर्शनों में 1,400 से अधिक स्थानों पर लाखों लोगों ने भाग लिया, जिसे अब तक के सबसे बड़े जन विरोध में गिना जा रहा है।
सैन फ्रांसिस्को में प्रदर्शनकारियों ने "इम्पीच एंड रिमूव!" शब्दों को बनाने के लिए मानव श्रृंखला बनाई मियामी में कुछ प्रदर्शनकारियों ने अमेरिकी झंडे को उल्टा पकड़ा, जिसे वे "संकट का प्रतीक" बताते हैं कई शहरों में खाद्य और कपड़े वितरण, पर्यावरण सफाई और भविष्य की रणनीति पर चर्चा जैसी गतिविधियाँ भी आयोजित की गईं।
गैलप के हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, ट्रंप की लोकप्रियता में गिरावट आई है, जनवरी में 47% से घटकर अब 43% रह गई है डेमोक्रेटिक नेताओं ने इन प्रदर्शनों का समर्थन किया है सीनेट अल्पसंख्यक नेता चक शूमर ने कहा कि "ट्रंप के अराजक और विफल नेतृत्व के तहत बढ़ती लागत और कम स्वतंत्रता का सामना करने वाले अधिक अमेरिकियों के साथ सार्वजनिक भावना डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ बढ़ रही है।
यह विरोध प्रदर्शन अमेरिकी राजनीति में बढ़ते ध्रुवीकरण और ट्रंप प्रशासन की विवादास्पद नीतियों के प्रति जनता के आक्रोश को दर्शाते हैं। आयोजकों का कहना है कि यह आंदोलन जारी रहेगा और 2024 के चुनावों में मतदान केंद्रित कार्रवाई में तब्दील होगा।
दोस्त वह है, जो तुम्हें बुराई से रोके
हर इंसान अपने साथियों से प्रभावित होता है और हर इंसान के भाग्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा उसके साथियों द्वारा निर्धारित होता है।
इस दुनिया में इंसान बिना दोस्तों के, अजनबी और परदेसी की तरह रहता है, और उसके लिए जीवन का कोई अर्थ नहीं होता। ऐसे बहुत से लोग हैं, जो सच्चे और हमदर्द दोस्तों के आशीर्वाद से पूर्णता और समृद्धि के शिखर पर पहुंचे हैं, और दूसरी ओर, ऐसे भी बहुत से लोग हैं जो बुरे और अयोग्य लोगों की संगत और दोस्ती के कारण, असफल रहे हैं। लेकिन अच्छे और सच्चे दोस्त पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए? इस संबंध में पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों की हदीसें हमारा मार्गदर्शन कर सकती हैः
अच्छे लोगों की संगति
पैग़म्बरे इस्लाम (स) की हदीस हैः अच्छे लोगों के सथ उठो-बैठो, क्योंकि अच्छा काम करोगे वह तुम्हारा उत्साह बढ़ायेंगे और अगर बुराई करोगे तो वह तुम्हारी आलोचना करेंगे।
अच्छा दोस्त
इमाम हुसैन (अ)
तुम्हारा वह दोस्त है, जो तुम्हें बुराई से रोके और वह तुम्हारा दुश्मन है, जो गुनाह करने के लिए प्रोत्साहित करे।
अधिक दोस्त
इमाम हसन असकरी (अ)
जिस व्यक्ति का चरित्र पवित्र है, जिसका स्वभाव उदार है, और जिसका चरित्र सहनशील है, उसके अनेक मित्र होंगे।
समस्त बुराईयां
हज़रत अली (अ)
तुम्हारी समस्त बुराईयां, बुरी संगति की वजह से हैं।
मुर्दा दिल दोस्त
पैग़म्बरे इस्लाम (अ)
मुर्दा दिल लोगों के साथ उठने-बैठने से बचो। लोगों ने पूछा हे ईश्वरीय दूत, मुर्दा दिल लोग कौन हैं? फ़रमायाः हर धनवान व्यक्ति जिसका धन उसे विद्रोही बनाता है।
दोस्ती का कर्तव्य
इमाम सादिक़ (अ)
जो कोई अपने दोस्त को बुराई करते देखे और सक्षम होने के बावजूद उसे उससे नहीं रोके, तो उसने उसके साथ ग़द्दारी की है, और जो कोई नादान से दोस्ती करने से नहीं बचेगा, संभवतः उसी की तरह हो जाएगा।
दोस्त के साथ बर्ताव
हज़रत अली (अ)
दोस्त के साथ हमदर्दी करो, अगर वह तुम्हारी बात नहीं भी माने और उसके साथ संपर्क में रहो भले ही वह तुम्हे सताए।
तीन आदतें
हज़रत अली (अ)
तीन आदतें दोस्ती का कारण बनती हैः अच्छा स्वभाव, दयालुता और विनम्रता।
हौज़ात ए इल्मिया के निर्माण का मकसद ही लोगों की सेवा करना है
हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख ने कहा,हौज़ा-ए-इल्मिया की स्थापना का मकसद जनता की सेवा करना और उनकी बौद्धिक व सांस्कृतिक ज़रूरतों को पूरा करना है। हमें हौज़ा-ए-इल्मिया को समाज और क्रांति के लक्ष्यों के अधीन करना चाहिए, और इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सामंजस्य और बौद्धिक आदान-प्रदान की आवश्यकता है।
हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा अराफी ने मदरसा ए इल्मिया हज़रत अब्दुल अज़ीम हुसनी अ.स.के आयतुल्लाह बोरोजर्दी (रह.) हॉल में तेहरान प्रांत के सांस्कृतिक व प्रशासनिक अधिकारियों, मजलिस-ए-शूरा-ए-इस्लामी में तेहरान के प्रतिनिधियों और हौज़ा के प्रांतीय संस्थानों की समन्वय परिषद के सदस्यों से मुलाकात में कहा,हौज़ा ए इल्मिया की स्थापना का मकसद जनता की सेवा करना और उनकी बौद्धिक व सांस्कृतिक ज़रूरतों को पूरा करना है।
उन्होंने कहा,हौज़ा को समाज और क्रांति के लक्ष्यों के अनुरूप बनाना चाहिए और इसके लिए समन्वय और बौद्धिक सहयोग ज़रूरी है।आयतुल्लाह आराफी ने कहा,तेहरान देश के अन्य सभी क्षेत्रों से अलग है, इसलिए तेहरान के सांस्कृतिक संस्थान और हौज़ा भी अन्य सभी हौज़ात से अलग हैं।
उन्होंने आगे कहा,अतीत में भी हमारे पास बड़े और महान वैज्ञानिक हौज़ात थे जिन्हें फिर से पुनर्जीवित करना चाहिए। नीति यह है कि हौज़ात ए इल्मिया हर जगह विकास करें।
हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख ने कहा,मस्जिद के मामलों को पर्याप्त और विशेष महत्व देना चाहिए क्योंकि एक सशक्त और सक्रिय मस्जिद ही कई समस्याओं को सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से हल कर सकती है।
हिज़्बुल्लाह/ हमने इज़राइल को उसका लक्ष्य हासिल करने से रोक दिया
लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने कहा: अगर प्रतिरोध की दृढ़ता न होती, तो ज़ायोनी शासन अपना आक्रमण जारी रखता।
हिज़्बुल्लाह के महासचिव शैख़ नईम क़ासिम ने शुक्रवार रात को एक भाषण में कहा कि दक्षिणी सीमाओं (मक़बूज़ा फिलिस्तीनी क्षेत्रों की सीमाओं) पर लेबनानी प्रतिरोध ने इज़राइल को रोक दिया और इज़राइल को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने से रोक दिया।
उन्होंने कहा: हिज़्बुल्लाह ने इज़राइली सेना को आगे बढ़ने से रोका और इज़राइल को सहमत होने के लिए मजबूर किया और अगर प्रतिरोध की दृढ़ता नहीं होती, तो ज़ायोनी शासन ने (दक्षिणी लेबनान पर) अपना आक्रमण जारी रखा होता।
लेबनान के हिजबुल्लाह के महासचिव ने कहा: "इजराइली शासन विस्तारवादी है और वह फिलिस्तीन पर क़ब्ज़े से संतुष्ट नहीं है, बल्कि लेबनान पर भी कब्जा करना चाहता है।
उन्होंने कहा कि हिज़्बुल्लाह ने युद्ध विराम समझौते का पूरी तरह पालन किया है। उन्होंने कहा, युद्ध विराम समझौते के बाद से ज़ायोनी शासन ने लेबनान पर 2 हज़ार 700 से अधिक बार हमला किया है।
लेबनान के हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने कहा: "जब तक लेबनानी सेना और जनता के साथ प्रतिरोध खड़ा रहेगा, ज़ायोनी शासन अपने लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पाएगा।"
शैख़ नईम कासिम का यह बयान ऐसे समय में आया है जब लेबनान में हिज़्बुल्लाह की कार्यकारी परिषद के उपाध्यक्ष अली दामूश ने शुक्रवार को एक भाषण में इस बात पर ज़ोर दिया कि लेबनान और क्षेत्र को तोड़ने वाला "कैंसर" इज़राइल है, जिसका समर्थन अमेरिका भी कर रहा है।
दामुश ने कहा: लेबनान में अमेरिका की उपस्थिति का मुख्य उद्देश्य इज़राइल की रक्षा करना और इस शासन को अपना प्रभुत्व मजबूत करने और क्षेत्र में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करना है।
उन्होंने कहा कि "इज़राइल" लगातार युद्धविराम समझौते का उल्लंघन कर रहा है और लेबनानी नागरिकों पर हमला कर रहा है, जबकि अमेरिका लेबनान पर दबाव बनाने और अपनी मांगें थोपने के लिए इन हमलों का पूरा समर्थन करता है।
हिज़्बुल्लाह की कार्यकारी परिषद के डिप्टी ने इस बात पर जोर दिया कि जो कोई भी इज़राइली धमकियों के अंत और इस्राईल के हमलों को रोकने से पहले प्रतिरोध के निरस्त्रीकरण का आह्वान करता है, वह व्यावहारिक रूप से दुश्मन के लक्ष्यों को पूरा कर रहा है।
उन्होंने कहा: इस समय प्रतिरोध के निरस्त्रीकरण पर चर्चा करना लेबनान के हितों के विरुद्ध है और इससे देश की स्थिति और शक्ति कमज़ोर होगी।
लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह की कार्यकारी परिषद के उपाध्यक्ष ने कहा: हम दिखावे और दबाव से प्रभावित नहीं होंगे और हम ऐसी धमकियों के आगे आत्मसमर्पण नहीं करेंगे।
सैयद बाकिर अलमूसवी के इंतकाल पूरे शिया समुदाय के लिए एक भारी क्षति
मरहूम व मग़फ़ूर विनम्र स्वभाव और अत्यंत सादगी के साथ अपना जीवन दीन-ए-मुबीन की सेवा मकतब-ए-अहलेबैत अ.स. के प्रचार-प्रसार, समाज के सुधार और किताबें लिखने में व्यतीत किया उनका अस्तित्व ज्ञान, सहनशीलता और निष्ठा का एक सुंदर संगम था।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली हुसैनी सिस्तानी के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना सैयद अशरफ अली ग़रवी का शोक संदेश
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलाही राजी'उन
बेहद दुख और गहरे मातम के साथ यह खबर मिली कि अमल करने वाले आलिम, हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन जनाब सैयद बाकिर अलमूसवी इस दुनिया से परलोक की ओर चले गए।
मरहूम बेहद विनम्र स्वभाव, मधुर भाषी और अत्यंत सादगी भरी ज़िंदगी जीने वाले थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन दीन-ए-मुबीन की सेवा, मकतब-ए-अहलेबैत (अ.स.) के प्रचार-प्रसार, समाज की सुधार और किताबें लिखने में बिताया।उनका अस्तित्व इल्म, तक़्वा, हिल्म (सहनशीलता) और इख़्लास (ईमानदारी) का एक सुंदर मिश्रण था।
मिम्बर-ए-हुसैनी पर उनकी गरजती आवाज़, मजलिस-ए-अज़ा में उनके प्रभावशाली भाषण और अहलेबैत (अ.स.) के इल्म को फैलाने वाली उनकी लेखनी हमेशा याद रखी जाएगी। उनके रहन-सहन से नजफ के उलेमा की खुशबू महसूस होती थी।
हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन आलिमा आक़ा सैयद बाकिर अल-मूसवी (रहमतुल्लाह अलैह) की रिहलत न सिर्फ खानवादा-ए-इल्म बल्कि पूरी मिल्लत-ए-शिया के लिए एक बड़ा नुकसान है।
हम अल्लाह तआला से दुआ करते हैं कि वह मरहूम को मासूमीन अ.स. की सोहबत में बुलंद मकाम अता करे और उनके परिवार, शागिर्दों, मुरीदों व चाहने वालों को सब्र-ए-जमील व अज्र-ए-जज़ील अता फरमाए।
सैयद अशरफ अली अल ग़रवी
बाब-ए-नजफ, सज्जाद बाग कॉलोनी, लखनऊ
मशहद में गाज़ा के समर्थन में विभिन्न देशों के स्टूडेंट का इज़्तेमा
विश्व के 20 देशों के शिक्षकों, धार्मिक विद्वानों और गैरईरानी छात्रों की उपस्थिति में, मशहद स्थित जामिया अलमुस्तफा अलआलमिया के प्रतिनिधि कार्यालय में विश्व इस्लामी मदरसों के छात्रों का ग़ाज़ा के मज़लूम लोगों और प्रतिरोध मोर्चे के समर्थन तथा ज़ायोनी शासन के अत्याचारों के खिलाफ विरोध सम्मेलन आयोजित किया गया।
विश्व के 20 देशों के शिक्षकों, धार्मिक विद्वानों और गैरईरानी छात्रों की उपस्थिति में, मशहद स्थित जामिया अलमुस्तफा अलआलमिया के प्रतिनिधि कार्यालय में विश्व इस्लामी मदरसों के छात्रों का ग़ाज़ा के मज़लूम लोगों और प्रतिरोध मोर्चे के समर्थन तथा ज़ायोनी शासन के अत्याचारों के खिलाफ विरोध सम्मेलन आयोजित किया गया।
आज शनिवार को जामिया अल-मुस्तफा खुरासान के प्रार्थना कक्ष में हुए इस सम्मेलन में अफ्रीका, पूर्वी एशिया, दक्षिण अमेरिका, अरब देशों और भारतीय उपमहाद्वीप के छात्र-छात्राओं ने भाग लिया विभिन्न भाषाएं बोलने वाले इन छात्रों ने एकजुट होकर फिलिस्तीनी जनता के प्रति अपना अटूट समर्थन व्यक्त किया।
कुरान, किबला और न्याय के प्रति प्रेम ने विभिन्न संस्कृतियों, नस्लों और रंगों के छात्रों के दिलों को जोड़ा इस्राइल मुर्दाबाद और अमरीका मुर्दाबाद के नारों से पूरा हॉल गूंज उठा। छात्रों ने ज़ायोनी शासन के बच्चों को मारने वाले अत्याचारों की निंदा की और मुस्लिम व गैर-मुस्लिम देशों की खामोशी की कड़ी आलोचना की।
समारोह के अंत में छात्र प्रतिनिधियों ने एक प्रस्ताव पढ़ा, जिसमें,प्रतिरोध मोर्चे, इस्लामी जागृति और जिहाद-ए-तब्यीन (सत्य का प्रचार) के समर्थन को सभी मुसलमानों का वैश्विक कर्तव्य बताया गया ज़ायोनी शासन द्वारा ग़ज़ा के निर्दोष लोगों, विशेषकर महिलाओं, बच्चों और अस्पतालों पर हमलों को युद्ध अपराध और नरसंहार करार दिया गया।अंतरराष्ट्रीय संगठनों से इन अत्याचारों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की मांग की गई ।
बयान में वैश्विक समुदाय से ग़ाज़ा की घेराबंदी हटाने, चिकित्सा सहायता भेजने और अमेरिकी-इजरायली उत्पादों का बहिष्कार करने का आग्रह किया गया ।
परमाणु समझौते की ग़लतियाँ दोहराई नहीं जाएंगी
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हुसैनी ने कहा,वार्ताएं विदेश मंत्रालय के दर्जनों अन्य साधनों में से सिर्फ़ एक ज़मीनी साधन हैं, और परमाणु समझौते में जो पहले ग़लतियाँ हुई थीं उन्हें दोबारा नहीं दोहराया जाएगा।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद सईद हुसैनी ने मस्जिदे बक़ियतुल्लाहुल आज़म काशान में नमाज़े जुमा के खुतबों (उपदेशों) के दौरान भाषण देते हुए कहा,इस्लामी क्रांति की शुरुआत में मुनाफिक़ों और इस्लाम व व्यवस्था के दुश्मनों ने भी सेना को ख़त्म करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी थी।
उन्होंने आगे कहा,इस्लामी क्रांति की जीत के सिर्फ़ एक दिन बाद ही सेना ने अमेरिका द्वारा ईरान में पैदा किए गए फित्नों (साज़िशों) का डटकर मुक़ाबला किया और एक अहम व बुनियादी भूमिका निभाई।
काशान के इमामे जुमा ने रहबर-ए-मआज़म (आयतुल्लाह ख़ामेनेई) के नौरोज़ के मौके पर सरकारी अधिकारियों से मुलाक़ात में ग़ज़्ज़ा को लेकर दिए गए अहम बयानों का ज़िक्र करते हुए कहा,दुश्मन ने निर्दयता की सभी हदें पार कर दी हैं और जब फसाद अपनी चरम सीमा तक पहुँचता है तो अल्लाह की ‘कोड़े वाली परंपरा’ लागू होती है।
हुज्जतुल इस्लाम हुसैनी ने कहा,इस्लामी दुनिया को आर्थिक, राजनीतिक और ज़रूरत पड़ने पर व्यवहारिक स्तर पर एकता और सामूहिक कदम उठाने की आवश्यकता है।
उन्होंने अमेरिका में ट्रंप की नीतियों और ईरान को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति की सोच का हवाला देते हुए कहा,हालिया बातचीत के बाद, अमेरिकी वित्त मंत्री ने दावा किया है कि ईरान पर अधिकतम दबाव डाला जाएगा ताकि उसकी ऊर्जा की निर्यात को शून्य तक पहुंचाया जा सके।हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हुसैनी ने कहा,
आज अमेरिका की अपनी 50 रियासतों के साथ-साथ फ्रांस, कनाडा, जर्मनी, मैक्सिको, पुर्तगाल और तक़रीबन 1200 इलाक़ों में ट्रंप के ख़िलाफ़ जन आंदोलन (प्रदर्शन) हो रहे हैं।
गाज़ा में इजराइल के हवाई हमले में 17 लोग शहीद
गाज़ा में शुक्रवार तड़के इजराइली हवाई हमले में बच्चों सहित कम से कम 17 लोग मारे गए चिकित्सा कर्मियों ने यह जानकारी दी।
गाज़ा में शुक्रवार को इजराइली हवाई हमले में बच्चों सहित कम से कम 17 लोग मारे गए चिकित्सा कर्मियों ने यह जानकारी दी।
इंडोनेशियाई अस्पताल के चिकित्सा कर्मियों ने बताया कि मृतकों में शामिल 10 लोग जबालिया शरणार्थी शिविर से हैं। वहीं नासिर अस्पताल के कर्मियों ने बताया कि दक्षिणी शहर खान यूनिस में सात लोग मारे गए, जिनमें एक गर्भवती महिला भी शामिल है ये सातों शव इस अस्पताल में लाये गए थे।
इजराइली हमले तेज होने के बाद गाजा में एक दिन पहले दो दर्जन से अधिक लोग मारे गए थे।इजराइल में नियुक्त अमेरिका के राजदूत माइक हकाबी शुक्रवार को ‘वेस्टर्न वाल’ पहुंचे जो यरूशलम के पुराने शहर में यहुदियों का एक प्रमुख प्रार्थना स्थल है।
हकाबी ने दीवार पर एक प्रार्थना पत्र को भी संलग्न किया जिस बारे में उन्होंने बताया कि इसे अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने हाथों से लिखा है।
हकाबी ने बताया कि ट्रंप ने उन्हें यरूशलम में शांति के लिए उनके प्रार्थना पत्र को लेकर जाने को कहा था। हकाबी ने यह भी कहा कि हमास की गिरफ्त में मौजूद शेष सभी बंधकों को वापस लाने के लिए हर कोशिश की जा रही है।
गाजा में 18 महीने से जारी युद्ध के महत्वपूर्ण समय में हकाबी का आगमन हुआ है। अमेरिका सहित अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थ युद्ध विराम को फिर से पटरी पर लाना चाहते हैं।इजराइल की मांग है कि हमास कोई युद्ध विराम शुरू होने से पहले और भी बंधकों की रिहाई करे और आखिरकार क्षेत्र को खाली करने के लिए सहमत हो।
इजराइल ने कहा है कि उसकी योजना गाजा के अंदर बड़े ‘‘सुरक्षा क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित करने की है।हमास के वार्ता प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख खलील अलहय्या ने बृहस्पतिवार को कहा था कि समूह ने इजराइल के नवीनतम प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है।
ईरान हमेशा दुनिया भर में मजलूमों के समर्थन में सबसे आगे रहा है
हुज्जतुल इस्लाम इज़दी ने कहा, अगर अमेरिका का समर्थन न होता तो कई साल पहले ही इस्राइली ग़ासिब हुकूमत का नापाक वजूद खत्म हो चुका होता इस्लामी ईरान, जब और जहां भी ज़रूरत पड़ी, मजलूमों की हिमायत समर्थन में सबसे आगे रहा है।
कोहबनान के इमामे जुमआ हुज्जतुल इस्लाम हसन इज़दी ने इस शहर में जुमा के खुतबों के दौरान ग़ज़्ज़ा की स्थिति की तरफ़ इशारा करते हुए कहा,ग़ज़्ज़ा की अवाम तन्हा (अकेले) और मजलूमियत के साथ अपना बचाव कर रही है।
उन्होंने कहा,अमेरिका और ज़ायोनी हुकूमत पूरी दुनिया को जंगल के क़ानून और वहशियत (दरिंदगी) की तरफ़ ले जा रहे हैं, जबकि हम देख रहे हैं कि ये ग़ासिब और ज़ालिम ज़ायोनी ग़ज़्ज़ा के बच्चों और औरतों को खून में नहला रहे हैं।
इमामे जुमा ने आगे कहा अगर अमेरिका का समर्थन न होता, तो कई साल पहले ही ज़ायोनी हुकूमत का नासूर मिट चुका होता। इस्लामी ईरान हमेशा मजलूमों की हिमायत में जहां ज़रूरत पड़ी, वहां मौजूद रहा है।
उन्होंने रहबर-ए-मुअज़्ज़म की हिदायतों का हवाला देते हुए कहा,इस्लामी देशों के बीच आपसी सहयोग और एतबार (भरोसा), दूसरों पर निर्भरता से बेहतर है। हमें अपने विरोधियों से बदगुमानी (संदेह) जरूर है, लेकिन अपनी काबिलियतों पर पूरा भरोसा भी है।