رضوی

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आपका नाम,आपका नाम अब्दुल अज़ीम था।कुन्नीयत (उपनाम)आपकी कुन्नीयत अबुलक़ासिम और अबुलफतह थी ।

आपका नाम,आपका नाम अब्दुल अज़ीम था।कुन्नीयत (उपनाम)आपकी कुन्नीयत अबुलक़ासिम और अबुलफतह थी ।

पिता:
शाह अब्दुल अज़ीम हसनी के पिता अब्दुल्ला इब्ने अली इब्ने हसन बिन ज़ैद बिन इमाम हसन (अ.स.) थे यानी आप इमामे हसन (अ.स.) की चौथी नस्ल मे थे।

जन्म स्थान व जन्मदिवस:

आप चार रबीउस् सानी सन् 173 हिजरी को मदीने मे अपने दादा इमाम हसन (अ.स.) के घर मे इस दुनिया मे तशरीफ लाऐ।

जनाबे अब्दुल अज़ीम और इमाम:

हज़रत शाह अब्दुल अज़ीम ने इमाम काज़िम (अ.स.) से लेकर इमाम हसन असकरी (अ.स.) तक पाँच इमामो के जमाने को देखा और इन मे से इमाम मौहम्मद तक़ी और इमाम अली नक़ी की ज़ियारत भी की और उन दोनो इमामो से हदीसे भी नक़्ल की।

अज़मते इल्मी:

हज़रत शाह अब्दुल अज़ीम की इल्मी अज़मत को बयान करने के लिऐ इतना काफी है कि हम जान लें कि एक मरतबा इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने अपने एक सहाबी से फरमाया थाः जब भी तुम्हारे शहर मे दीनी कामो के बारे मे मुश्किल पैदा हो जाऐ तो अब्दुल अज़ीम बिन अब्दुल्लाह हसनी से पूछ लो।

रूहानी हैसीयत:

हजरत शाह अब्दुल अज़ीम की रूहानी और बुलन्द हैसीयत की निशानी के लिऐ यही कहना काफी होगा कि आपकी क़ब्र की ज़ियारत का सवाब इमाम हुसैन (अ.स.) की क़ब्र की जियारत के सवाब के बराबर है जैसा कि इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने शहरे रै के रहने वाले मुहम्मद बिन याहिया अत्तार से फरमाया था कि अगर तुमने अपने शहर मे जनाबे अब्दुल अज़ीम की ज़ियारत की तो ऐसा है कि इमाम हुसैन (अ.स.) की ज़ियारत की।

वजहे शहादत:

रिवायात मे आपकी शहादत के बारे मे मिलता है कि जनाबे अब्दुल अज़ीम को ज़हरे शदीद दिया गया जिसकी वजह से आप बीमार हो गऐ और उसी बीमारी के सबब आपने शहादत पाई

शहादत:आपकी शहादत 11 शव्वालुल मुकर्रम सन् 252 हिजरी मे हुई।

कब्रे मुबारक:

हज़रत शाह अब्दुल अज़ीम का मज़ारे मुक़द्दस शहरे रय (तेहरान/ईरान) मे मौजूद है कि जहाँ रोज़ाना हज़ारो चाहने वाले आपकी क़ब्र की जियारत के लिऐ आते है।

आपके जवार मे जनाबे हमज़ा इब्ने इमाम काज़िम (अ.स) और जनाबे ताहिर इब्ने मुहम्मद इब्ने मुहम्मद इब्ने हसन इब्ने हुसैन इब्ने ईसा इब्ने याहिया इब्ने हुसैन इब्ने ज़ैद इब्ने इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स) की कब्रे मौजूद है।

नए हिजरी शम्सी साल के आग़ाज़ के उपलक्ष्य में इस्लामी गणराज्य ईरान की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के कमांडरों और अधिकारियों ने रविवार 13 अप्रैल की दोपहर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई से तेहरान में मुलाक़ात की।

इस मौक़े पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने आर्म्ड फ़ोर्सेज़ को आक्रमणकारी तत्वों के मुक़ाबले में मुल्क की हिफ़ाज़ती दीवार और क़ौम के लिए शरणस्थल बताया। उन्होंने इस राष्ट्रीय ज़िम्मेदारी को पूरा करने के लिए साफ़्टवेयर और हार्डवेयर दोनों लेहाज़ से सावधान रहने और ज़्यादा से ज़्यादा तैयारी को निरंतर बढ़ाने पर बल दिया और कहा कि मुल्क की तरक़्क़ी की वजह से ईरान के दुश्मन क्रोधित हो गए हैं और बौखला गए हैं, अलबत्ता कुछ मैदानों जैसे आर्थिक मसलों में कमज़ोरियां हैं कि जिन्हें दूर करने के लिए बेशक कोशिश होनी चाहिए।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इस मुलाक़ात में आर्म्ड फ़ोर्सेज़ की हार्डवेयर के लेहाज़ से तैयारी से मुराद, हथियारों की क्षमता को बढ़ाना और उसकी संस्थागत, संगठनात्मक और आर्थिक उन्नती को बताया और कहा कि हार्डवेयर के लेहाज़ से तैयारी के साथ साफ़्टवेयर के लेहाज़ से तैयारी यानी अपने मक़सद और अपनी ज़िम्मेदारी के प्रति ईमान और मार्ग के सही होने पर विश्वास बहुत अहम है कि जिसे नुक़सान पहुंचाने के लिए शत्रुतापूर्ण कोशिशें हो रही हैं।

उन्होंने इस्लामी वजूद और इस्लामी सिस्टम की स्वाधीनता को उससे दुश्मनी होने का सबब बताया और कहा कि जिस चीज़ से दुश्मन सतर्क हो जाता है वह इस्लामी गणराज्य का नाम नहीं बल्कि यह इरादा कि एक मुल्क मुसलमान, स्वाधीन और पहचान वाला होना चाहता और दूसरों पर निर्भर होना नहीं चाहता, उनके क्रोधित होने का कारण है।

 इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने दुनिया की मुंहज़ोर ताक़तों के दोहरे व्यवहार के नमूने के तौर पर उनके अपने लिए सबसे खतरनाक और त्रासदी को जन्म देने वाले हथियारों से लैस होने को सही और दूसरों के लिए उनकी रक्षा के क्षेत्र में तरक़्क़ी को वर्जित समझने के व्यवहार को पेश किया।  उन्होंने कहा कि आर्म्ड फ़ोर्सेज़ में यक़ीन, ईमान, इरादा, बहादुरी और अल्लाह पर भरोसा सबसे ज़्यादा होना चाहिए क्योंकि पूरे इतिहास में बड़ी बड़ी फ़ौजें जिनमें ये ख़ुसूसियतें नहीं थीं, हार गयीं।

उन्होंने समाज की साफ़्टवेयर के लेहाज़ से तैयारी को सुरक्षित रखने और उसमें उन्नति के लिए ईरान की प्रसारण संस्था आईआरआईबी और दूसरे प्रचारिक तंत्रों सहित मुख़्तलिफ़ विभागों की कोशिशों को ज़रूरी बताया और कहा कि ख़ुशक़िस्मती से आज मुल्क न सिर्फ़ हार्डवेयर की तैयारी के लेहाज़ से अतीत की तुलना में बहुत आगे है बल्कि साफ़्टवेयर के लेहाज़ से भी बहुत आगे है कि जिसका नमूना लाखों की तादाद में मोमिन और पुरजोश जवानों की संघर्ष के मैदानों में क़दम रखने की उत्सुकता है कि जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने ईरान की दिन ब दिन होने वाली तरक़्क़ी को दुश्मनों के क्रोध और उनकी ओर से मीडिया में दुष्प्रचार किए जाने का कारण बताया और कहा कि वे अपनी आरज़ूओं को ख़बर और फ़ैक्ट्स के तौर पर बयान करते हैं, इन दुष्प्रचारों के ख़िलाफ़ योजनाबद्ध रूप से निपटा जाए। उन्होंने इस बात पर बल देते हुए कि इस्लामी गणराज्य अच्छी तरह आगे बढ़ रहा है और तरक़्क़ी कर रहा है, कहा कि अलबत्ता आर्थिक लेहाज़ से महसूस होने वाली मुश्किलें भी मौजूद हैं, जिन्हें हल होना चाहिए लेकिन ऐसा न हो कि मसलों को आपस में इस तरह मिला दें कि उन हैरतअंगेज़ तरक़्क़ियों की अनदेखी हो जाए जिनकी तारीफ़ करने पर दुश्मन भी मजबूर हुए।

 इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इसी तरह नए ईरानी साल नौरोज़ की तमाम आर्म्ड फ़ोर्सेज़ और उनके परिवार वालों को बधाई दी और फ़ोर्सेज़ से उनकी ज़िम्मेदारियों को अंजाम देने में सहयोग करने पर जीवनसाथियों और परिवार वालों की सराहना की।  इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के चीफ़ आफ़ जनरल स्टाफ़ मेजर जनरल बाक़ेरी ने पिछले ईरानी साल में ईरान और क्षेत्र की घटनाओं की ओर इशारा किया और फ़िलिस्तीन के मसले में विश्व स्तर पर जागरुकता और ज़ायोनी शासन के अपराधों के मुक़ाबले में ग़ज़ा और लेबनान में अवाम की ऐतिहासिक दृढ़ता को ज़ुल्म के ख़िलाफ़ संघर्ष में गौरवपूर्ण चोटी के तौर पर ज़िक्र किया और रेज़िस्टेंस के शहीद कमांडरों और मुजाहिदों को याद किया।

मेजर जनरल बाक़ेरी ने रक्षा और डिटरेन्स क्षमता बढ़ाने, आधुनिक उपकरण और हथियारों के उत्पादन, प्रभावी सैन्य अभ्यासों के आयोजन, आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के बीच पूरी तरह समन्वय, मुल्क की तरक़्क़ी और निर्माण में मदद और नए साल के नारे को व्यवहारिक बनाने के लिए सरकार से मैदान और कूटनीति के स्तर पर सहयोग को आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के प्रोग्राम और ऐक्शन प्लान में गिनवाया और सम्मानीय राष्ट्रपति के मुल्क के रक्षा क्षेत्र में सपोर्ट को अहमयित देने पर आभार व्यक्त किया और कहा कि आर्म्ड फ़ोर्सेज़ अवाम के भरपूर सपोर्ट से पूरी तरह तैयारी की हालत में है और ईरान के दुश्मन इस मुल्क को नुक़सान पहुंचाने की हसरत अपने दिल में ही लिए रह जाएंगे।

वक्फ पूरी तरह धार्मिक संपत्ति है, जिस पर सरकार या राज्य का कोई अधिकार नहीं है। "किसी को भी, यहां तक ​​कि दानकर्ता को भी, उन संपत्तियों पर अधिकार नहीं है, जिन्हें हमारे पूर्वजों ने अल्लाह के नाम पर समर्पित किया है, क्योंकि समर्पित संपत्ति अल्लाह की संपत्ति बन जाती है और इसका उपयोग केवल उसी उद्देश्य के लिए किया जा सकता है, जिसके लिए इसे समर्पित किया गया था।"

हैदराबाद डक्कन/ऑल इंडिया मजलिस ए उलेमा व जाकेरीन के अध्यक्ष मौलाना डॉ. सैयद निसार हुसैन हैदर आगा ने केंद्र सरकार द्वारा संसद में पारित वक्फ संशोधन विधेयक की कड़ी आलोचना करते हुए इसे गैर-इस्लामी, असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक और अनुचित बताया है।

उन्होंने कहा कि वक्फ पूरी तरह धार्मिक संपत्ति है, जिस पर सरकार या राज्य का कोई अधिकार नहीं है। "किसी को भी, यहां तक ​​कि दानकर्ता को भी, उन संपत्तियों पर अधिकार नहीं है, जिन्हें हमारे पूर्वजों ने अल्लाह के नाम पर समर्पित किया है, क्योंकि समर्पित संपत्ति अल्लाह की संपत्ति बन जाती है और इसका उपयोग केवल उसी उद्देश्य के लिए किया जा सकता है, जिसके लिए इसे समर्पित किया गया था।"

मौलाना आगा ने आगे कहा कि यह संशोधन विधेयक न केवल इस्लामी शरीयत के खिलाफ है, बल्कि भारतीय संविधान और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के भी खिलाफ है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय केंद्र सरकार से मांग करता है कि इस विधेयक को तुरंत वापस लिया जाए और वक्फ बोर्ड को उसकी पूर्व स्वायत्तता के साथ काम करने दिया जाए ताकि मुसलमान भी अन्य धर्मों की तरह अपनी धार्मिक संपत्तियों का प्रबंधन और प्रशासन स्वयं कर सकें।

मौलाना आगा ने चेतावनी दी कि अगर सरकार मुसलमानों की इस मांग को नजरअंदाज करती है और बिल पर जोर देती रहती है तो मिल्लते इस्लामिया पूरे देश में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन शुरू करेगा और कानूनी कार्रवाई करने में भी संकोच नहीं करेगा।

उन्होंने संसद में मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा करने वाले विपक्षी दलों को धन्यवाद दिया, लेकिन साथ ही उन दलों की भी कड़ी आलोचना की जो सरकार के साथ खड़े थे और इस विवादास्पद विधेयक के समर्थन में खड़े थे। मौलाना आगा ने कहा कि "मुस्लिम समाज ऐसी पार्टियों को कभी माफ नहीं करेगा और आने वाले दिनों में उन्हें इसके परिणाम भुगतने होंगे।"

लाल सागर में यमनी सेना की कार्रवाई जारी रहना तथा उनका प्रभावी ढंग से सामना करने में अमेरिका की असमर्थता, एक समुद्री शक्ति के रूप में इस देश की भूमिका में निरंतर गिरावट तथा अपने हितों की रक्षा करने में उसकी विफलता को ज़ाहिर करती है।

अमेरिकी मीडिया आउटलेट "नेशनल इंटरेस्ट" ने लिखा: अमेरिकी नौसेना की कमजोरी और उस पर अत्यधिक दबाव का फायदा उठाकर, यमन के अंसारुल्लाह ने दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण जलमार्गों में से एक पर नियंत्रण करने में कामयाबी हासिल कर ली है।

नेशनल इंटरेस्ट के अनुसार, अमेरिकी नौसेना और उसके सहयोगियों के हमलों के बावजूद यमनी सेना लाल सागर पर खतरा बनी हुई है तथा लगभग 2 वर्षों से इस रणनीतिक जलमार्ग को अवरुद्ध कर रखा है।

इसके नतीजे में अधिकांश जहाजों को दक्षिणी अफ्रीका में केप ऑफ गुड होप के आसपास का लंबा और महंगा मार्ग अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

नौसैनिक युद्ध के नए युग में, एंटी शिप मिसाइल प्रणालियों और ड्रोनों ने यमनी सेना को रणनीतिक बाबुल-मंदब स्ट्रेट को बंद करने में सहायता की है। एक प्रमुख वैश्विक समुद्री शक्ति के रूप में अमेरिका के लिए इस गतिरोध के खतरनाक परिणाम सामने आएंगे।

इन विकासों का पहला सबक तकनीकी प्रगति है, ड्रोन और सतह से सतह पर मार करने वाले मिसाइल सिस्टम अब सैकड़ों या हजारों किलोमीटर दूर से सतह पर स्थित जहाजों को निशाना बना सकते हैं।

लाल सागर में अंसारुल्लाह के हमले, अमेरिकी नौसेना के सामने आई कठिनाइयों को दर्शाते हैं।

यह बल, जो अब विश्व की सबसे बड़ी नौसेना नहीं रही तथा जिसका स्थान चीन ने ले लिया है, अभी तक नए खतरों का मुकाबला करने के लिए उपयुक्त समाधान नहीं ढूंढ पाया है।

अमेरिकी नौसेना के उन्नत और महंगे एयर क्राफ़्ट कैरियर और जहाज इस प्रकार के युद्ध के लिए उपयुक्त नहीं हैं, तथा उन्हें नई परिस्थितियों के अनुकूल होने में वर्षों लग सकते हैं।

दूसरा महत्वपूर्ण बिन्दु अमेरिकी नौसेना की प्रतिबद्धताओं का अत्यधिक विस्तार है। अमेरिकी नौसेना को हूती हमलों से युद्धपोतों और वाणिज्यिक जहाजों की रक्षा के लिए लाल सागर क्षेत्र में दो विमान वाहक समूह भेजने के लिए मजबूर होना पड़ा है लेकिन इस शक्तिशाली उपस्थिति के बावजूद, समुद्री मार्ग अभी भी अवरुद्ध है।

इसके साथ ही, चीन से ख़तरे सहित अन्य चुनौतियां भी बनी हुई हैं। चीन के पास 400 से अधिक युद्धपोत हैं, जबकि अमेरिकी प्रशांत बेड़े के पास केवल 200 जहाज हैं।

अमेरिका का पुराना औद्योगिक और जहाज निर्माण बुनियादी ढांचा, उसकी नौसेना को संख्या के मामले में चीन के बराबर पहुंचने से रोक सकता है। हालांकि, अमेरिका फिलीपींस, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे अपने सहयोगियों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, और उसे ताइवान की रक्षा के लिए भी तैयार रहना चाहिए।

इसके अलावा, अमेरिकी नौसेना को भी ईरान का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा। इस वर्ष के आरंभ में, इस सेना ने ईरानी मिसाइल और ड्रोन हमलों से इज़राइली शासन की रक्षा करने में भूमिका निभाई थी, तथा साथ ही लाल सागर में यमनी सेना से भी मुकाबला किया था।

ऐसी हालात में, अंसारुल्लाह से छिटपुट और लगातार खतरों का मुकाबला करने के लिए लाल सागर में अमेरिकी सेना की स्थायी और महंगी उपस्थिति एक अस्थिर रणनीति होगी।

इस वास्तविकता को समझते हुए, ट्रम्प प्रशासन ने हाल ही में यमन के ख़िलाफ़ आक्रामक हमलों के लिए अभियान को बढ़ाने तथा बी-2 बमवर्षक विमानों सहित अतिरिक्त हवाई परिसंपत्तियों को तैनात करने का निर्णय लिया है।

लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि केवल वायु शक्ति पर निर्भर रहने से निर्णायक नतीजे प्राप्त हो सकते हैं या नहीं। यद्यपि पिछले तीन सप्ताहों में हवाई हथियारों पर 1 अरब डॉलर से अधिक खर्च किया जा चुका है, फिर भी लाल सागर में यमनी सेना के हमले जारी हैं।

अल-मोमिल कल्चरल फाउंडेशन पिछले दो दशकों से सक्रिय है। इस दौरान दर्जनों पुस्तकों का प्रकाशन तथा युवाओं और वयस्कों की शिक्षा एक प्रशंसनीय उपलब्धि है। लखनऊ शहर के इमामबाड़ा जैनुल आबिदीन खां हरदोई रोड में वार्षिक पुस्तक पाठन प्रतियोगिता कार्यक्रम आयोजित किया गया।

अल-मोमिल कल्चरल फाउंडेशन पिछले दो दशकों से सक्रिय है। इस दौरान दर्जनों पुस्तकों का प्रकाशन, युवा पीढ़ी की शिक्षा और वयस्कों की शिक्षा प्रशंसनीय है। लखनऊ शहर के इमामबाड़ा जैनुल आबिदीन खां हरदोई रोड में वार्षिक पुस्तक पाठन प्रतियोगिता कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसकी शुरुआत मौलाना एजाज हुसैन द्वारा पवित्र कुरान की तिलावत से हुई।

मौलाना एहतेशामुल हसन ने अल-मोमिल इंस्टीट्यूट की संक्षिप्त प्रदर्शन रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसके बाद छोटे बच्चों ने इमाम ज़माना की शान मे एक सुरूद पढ़ा।

बैठक के संचालक मौलाना मिन्हाल हैदर जैदी ने मेहमान आलिम ए दीन मौलाना सुल्तान हुसैन को बोलने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने मुख्तसर वक्त में महदीवाद विषय पर उपयोगी बिंदु प्रस्तुत किए और ऐसे कार्यक्रमों के महत्व पर बल दिया। इस विद्यालय के नन्हे बालक-बालिकाओं ने बहुत ही दिल नशीन आवाज मे तवाशीह पेश की, जिसका दर्शकों ने से स्वागत किया।

मुम्बई के प्रसिद्ध धर्मोपदेशक मौलाना जकी हसन ने खुशबू की व्याख्या करते हुए विभिन्न सिद्धांत प्रस्तुत किए तथा कहा कि आज विश्व को खुशबू प्राप्त करने के लिए महदीवाद की ओर रुख करना होगा।

उल्लेखनीय है कि अल-मोमिल कल्चरल फाउंडेशन ने इस वर्ष जिस पुस्तक को प्रतियोगिता के लिए रखा है, वह अल्लामा शेख हबीब काज़मी द्वारा लिखी गई है, जबकि अनुवादक मौलाना सैयद हमीदुल हसन जैदी सीतापुरी हैं।

सम्मानित अनुवादक ने अपने संबोधन के दौरान कहा कि अन्य लोग इमाम के ज़ोहूर को दूर से देख रहे हैं, जबकि हम नजदीक से देख रहे हैं। लेकिन एक महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या हमारे अंदर प्रतीक्षा की वह स्थिति है जो आमतौर पर प्रतीक्षा के दौरान देखी जाती है! इसके बाद मौलाना साबिर अली इमरानी ने अपनी बेहतरीन अशार से कार्यक्रम का माहौल और खुशनुमा बना दिया।

अंतिम वक्ता मौलाना अली अब्बास खान थे, जिन्होंने दुआ-ए-फरज से चर्चा शुरू की और सरकार हुज्जत की न्याय प्रणाली पर प्रकाश डाला।

मौलाना मिन्हाल जैदी ने कार्यक्रम के दौरान बार-बार इस बात की ओर ध्यान दिलाया कि इस वर्ष लखनऊ के अलावा अन्य शहरों से भी बड़ी संख्या में युवाओं ने इसमें भाग लिया। उन्हें क़ुरआ कशी के माध्यम से पुरस्कार के योग्य घोषित किया गया। मुंबई और हैदराबाद के भाग्यशाली प्रतिभागियों के नाम कुरआ कशी के माध्यम से निकाले गए। अब लखनऊ के उन प्रतिभागियों के बीच कुरआ निकालने का समय था जिन्होंने नुमाया परिणाम हासिल किए थे।

प्रथम पुरस्कार: वॉशिंग मशीन मरियम ज़हरा ज़ैदी सरफराज गंज, द्वितीय पुरस्कार: मिक्सर मिस्बाह फातिमा, तृतीय पुरस्कार: प्रेस फातिमा ज़हरा सरफराज कोमल। इसके अलावा, चौदह अन्य प्रतिभागियों को कुरआ कशी के माध्यम से उत्तम परुस्कार प्रदान किए गए। यह जोड़ना महत्वपूर्ण है कि उपस्थित लोगों में से पांच लोगों को कर्बला के तबर्रुकात भी दिए गए।

इस आध्यात्मिक और नैतिक कार्यक्रम में सम्मानित विश्वासियों के अलावा, इमामिया विश्वविद्यालय के छात्रों, मौलाना सैयद अरशद मुसवी, मौलाना मुहम्मद अब्बास आजमी, मौलाना सैयद शाहिद जमाल, मौलाना सैयद अलमदार हुसैन, मौलाना मुहम्मद हसन, मौलाना मुहम्मद अकील, डॉ. सैयद कल्ब सिब्तैन नूरी, मौलाना जकी हसन, मौलाना सैयद हमीदुल हसन जैदी, मौलाना सुल्तान हुसैन, मौलाना मुहम्मद अली, मौलाना काशिफ जैदपुरी, मौलाना अली अब्बास खान सहित बड़ी संख्या में विद्वानों, विद्वानों और छात्रों ने भाग लिया। मौलाना साबिर अली इमरानी, ​​मौलाना सैयद हैदर अब्बास रिज़वी, मौलाना हैदर अली बंगाली आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

संस्था के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम मौलाना एहतेशामुल हसन ने बड़ी संख्या में उपस्थित लोगों का शुक्रिया अदा किया। कार्यक्रम का सीधा प्रसारण गाजी चैनल पर किया गया।

यहूदी त्यौहार पासओवर की पूर्व संध्या पर, यरूशलम मामलों के एक विशेषज्ञ ने मस्जिदुल अक़्सा के बग़ल में स्थित डोम ऑफ द रॉक मस्जिद या मस्जिदे क़ुब्बतुस्सख़रा में ज़ायोनी चरमपंथियों की गतिविधियों के बारे में चेतावनी देते हुए कहा कि इस पवित्र स्थल पर यहूदीकरण का योजनाबद्ध हमला हो रहा है।

फ़ख़्री अबू दय्याब ने पसह के त्योहार और ज़ायोनी गतिविधियों के निकट आने पर मस्जिदुल अक़्सा के खिलाफ ज़ायोनी शासन की कार्रवाई में अभूतपूर्व वृद्धि के बारे में चेतावनी दी।

उन्होंने कहा: चरमपंथी गुटों ने मस्जिदुल अक़्सा के परिसर पर व्यापक हमलों का दायरा बढ़ा दिया है जिसमें खुलेआम तल्मूदिक समारोह आयोजित करना और डोम ऑफ द रॉक मस्जिद के पास बलि के लिए भेड़ को मस्जिद में लाने का प्रयास करना शामिल है जो एक भड़काऊ कदम है और मस्जिदुल अक़्सा को यहूदी रंग देने की दिशा में सबसे ख़तरनाक कदमों में शुमार होता है।

यरूशलम मुद्दों के इस विशेषज्ञ ने कहा: ये आंदोलन क़ब्ज़े वाली पुलिस के पूर्ण समर्थन और चरमपंथी कैबिनेट के राजनीतिक समर्थन से चलाए जा रहे हैं और वे यरूशलम और मस्जिदुल अक़्सा के लिए आने वाले कठिन दिनों की गवाही देते हैं, खासकर तब जब अरब और मुस्लिम दुनिया चुप्पी साधे हुए है, और यह निष्क्रिय प्रतिक्रिया इन ग्रुप्स को कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित करती है।

अबू दय्याब ने जोर देकर कहा: मस्जिदुल अक़्सा योजनाबद्ध तरीक़े से यहूदीकरण के हमले की चपेट में है, और वहां निरंतर उपस्थिति इन आंदोलनों को पराजित करेगी।

उन्होंने ज़ायोनी कार्रवाइयों को रोकने के लिए तत्काल जन-आंदोलन का आह्वान किया तथा अरब और मुस्लिम दुनिया से आने वाले दिनों में मस्जिदुल अक़्सा के खिलाफ़ कब्ज़ा करने वालों की योजनाओं के कार्यान्वयन को रोकने के लिए व्यावहारिक और प्रभावी कदम उठाने की अपील की है।

इस वर्ष का पसह उत्सव 12 अप्रैल की शाम से शुरू हुआ तथा एक सप्ताह तक चलेगा। इस बीच, "टेंपल ग्रुप" के नाम से जाने जाने वाले चरमपंथी यहूदी समूहों ने मस्जिदुल अक़्सा के परिसर में प्रवेश करने और वहां बलि का कार्यक्रम करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास शुरू कर दिये हैं।

यूक्रेन के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति के विशेष प्रतिनिधि ने हाल ही में यूक्रेन में युद्ध समाप्त करने के लिए एक विवादास्पद योजना प्रस्तुत की, जिस पर मिली जुली प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं।

वाइट हाउस लौटने के बाद से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने यूक्रेन में युद्ध को समाप्त करना, अपने प्रशासन की सर्वोच्च प्राथमिकता बना लिया है। एक ऐसी समस्या जो आसानी से हल नहीं हो सकती।

टाइम्स पत्रिका ने लिखा: यूक्रेन के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति के विशेष प्रतिनिधि सेवानिवृत्त जनरल कीथ केलॉग की योजना के अनुसार, देश को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बर्लिन की शैली में विभाजित किया जाएगा।

केलॉग ने प्रस्ताव दिया कि यूक्रेन को दो क्षेत्रों में विभाजित किया जाए: नीपर नदी के पश्चिम पर ब्रिटिश और फ्रांसीसी शांति सेना का नियंत्रण होगा।

पूर्वी यूक्रेन, जिसमें वर्तमान में मक़बूज़ा क्षेत्र भी शामिल हैं, रूसी नियंत्रण में रहेंगे तथा दोनों भागों के बीच 18 मील चौड़ा असैन्य क्षेत्र बनाया जाएगा।

यूक्रेन के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति के विशेष प्रतिनिधि ने इस बात पर जोर दिया है कि अमेरिका इन क्षेत्रों में कोई भी ज़मीनी सैनिक नहीं भेजेगा, लेकिन पूर्वी यूक्रेन के कुछ हिस्सों पर रूसी नियंत्रण को स्वीकार करने पर कीव में नकारात्मक प्रतिक्रिया हो सकती है।

इस योजना ने रिपब्लिकन और अमेरिकी सहयोगियों के बीच चिंता पैदा कर दी है। कुछ लोगों को चिंता है कि इस प्रस्ताव का अर्थ होगा रूस की मांगों को स्वीकार करना और यूक्रेन की संप्रभुता को कमजोर करना।

कुछ अमेरिकी अधिकारियों ने भी यूक्रेन के प्रति ट्रम्प प्रशासन की नीतियों में सामंजस्य की कमी पर चिंता व्यक्त की है।

यद्यपि केलॉग को कीव में उनके रूस विरोधी रुख़ को सम्मान दिया गया, लेकिन यूक्रेन की नाजी जर्मनी से तुलना और देश को विभाजित करने के उनके प्रस्ताव ने यूक्रेनी अधिकारियों के बीच चिंता पैदा कर दी है।

कई लोग इस योजना को क्रेमलिन की मांगों की स्वीकृति और यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता को ख़तरे में डालने के रूप में देखते हैं।

मार्च 2025 में अमेरिकी राष्ट्रपति ने घोषणा की कि केलॉग की रूस के साथ वार्ता में कोई भूमिका नहीं होगी और वह केवल यूक्रेन के लिए विशेष प्रतिनिधि के रूप में काम करेंगे।

यह निर्णय रूस द्वारा 30 दिन के युद्ध विराम को अस्वीकार करने तथा यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति रोकने की मांग के बाद लिया गया।

केलॉग ने इससे पहले कीव की यात्रा करके युद्ध मोर्चों का दौरा किया था तथा यूक्रेन के राष्ट्रपति विलोदीमीर ज़ेलेंस्की से मुलाकात की थी, ताकि यूक्रेन की सुरक्षा आवश्यकताओं की गहन समझ हासिल की जा सके।

जबकि कुछ लोग यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने की केलॉग योजना को शांति की दिशा में एक क़दम के रूप में देखते हैं, वहीं अन्य लोग चेतावनी देते हैं कि ऐसी योजना रूस की कार्रवाइयों की वैधता को बढ़ा सकती है और यूक्रेन की संप्रभुता को कमजोर कर सकती है।

यूक्रेन युद्ध की शुरुआत मास्को की सुरक्षा चिंताओं के प्रति पश्चिम की उदासीनता और रूस की सीमाओं के निकट उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) बलों के विस्तार के परिणामस्वरूप हुई।

पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका द्वारा यूक्रेन की सुरक्षा चिंताओं को नज़र अंदाज किये जाने के बाद मास्को ने फरवरी 2022 में यूक्रेन पर सैन्य हमला किया था।

रूस की इस कार्रवाई के जवाब में, पश्चिमी देशों ने पहले ही मास्को के ख़िलाफ व्यापक प्रतिबंध लगा दिए हैं और कीव को अरबों डॉलर के हथियार और सैन्य उपकरण भेज दिए हैं।

रूसी राष्ट्रपति विलादीमीर पुतिन ने यूक्रेन में युद्ध समाप्त करने के लिए अपनी शर्तें बार-बार दोहराई हैं जिनमें कीव का नैटो सैन्य गठबंधन में शामिल न होना, मास्को के खिलाफ सभी पश्चिमी प्रतिबंधों को हटाना, तथा डोनबास और नोवोरोसिया क्षेत्रों से यूक्रेनी सैनिकों की पूर्ण वापसी शामिल है।

नए हिजरी शम्सी साल के उपलक्ष्य में मंत्रीमंडल और संसद के कुछ सदस्यों और न्यायपालिका और कार्यपालिका कुछ बड़े अधिकारियों ने हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई से मंगलवार 15 अप्रैल 2025 को तेहरान में मुलाक़ात की।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इस मुलाक़ात में ओमान बातचीत को विदेश मंत्रालय के दर्जनों कामों में से एक काम बताते हुए बल दिया कि देश के मसलों को इन वार्ताओं से जोड़ा न जाए और वह ग़लती जो जेसीपीओए के संबंध में हुयी कि मुल्क के सभी मसलों को वार्ता में प्रगति पर निर्भर किया गया, दोहराई न जाए क्योंकि अगर मुल्क शर्त की हालत में हो गया तो फिर वार्ता के नतीजे के सामने आने तक पूंजीनिवेश सहित सभी चीज़ें बाधित हो जाएगी।

उन्होंने औद्योगिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और निर्माण सहित सभी क्षेत्रों में मेहनत और बड़े प्रोजेक्टों के जारी रहने पर बल दिया और कहा कि इनमें से किसी भी मसले का ओमान बातचीत से कोई लेना देना नहीं है।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने इस बातचीत के प्रति अति आशावादी और अति नकारात्मक होने की ओर से सावधान किया और कहा कि मुल्क ने वार्ता के लिए पहला क़दम अच्छा उठाया है, इसके बाद भी सावधानी से आगे बढ़े, जैसा कि हमारे और सामने वाले पक्ष के लिए रेड लाइनें पूरी तरह स्पष्ट हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि बातचीत मुमकिन है कि किसी नतीजे तक पहुंच पाए या न पहुंच पाए, तो हम भी इस बातचीत के प्रति न तो बहुत आशावादी हैं और न ही बहुत निराशावादी, अलबत्ता सामने वाले पक्ष के संबंध में हम बहुत बदगुमान हैं लेकिन अपनी क्षमताओं पर हमें पूरा भरोसा है।

उन्होंने दुष्ट ज़ायोनी गैंग द्वारा ग़ज़ा के मज़लूम बच्चों, औरतों, अस्पतालों, एम्बुलेंसों, पत्रकारों और मरीज़ों पर जान बूझकर किए गए हमले कि ओर इशारा करते हुए कि जिनकी मिसाल नहीं मिलती, कहा कि इन अपराधों के लिए बहुत निर्दयता चाहिए जो इस दुष्ट क़ाबिज़ गैंग में पायी जाती है।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने आर्थिक, राजनैतिक क्षेत्रों और ज़रूरत पड़ने पर सैनिक मैदानों में इस्लामी दुनिया के बीच समन्वय को बहुत ज़रूरी बताया और कहा कि इस बात में शक नहीं कि इन ज़ालिमों पर अल्लाह की मार पड़ेगी लेकिन इससे सरकारों और राष्ट्रों का भारी कर्तव्य हल्का नहीं होता।

उन्होंने अपनी स्पीच के दूसरे भाग में उत्पादन के क्षेत्र में पूंजीनिवेश को प्रतिबंध से निपटने का बेहतरीन रास्ता बताया और कहा कि पाबंदियों को ख़त्म करना हमारे हाथ में नहीं है लेकिन पाबंदियों को बेअसर करना हमारे अख़्तियार में है और इस काम के लिए देश के भीतर उचित क्षमता और अनेक रास्ते हैं और अगर लक्ष्य हासिल हो जाए तो मुल्क पाबंदियों के प्रभाव से सुरक्षित हो जाएगा।

उन्होंने पड़ोसियों, एशिया और अफ़्रीक़ा की आर्थिक ताक़तों और दूसरे मुल्कों से संबंधों में विस्तार को अहम बताया और इस दिशा में कोशिश पर बल दिया।आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने इसी तरह ईरान के राष्ट्रपति के दूसरे मुल्कों के राष्ट्रपतियों से संपर्क और विदेश मंत्रालय की सरगर्मियों को बहुत प्रभावी बताया और उसकी सराहना की।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैन मुल्लानुरी ने कहा: इस्लामी क्रांति हौज़ा ए इल्मिया क़ुम की बरकात और आसार का सबसे अच्छा उदाहरण है। इमाम खुमैनी जैसे व्यक्ति का प्रशिक्षण, जिन्होंने एक महान क्रांति की स्थापना की और उसका नेतृत्व किया, स्वयं हौज़ा ए इल्मिया क़ुम की सफलता का प्रमाण है।

हौज़ा इल्मिया में शैक्षिक और अनुसंधान विभाग के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन हुसैन मुल्लानूरी ने आयतुल्लाह हाज शेख अब्दुल करीम हाएरी यज़्दी (र) के माध्यम से हौज़ा इल्मिया क़ुम की पुनः स्थापना की शताब्दी के अवसर पर अपने संबोधन में हौज़ा इल्मिया की उपलब्धियों का एक व्यापक अवलोकन प्रस्तुत किया।

उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय प्रचारकों को प्रशिक्षित करने के लिए स्वर्गीय अयातुल्ला हाएरी यज़्दी (र) के प्रयासों की ओर इशारा करते हुए कहा: "विदेशों में धर्म के प्रचार की आवश्यकता को महसूस करते हुए, आपने छात्रों को भाषा सिखाने की योजना शुरू की, हालाँकि, उस समय की सांस्कृतिक परिस्थितियों के कारण, यह योजना पूरी नहीं हो सकी।" लेकिन आज, इसी पहल के बरकत के कारण, हौज़ा ए इल्मिया दुनिया के दूर-दराज के हिस्सों में तबलीग को भेज रही है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हुसैन मुल्लानूरी ने आगे कहा: इस्लामी क्रांति हौज़ा ए इल्मिया कु़म की बरकात और आसार का सबसे अच्छा उदाहरण है। इस्लामी क्रांति के बाद, तबलीग़ी गतिविधियों में न केवल संख्या की दृष्टि से बल्कि गुणवत्ता की दृष्टि से भी अभूतपूर्व वृद्धि हुई है।

उन्होंने कहा: इस्लामी क्रांति की बरकात से, हौज़ा ए इल्मिया में मरकजे मुदीरीयत, दफ्तरे तबलीग़ात इस्लामी, साजमाने तब्लीगात इस्लामी व फरहगो इरतेबातात जैसी संस्थाएं स्थापित की गईं, जिससे दीन की तबलीग के लिए व्यवस्थित योजना बनाना संभव हो गया।

खुदा भला करे रहबरे मोअज्जम खामनई साहब का जिनके अंदर हुसैनी फिक्र और हुसैनी जज्बा कूट कूट के भरा है जो इस उम्र में भी अमरीका और इजरायल और उनके इत्तेहादियों के मुकाबले में मजलूमों की मदद के लिए सीसा पिलाई हुई दीवार बन कर खड़े हुए हैं। ये है उनका अल्लाह पर यक़ीन और भरोसा।

हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) ने फ़रमाया — *"लोग दुनिया के बंदे हैं और दीन सिर्फ उनकी ज़बान तक है।"*.. 
1400 साल पहले इमाम हुसैन और उनके साथियों के साथ कर्बला में और कर्बला से कूफ़ा और कूफ़ा से शाम तक जो ज़ुल्म ढाए गए हुए जब इमाम हुसैन के चाहने वाले उसे बयान करते थे तो बहुत से मुसलमान ये कहते हैं, कि इमाम हुसैन की ताजियादारी करने वाले झूठी बातें करते हैं। ये कैसे मुमकिन हो सकता है कि सहाबा और सहाबा की औलादों की मौजूदगी में रसूल अल्लाह के खानदान पर इस  कदर ज़ुल्म हुआ और सब देखते रहे और ये भी झूठ है कि सिर्फ 71 लोगों ने ही इमाम हुसैन का साथ दिया बाकी सब यजीद की बेयत कर के उसके साथ हो गए थे या खामोश तमाशाई बने हुए थे या उस वक्त तमाम मुल्ला और मुफ्ती बिक गए थे या यजीद के खौफ से दब गए थे। क्योंकि उसका हम हुसैनियो के पास कोई वीडियो नहीं है या सीसी फुटेज नहीं है जिसे दिखा कर हम कहें कि देखिए ये जुल्म के पहाड़ तोड़े गए और उस वक्त के सहाबी सहाबी की औलादें और मुल्ला मुफ्ती जन्नत के सरदार के साथ नहीं थे बल्कि जहन्नम के कुंदे यजीद के साथ थे। क्योंकि  उस वक्त कैमरा ईजाद नहीं हुआ था। मगर आज इस वीडियो कैमरे मोबाइल और इंटरनेट के दौर में 18 महीनों से ज़ालिम इसराइल अमरीका और तमाम सैहूनी ताकतें गाज़ा में मजलूम फिलिस्तीनियों पर जुल्म का सिलसिला जारी रखें  है और महीनों से जोलानी के दहशत गर्द शीयों और अलवाइट्स के गले काट रहे हैं कत्ल आम का सिलसिला जारी रखें है जिसके एक एक वीडियो और सीसी फुटेज सोशल साइट्स पर मौजूद हैं लाइव कत्ल आम हो रहा है फिलिस्तीन और सीरिया के मज़लूमीन चीख चीख कर दुनिया वालों की मदद के लिए बुला रहे है मगर सिवाय ईरान,हशद अल शाबी,हौसी,हिजबुल्लाह के कोई साथ नहीं दे रहा ईरान को छोड़ दीजिए तो OIC के तमाम मुमालिक के रहनुमा ही नहीं दीन के ठेकेदार काबा और मस्जिद नब्वी के इमाम अरब के मुफ्ती मिस्र के मुफ्ती और उलमा सब के सब लगातार 18 महीने से लाइव कत्ल और गारत गरी देख रहे हैं मगर सब के सब खामोश ही नहीं बल्कि ज़ालिम इसराइल और दहशत गर्द जुलानी की मदद कर रहे हैं। जिस तरह से
यजीद के दौर में अक्सरियत ऐसे ही लोगों की थी। वैसे आज भी है
हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) ने इसी लिए फ़रमाया था— "लोग दुनिया के बंदे हैं और दीन सिर्फ उनकी ज़बान तक है।".. खुदा भला करे रहबरे मोअज्जम खामनई साहब का जिनके अंदर हुसैनी फिक्र और हुसैनी जज्बा कूट कूट के भरा है जो इस उम्र में भी अमरीका और इजरायल और उनके इत्तेहादियों के मुकाबले में मजलूमों की मदद के लिए सीसा पिलाई हुई दीवार बन कर खड़े हुए हैं। ये है उनका अल्लाह पर यक़ीन और भरोसा। अमरीका की धमकियों के बाद भी ईरान अपनी शर्तों पर ही बात कर रहा है जगह भी अपने पसंद की शर्ते भी दुश्मन की नहीं बल्कि अपनी ये है अल्लाह की ताकत पर खुमैनी साहब का यकीन, इसकी बुनियादी वजह है कि ईरान वो ईरान है जो हर तरह की कुर्बानी देने को तैयार है। ईरान वाले दुनिया के बंदे नहीं अल्लाह के बंदे हैं
ये होती है सच्चे आलिम की पावर जो हुक्मरानों को सुपर पावर नहीं मानता बल्कि अल्लाह को सुपर पावर मानता है। खुदा की कसम पूरी दुनिया में देख लीजिए कि दौरे यजीद से ले कर आज तक के उलमाए सू हुमुरानो के टुकड़ों पर पालना और हुक्मरानों के हक में बोलना पसंद करते हैं ऐसे ही उलमाए सू बकौल इमाम हुसैन दुनिया के बंदे हैं। अरब से ले कर इंडिया तक फैले हुए उलमाए सू की घनी भीड़ में उलमाए हक़ को ढूंढना ऐसा ही है जैसे भूसे में गिरी हुई सूई को ढूंढ लेना। जिसको देखो वो दुनिया के चक्कर में मरा जा रहा है। इतना  ही नहीं अपने आपको सुपर इंकलाबी कहने वालों को भी खुद चेक कर लीजिए कि वो कितने जरी और जिंदा जमीर है। कितने लोग हैं जो सड़कों पर आ कर ज़ालिम इसराइल और अमरीका के खिलाफ़ प्रोटेस्ट कर रहे हैं या कितने लोग हैं कि जिनके बयान अखबारो में छप रहे हैं।
इंकलाब की बातें करने वाले और होते हैं इंकलाबी और होते हैं
ईरान के एक ऐतिहासिक और क्रांतिकारी फक़ीह व मुजाहिद शहीद आयतुल्लाह सैयद हसन मुदर्रिस जो शाह के दौर में पार्लियामेंट के मेंबर थे उन्होंने ऐसे ही दुनिया के बंदों के लिए क्या खूब कहा था कि *जो चीज़ आपको दूसरों से अलग बनाती थी,वो आपकी बेबाकी और बहादुरी होती है।* शाह के दौर में मिम्बर ऑफ पार्लियामेंट होने के बावजूद आप शाह की हर उस बात का खुल कर विरोध करते थे जो देश,जनता और इस्लामी संविधान के खिलाफ़ होती थी। आपके बारे में ही  ख़ुमैनी साहब कहा करते थे कि पार्लियामेंट में नारा लगता था: "रज़ा शाह ज़िंदाबाद!"
लेकिन आप उसी पार्लियामेंट में बेझिझक नारा लगाते थे:
"शाह मुर्दाबाद!"आप शाह ईरान की हर गलत पालिसी का  खुलकर विरोध करते थे। एक बार शाह ईरान ने आपसे पूछा "तुम मुझसे क्या चाहते हो?"
तो आपने शाह की आंखों में आंखें डाल कर कहा — *"मैं चाहता हूँ कि तुम रहो ही नहीं।"*
आपकी यही बहादुरी और साफगोई ईरानी इस्लामी क्रांति की बुनियाद बनी।
यकीनन ऐसा काम वही आलिमे दीन कर सकता है जिसका दामन हर तरह की लालच और जुर्म से पाक हो। शहीद आयतुल्लाह सैयद हसन मदर्रस ने कहा करते थे कि,
*"मैं बहुत से अहम मसलों पर बिना डरे अपनी बात इस लिए कह देता हूँ, क्योंकि मेरे पास खोने को कुछ नहीं है। अगर तुम भी इसी तरह बन जाओ,अपनी ख्वाहिशें और लालच छोड़ दो तो तुम भी आज़ाद हो जाओगे।"*
शहीद आयतुल्लाह सैयद हसन मदर्रस कभी किसी धमकी से डरे,न कभी किसी तरह की लालच का शिकार हुए। आप खुद फ़रमाते थे —
*"जो अमामा (पगड़ी) का तकिया और अबा की (चादर) बिछा कर सो सकता है,उसे किस चीज़ का डर हो सकता है?"*
 शहीद आयतुल्लाह सैयद हसन मदर्रस रह. ने ही ईरानी इस्लामी क्रांति से कई साल पहले ये नारा दिया —
*"हमारी दींदारी हमारी सियासत के ऐन मुताबिक है,और हमारी सियासत हमारे दीन के ऐन मुताबिक है।"*
आपने कभी दीन और सियासत को दुनिया हासिल करने का ज़रिया नहीं बनाया। हमेशा दीन को मकसद बनाए रखा और दूसरों को भी यही सलाह दी कि *"अपने दुनियावी मकसद के लिए दीन का सहारा मत लो। क्योंकि अगर तुम हार गए तो लोगों का ईमान भी कमज़ोर पड़ जाएगा।"*
आज जो समाज में मुश्किलें हैं और लोग दीन से दूर होते जा रहे हैं,उसकी बड़ी वजह यही है कि दीन के ग़द्दार उलमाये सू ने अपने दुनियावी मकसद को हासिल करने के लिए दीन को एक ज़रिया बना लिया है। जब तक उनके फायदे पूरे होते रहते हैं,वो दीन का नाम लेते रहते हैं और जैसे ही फायदा खत्म हुआ, दीन से दूर हो जाते हैं ।
हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) ने इसी लिए फ़रमा दिया था —
*"लोग दुनिया के बंदे हैं और दीन सिर्फ उनकी ज़बान तक है।"*
इस्लामी क्रांति की कामयाबी के बाद जब ईरान में पहला नोट छापा गया,तो ख़ुमैनी साहब ने हुक्म दिया कि नोट पर मेरी नहीं शहीद आयतुल्लाह सैयद हसन मदर्रस की तस्वीर छपी जाए।
अफसोस इस बात का हैं कि एक तरफ़ मुस्लिम हुक्मरानों की अक्सरियत कुरान के मना करने के बावजूद यहूद और नसारा को सरपरस्त बना कर यहूदियों और नस्रानियों में शामिल हो चुकी है दूसरी तरफ अमरीका इसराइल नवाज़ हुक्मरानों के पे रोल पर पलने वाले मुल्ला मुफ्ती भी उनके उस जुर्म पर पर्दा डाल रहे हैं। खुदा रहबरे मोअज्जम को सलामत रखे और तमाम रिजिस्टेंस फोर्सेज को सलामत रखे जो सैहूनियों के आगे सीसा पिलाई हुई दीवार बन कर खड़े हुए हैं।

 

लेखकः शौकत भारती